मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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September 30, 2012

भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं

 मेरा कमेन्ट यहाँ 

लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरक नहीं हैं , पूरक शब्द का प्रयोग केवल और केवल पति पत्नी के लिये होता हैं .
बच्चे दोनों बराबर होते हैं होने भी चाहिये . एक की तुलना कभी दूसरे से नहीं होनी चाहिये , मेरी बेटी बेटे जैसी हैं ये कह कर लोग बेटी को दोयम का दर्जा देते हैं और बेटे को उस से एक सीढ़ी ऊपर रखते हैं
बच्चो को लिंग ज्ञान उनके अभिभावक देते हैं , बच्चे नक़ल करते हैं और उनकी उम्र पर ये एक खिलवाड़ हैं
बड़े होने पर संविधान उनको अपनी पसंद का पहनावा पहनने का हक़ देता हैं , पहनावा अगर सुरुचि पूर्ण हैं तो किसी की पसंद पर आपत्ति नहीं की जा सकती हैं
जैसे लडकियां पेंट पहन सकते हैं लडके स्कर्ट पहन सकते हैं
अभी हॉवर्ड में ड्रेस कोड महज इस लिये ख़तम किया गया हैं क्युकी अब वहाँ ट्रांस जेंडर भी पढते हैं , अब हावर्ड में लिंग आधारित पहनावा पहनना जरुरी नहीं हैं
और आधुनिकता और आँख की शर्म इत्यादि हर नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी समझाती ही आयी हैं
हर नयी पीढ़ी एक दिन पुरानी होती हैं और उस दिन वो अपनी नयी पीढ़ी को वही सीखती हैं जो उनकी पुरानी पीढ़ी ने उनको सिखाया था
लिव इन , गे , लिस्बन , इत्यादि सब पहले भी था और अब भी हैं , तब चोरी छुपे था , अब कानून सही हैं
प्रकृति के नियम के विरुद्ध कुछ हो ही नहीं सकता हैं क्युकी प्रकृति स सक्षम हैं अपने को सही रखने के लिये


@आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना। आप सभी को क्या लगता है ???? पल्लवी जी आप खुद विदेश में रहती हैं , फिर भी आप कई पोस्ट पर यही लिख चुकी हैं , कई बार मन किया पूछने का मन किया हैं की आप वापस आकर भारत में रहकर , हम सब के साथ क्यूँ नहीं अपने देश को और बेहतर बनती हैं , क्यों नहीं अपने विदेशी परिवेश को तज कर अपनी भारतीय होने को भारत में रह कर एन्जॉय करती हैं
आप को हमेशा ऐसा क्यूँ लगता हैं की हम सब विदेशियों को कॉपी करके अपनी संस्कृति भूल रहे हैं और आप जो यहाँ रह भी नहीं रही वो हम सब से ज्यादा देशी हैं और हम सबको देशी बने रहने के लिये कह सकती हैं
आप अगर वहाँ खुश हैं तो हम भी यहाँ खुश हैं और भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं

September 29, 2012

Proficient Satisfied Lotus Means TUG OF WAR

क्या ज़माना आ गया  हैं इतने इतने proficient लोग lotus की टहनी को डंडा समझ कर satisfy हो जाते हैं . रस्सी जल गयी बल नहीं गए . सांप सांपिन के अंडे गिनने में लग गए . अब बताओ सांप ने कहीं भी बिल बनाया हो , सांपिन ने कहीं में अंडे दिये हो आप को क्यूँ तकलीफ हैं . आप अपनी proficiency से सांप को रस्सी समझो या रस्सी को सांप क्या फरक पड़ता हैं . कम से सांप को तो नहीं पड़ता हाँ सांपिन ने देख लिया तो जन्म जन्म तक बदला लेती हैं . और भगवान् ना करे {वैसे proficient लोग भगवान् को मानते ही नहीं हैं} सांपिन ऐसा करे .

