tag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post246642682696589026..comments2023-09-03T14:39:48.650+05:30Comments on ब्लॉगर "रचना " का ब्लॉग " बिना लाग लपेट के जो कहा जाए वही सच है ": तीज त्यौहार किसी भी धर्म के हो उस दिन खुशिया मानना चाहिये क्युकी खुशियाँ जिन्दगी में कम ही आती हैंरचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-45603475433262081362011-11-11T15:18:15.975+05:302011-11-11T15:18:15.975+05:30मेरे विचार से बुद्धिजीवी वर्ग को साथ लेके व आपसी स...मेरे विचार से बुद्धिजीवी वर्ग को साथ लेके व आपसी सौहार्द व मानवता को आधार बनाकर ही हम इस तरह के मुद्दों को हल कर सकते हैं या एक व्यापक सोच बना सकते हैं ।<br />बहुत ही गभीरता से व सबको साथ लेके ही हम समाज को सौहार्द के पथ पर ला सकते हैं ।<br />लेकिन इन सबसे अधिक ज़रूरी है हमने स्वयं में कितना सुधार किया व कितना आंकलन किया क्यूंकि व्यक्ति से ही समाज बनता है ।<br />समाज का सबसे अधिक सुधार उसी से होता है जिसने स्वयं को सुधारा ये शास्त्रीय व सर्वविदित तथ्य है । <br /><br /><br />अपने विचारों से अवगत कराएँ !<br /> <a href="http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/2.html" rel="nofollow">अच्छा ठीक है -2</a>Humanhttps://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-74670446659092101452011-11-10T22:19:33.772+05:302011-11-10T22:19:33.772+05:30हर धर्म और त्यौहार की अपनी परंपराएं होती हैं....उ...हर धर्म और त्यौहार की अपनी परंपराएं होती हैं....उस पर बहस करने के बजाय सामान्य बात हो तो बेहतर....... आखिर मौजूदा दौर में क्या सही है और क्या गलत यह सब जानते हैं। <br />आपकी पोस्ट की कुछ बातों से सहमत।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-32151658929107208732011-11-10T18:13:00.874+05:302011-11-10T18:13:00.874+05:30Aapki baat se sehmat hoon ki kisi bhi Tyohaar ke k...Aapki baat se sehmat hoon ki kisi bhi Tyohaar ke khilaaf nahi bolna chahiye... Vaise bhi khushiyan kam hi milti hai duniya mein...Shah Nawazhttps://www.blogger.com/profile/01132035956789850464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-43165736931697683152011-11-10T12:22:35.327+05:302011-11-10T12:22:35.327+05:30@इस प्रकार की जितनी भी पोस्ट आती हैं, उनका अभिप्रा...@इस प्रकार की जितनी भी