जितने भी proficient हैं और जो lotus के साथ satisfied हैं उनसब की जानकारी के लिये बता दूँ एक बड़ा ही popular tatoo बनाया जाता हैं जिसमे  lotus के चारो तरफ एक सांप लिपटा होता हैं .
जिसका अर्थ हैं जो दिखता हैं वैसा होता नहीं हैं lotus की सुन्दरता के अन्दर भी danger हो सकता हैं .

किसी ने रस्सी को सांप समझ लिया पीट दिया उसकी मर्ज़ी लेकिन आप के घर में आकर पीट दिया और आप देखते रहे , अब हिम्मत की दाद देनी चाहिये किसी ? उसकी जो आप के घर में आ  कर पीट पाट कर चलागया और आप रस्सी रस्सी चिल्लाते रहे . चिंदी चिन्दी करदी गयी बिचारी रस्सी जो आपके भरोसे  थी और आप तमाशा देखते रहे और फिर भी satisfied हैं .

वैसे tug ऑफ़ war में वही जीतता हैं जिसका खिलाड़ी तगड़ा होता हैं और रस्सी के छोर पर बंधा होता हैं , सब के हाथ से रस्सी छुट भी जाए तब भी अंगद की तरह उसका पाँव नहीं हिलता .

अपनी अपनी रस्सी तो संभलती नहीं है आज कल के proficient लोगो से और दूसरो  के घरो के बिम्ब और प्रतीक की चिंता खाए जाती हैं . इतनी लापरवाही सही नहीं हैं , जिनके हवाले देश की सीमाए हो वो अपना घर ना संभाल सके तो LOC पर क्या होगा . अब ceasefire नहीं होता हैं आज कल , वो ज़माने ख़तम हुए


बाकी कुछ विध्वंसक मानते मानते दिव्य-रचना कह कर satisfied होते हैं आखिर सच हमेशा सच ही होता हैं ,विध्वंसक रचना ही  दिव्य होती हैं क्युकी विध्वंस के बाद ही सृजन होता हैं
 अल्प ज्ञान हैं फिर भी satisfaction हैं अपना क्या . ??

डिस्क्लेमर

इस पोस्ट इस ब्लॉग जगत से ही लेना देना हैं
कमेन्ट मोडरेशन सक्षम हैं 


September 27, 2012

मेरा कमेन्ट

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वाणी जी
हिंदी की किताबे , कहानी , कविता और भी बहुत कुछ सब सहयोग की राशि से ही छप रहा हैं , कम से कम पिछले २० साल से तो मै अपने आस पास देख रही हूँ . कारण ये नहीं हैं की प्रकाशक के पास क़ोई आर्थिक संकट हैं . कारण ये हैं की पाठक नहीं हैं जो किताब को खरीद कर पढ़े , विश्विद्यालय में लाइब्ररी के पास फंड नहीं होते , जगह नहीं होती सो वहाँ भी बिक्री कम ही हैं , अब या तो सरकारी अनुदान मिलता हैं और किताब छपती हैं { इसके लिये तगड़ा पी आर चाहिये और ये जाना माना तथ्य हैं की अनुदान राशि में कुछ उसका होता हैं जो अनुदान दिलवाता हैं } सहयोग से प्रकाशक छपता हैं पर बेचता नहीं हैं . ये भी काम लेखक का हैं . जब तक आप में सामर्थ्य हैं आर्थिक आप ये कर सकती हैं , इस में कुछ भी गलत नहीं हैं , छप जाए तो लोगो को बाँट सकती हैं सब कहेगे , मेरी प्रति कहां हैं , यानी अगर आप ने ५००० की न्यूनतम राशि दी हैं और बदले में १०० किताब आप को मिल गयी हैं तो आप को बस एक ही सुख हैं लोगो को किताब गिफ्ट करने का आप को क़ोई आर्थिक लाभ नहीं हैं , जबकि पब्लिशर के पास जो प्रतियां बचती हैं और अगर वो उनको बेच लेता हैं तो ये उसकी कमाई हैं . ज्यादा तर पूरा खर्चा आप की दी राशि से ही निकल आता हैं
किताब छप कर प्रिंट मीडिया में आने से एक अचीवमेंट की अनुभूति होती हैं जो अपने आप में बहुत हैं , लेकिन किताब की शेल्फ लाइफ बहुत कम हैं . अगर आप भी क़ोई किताब खरीद कर लाती हैं कितनी बार पढती हैं , फिर उसका क्या करती हैं ? मेरे घर हिंदी पुस्तकों की एक लाइब्ररी थी , माँ - पिता की बनाई हुई , कहां कहां की किताबे नहीं हैं , फिर वो लाइब्ररी से एक अम्बार होगया , अब एक ढेर हैं अलमारी में बंद . और जानती हूँ एक दिन केवल और केवल कबाड़ की तरह बेचना पड़ेगा मुझे . बहुत कष्ट होगा पर क्या ऑप्शन हैं मेरे पास ? मेरा विषय हिंदी नहीं है , क़ोई लाइब्ररी लेने को तैयार नहीं हैं , जिन विषयों पर वो किताबे हैं वो विषय आज कल छात्र नहीं पढते . कितने लोगो से में संपर्क कर चुकी एक ही जवाब होता हैं घर में इतनी जगह ही नहीं हैं . एक और परिवार के पास भी इसी तरह से एक अम्बार हैं , गठरी बना टांड पर चढ़ा .

बस  एक बात और
@कशमकश सी रहती है कि व्यर्थ वाग्जाल में फंसकर अपनी साहित्यिक अभिरुचि को बाधित करना क्या उचित है .
हिंदी ब्लॉग लेखन हिंदी साहित्यकारो का अड्डा ना बने तब ही सार्थक ब्लॉग लेखन होगा , हिंदी साहित्यकारों में कितना वाद विवाद हैं और कितनी रंजिशे होती हैं पता नहीं हैं आप कितना जानती हैं , सबको लगता हैं वो सबसे अच्छा लिखते हैं . ब्लॉग पर साहित्य लिखिये , जरुर लिखिये , क्युकी इस फ्री मीडियम के जरिये आप अपनी किताब , इ बुक बना सकती हैं , कोशिश करिये की आप पढने के लिये पाठक से एक राशि ले .
पर ब्लॉग लेखन को "व्यर्थ वाग्जाल" कह कर उन सब को अपने से { यानी वो सब जो अपने को हिंदी का साहित्यकार मानते हैं और ब्लॉग पर हिंदी सुधारने और उसको आगे बढ़ाने और दूसरे ब्लोग्गर की हिंदी सही करने , के लिये ही ब्लॉग लेखन करते हैं } छोटा ना माने .

ब्लॉग मीडियम विचारों की अभिव्यक्ति हैं , बहुत से लेखक और अपने को साहित्यकार समझने वाले लोग इस से केवल इस लिये जुड़े हैं क्युकी उनको कहीं क़ोई जानता ही नहीं हैं .

हैरी पोट्टर की लेखिका रोव्लिंग कभी एक ऐसी गृहणी थी जो पैसे पैसे को मुहताज थी , अपनी पहली पाण्डुलिपि एक रेस्तोरांत में बैठ के लिखी थी , छप गयी आज करोडो में खेल रही हैं , पहली , व्यस्को के लिये , किताब उनकी आज आ रही हैं और पहले ही बेस्ट सेलर हो चुकी हैं . साहित्यकार फिर भी नहीं समझी जाती हैं .
हिंदी में क़ोई ऐसा लेखक आप बता सकती हैं जिसकी किताब की प्रतियां , बिना मार्केट में आये ही बिक चुकी हो ???


मुद्दा किताब छापने से नहीं ख़तम होता हैं , मुद्दा है क्या आप के पास ऐसे पाठक हैं जो आप के लिखे को खरीद कर पढ़े . ????
अन्यथा वो ५००० हज़ार जो आप खर्च कर रही उस से मिली १०० प्रतियां आप कहां रखेगी , उसकी जगह बनाये और अगर विमोचन इत्यादि करवाना हो तो भी पैसे तैयार रखे , हाँ दोस्तों की पार्टी भी बनती हैं किताब छपने के बाद , सो मेरा निमंत्रण भेजना ना भूले और ज्यादा लिखे को कम समझे :)

September 11, 2012

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का अर्थ देश , संविधान , तिरंगा , कानून . संसद का अपमान करना कतई नहीं हो सकता हैं

क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देश / तिरंगा / संविधान / कानून / संसद  से ऊपर हैं ??
क्या हम को अधिकार हैं की अगर हम व्यवस्था से नाराज हैं , अगर हम संसद में बैठे हुए उन लोग से नाराज हैं जिनको चुन कर हम खुद लाये हैं तो क्या हम को ये हक़ हैं की हम उस संसद भवन को जला दे जहां ये बैठे हैं , उस तिरंगे को जला दे जिसको फेहरा देने का अधिकार हमें प्रधान मंत्री को दिया हैं , या हम उस संविधान को ही जला दे जो हमारी रीढ़ की हड्डी हैं या फिर हर उस कानून को नकार दे जिसको उन लोगो ने बनाया हैं जो हमारे बीच मे से कानून की पढाई कर के उस लेवल तक पहुचे हैं जहां कानून बनाये जाते हैं .


व्यंग लिखना , कार्टून बनाना , लेख देना , सत्याग्रह करना और भी ना जाने कितने विरोध करने के उपाय संविधान मे हमें मिले हैं लेकिन

शायद संविधान बनाते समय ये सोचा नहीं गया था की कभी 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ होगा
देश का अपमान
तिरंगे का अपमान
संविधान का अपमान
कानून का अपमान
संसद का अपमान

अगर  संविधान बनाने वाले उस समय ये सोच पाते तो शायद कहीं ना कहीं ये जरुर लिखा होता , संविधान में की ये सब "देश द्रोह " माना जायेगा . 

अगर आप उन सब से नाराज हैं जो खुद यही कर रहे हैं जैसे भ्रष्ट नेता जो संसंद में आते ही अपने को देश का
मालिक समझते हैं , तो उनके खिलाफ आवाज उठाए . जगह , जगह अपने अपने स्तर पर आर टी आई लगा कर व्यवस्था को सुधारे . वो हम मे से एक हैं यानी हमारे "रेप्रीजेंटेटटीव्" अगर वो बेईमान हैं तो कहीं ना कही हम बेईमान हैं क्युकी हम उनको चुन कर लाये हैं .

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का अर्थ देश , संविधान , तिरंगा , कानून . संसद का अपमान करना कतई नहीं हो सकता हैं

September 05, 2012

"लम्पट और नक्कालों से सावधान "





रवीन्द्र प्रभात
15:54 (46 minutes ago)

to me
रवीन्द्र प्रभात ने आपकी पोस्ट "लम्पट और नक्कालों से सावधान" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

झूठ के पाँव नहीं होते रचना जी, जब मैंने आपके इस आरोप के परिप्रेक्ष्य मे रवीन्द्र जी से पूछा तो वे हतप्रभ रह गए उन्होने कहा कि मैंने तो दशक के सभी सम्मानित ब्लोगर्स को मेल 28 जुलाई को ही कर दिया था । उसके बाद रचना जी ने मुझे फोन भी किया था और कहा था कि मैंने टिकट बूक करा लिया है । उसके बाद उन्होने मुझे फिर फोन करके पूछा कि कार्यक्रम के लिए मैं कुछ पुस्तकें भेजना चाहती हूँ दिल्ली मेन किसे दे दूँ तो मैंने अविनाश जी का नाम सुझाया था । उन्होने वह मेल मुझे फॉरवर्ड भी किया है जो यहाँ प्रस्तुत है। मैं तो यही कहूँगा कि गुरग्रह से बचिए किसी पर इल्जाम सोच-समझकर लगाईए ।

from: रवीन्द्र प्रभात noreply-comment@blogger.com
to: indianwomanhasarrived@gmail.com
date: 5 September 2012 15:54
subject: [मंगलायतन] लम्पट और नक्कालों से सावधान पर नई टिप्पणी.
mailed-by: blogger.bounces.google.com
Signed by: blogger.com


मनोज पाण्डेय ने आपकी पोस्ट "लम्पट और नक्कालों से सावधान" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

झूठ के पाँव नहीं होते रचना जी, जब मैंने आपके इस आरोप के परिप्रेक्ष्य मे रवीन्द्र जी से पूछा तो वे हतप्रभ रह गए उन्होने कहा कि मैंने तो दशक के सभी सम्मानित ब्लोगर्स को मेल 28 जुलाई को ही कर दिया था । उसके बाद रचना जी ने मुझे फोन भी किया था और कहा था कि मैंने टिकट बूक करा लिया है । उसके बाद उन्होने मुझे फिर फोन करके पूछा कि कार्यक्रम के लिए मैं कुछ पुस्तकें भेजना चाहती हूँ दिल्ली मेन किसे दे दूँ तो मैंने अविनाश जी का नाम सुझाया था । उन्होने वह मेल मुझे फॉरवर्ड भी किया है जो यहाँ प्रस्तुत है। मैं तो यही कहूँगा कि गुरग्रह से बचिए किसी पर इल्जाम सोच-समझकर लगाईए ।
from: मनोज पाण्डेय noreply-comment@blogger.com
to: indianwomanhasarrived@gmail.com
date: 5 September 2012 15:56
subject: [मंगलायतन] लम्पट और नक्कालों से सावधान पर नई टिप्पणी.
mailed-by: blogger.bounces.google.com
Signed by: blogger.com

 किसी की आईडी से कमेन्ट करना और दूसरो को झूठा कहना ,
अपनी तारीफ़ खुद करना और अपनी तारीफ़ के लिये ब्लॉग बनाना 

मेरे पास और भी सब ईमेल हैं कमेंट्स की जो प्रूफ चाहते हो कहे  

मेरे कमेन्ट के जवाब में कहा गया हैं की झूठ के पाँव नहीं होते 
सब खुदगर्ज हैं केवल और केवल एक महान हैं और उनकी महानता ये हैं 


September 04, 2012

15 अगस्त 2011 से 14 अगस्त 2012 के बीच में पुब्लिश की गयी ब्लॉग प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैं


15 अगस्त 2011 से 14 अगस्त 2012 के बीच में पुब्लिश की गयी ब्लॉग प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैं .
विषय
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
लेख और कविता , कहानी की विधा इस बार नहीं रखी जाएगी 
एक ब्लॉगर किसी भी विषय मे बस एक प्रविष्टि भेजे, 
 100 प्रविष्टि का अर्थ हुआ 100  ब्लॉग पोस्ट { लेख और कविता विधा की }

अगर आप ने { महिला और पुरुष ब्लॉग लेखक } इन विषयों पर ऊपर दिये हुए समय काल के अन्दर कोई भी पोस्ट दी हैं तो आप उस पोस्ट का लिंक यहाँ दे सकते .
अगर नारी ब्लॉग के पास 100 ऐसी पोस्ट के लिंक आजाते हैं तो हमारे 4 ब्लॉगर  मित्र जज बनकर उन प्रविष्टियों को पढ़ेगे . प्रत्येक जज 25 प्रविष्टियों मे से 3 प्रविष्टियों को चुनेगा . फिर 12 प्रविष्टियाँ एक नये ब्लॉग पर पोस्ट कर दी जायेगी और ब्लॉगर उसको पढ़ कर अपने प्रश्न उस लेखक से पूछ सकता हैं .
उसके बाद इन 12 प्रविष्टियों के लेखको को आमंत्रित किया जायेगा की वो ब्लॉग मीट  में आकर अपनी प्रविष्टियों को मंच पर पढ़े , अपना नज़रिया दे और उसके बाद दर्शको के साथ बैठ कर इस पर बहस हो .
दर्शको में ब्लॉगर होंगे . कोई साहित्यकार या नेता या मीडिया इत्यादि नहीं होगा . मीडिया से जुड़े ब्लॉगर और प्रकाशक होंगे . संभव हुआ तो ये दिल्ली विश्विद्यालय के किसी  college के ऑडिटोरियम में रखा जाएगा ताकि नयी पीढ़ी की छात्र / छात्रा ना केवल इन विषयों पर अपनी बात रख सके अपितु ब्लोगिंग के माध्यम और उसके व्यापक रूप को समझ सके . इसके लिये ब्लोगिंग और ब्लॉग से सम्बंधित एक लेक्चर भी रखा जायेगा .
12 प्रविष्टियों मे से बेस्ट 3 का चुनाव उसी सभागार में होगा दर्शको के साथ .

आयोजक  नारी ब्लॉग
निर्णायक मंडल रेखा श्रीवास्तव  , घुघूती बसूती  , नीरज रोहिला , मनोज जी , निशांत मिश्र और मुक्ति  { 6 संभावित  नाम हैं ताकि किसी कार्य वश कोई समय ना दे सके तो }

प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी  15 सितम्बर 2012 हैं .
सभी 12 प्रविष्टियों को पुस्तके और प्रथम 3 प्रविष्टियों को कुछ ज्यादा पुस्तके देने की योजना हैं लेकिन इस पर विमर्श जारी हैं

ब्लॉग मीट दिसंबर 2012 में रखने का सोचा जा रहा हैं लेकिन ये निर्भर होगा की किस कॉलेज मे जगह मिलती हैं .

आप से आग्रह हैं अपनी ब्लॉग पोस्ट का लिंक कमेन्ट मे छोड़ दे और अगर संभव हो तो इस पोस्ट को और और लोगो तक भेज दे
मेरी यानी रचना की , और जो भी निर्णायक मंडल होगा  उनकी कोई भी प्रविष्टि इस आयोजन में शामिल नहीं होगी हां वो लेखक से प्रश्न पूछने के अधिकारी होंगे अपना निर्णय देने से पहले .

मेरी कोशिश हैं की हम इस बार नारी आधारित मुद्दे पर चयन करे और फिर हर चार महीने मे एक  बार विविध सामाजिक मुद्दों पर चयन करे . हिंदी ब्लॉग को / आप की बात को कुछ और लोगो तक , ख़ास कर नयी पीढ़ी तक लेजाने का ये एक माध्यम बन सकता हैं .

आप अपने विचार निसंकोच कह सकते हैं . निर्णायक मंडल से आग्रह हैं की वो इस आयोजन के लिये समय निकाले

ये पोस्ट नारी ब्लॉग से साभार हैं आप अपनी प्रविष्टि और कमेन्ट वहीँ दे
लिंक  

September 02, 2012

सम्मान , पुरस्‍कार , पुरस्‍कार का सम्मान या सम्मान का पुरस्‍कार

सम्मान शब्द का क्या अर्थ हैं
आप को कौन सम्मानित कर रहा हैं
ये पुरस्‍कार वितरण समारोह था
पुरस्‍कार का सम्मान से क्या लेना देना हैं
पुरस्‍कार उसको दिया जाता हैं जो किसी को भी पसंद आता
आप भी शुरू कर सकती हैं क़ोई पुरस्‍कार
लेकिन सम्मान तब होता हैं जब आप की विधा का क़ोई आप के किये को समझता हैं , सराहता हैं सम्मान आप से छोटे भी आप का कर सकते हैं जैसे अगर रश्मि प्रभा जी को ५ पुरूस्कार मिले हैं तो रेखा जी उन पर क़ोई पोस्ट दे कर उनको सम्मानित करे

सोच कर देखिये आप सब किस बात पर बहस कर रहे हैं
अगर आयोजक ने इसको ब्लॉगर सम्मान कह दिया हैं तो गलत हैं ये महज एक पुरस्‍कार समारोह था , आयोजक की पसंद के ब्लोग्गर को मिला , वोटिंग को जरिया माना गया , लेकिन ये सम्मान नहीं हैं

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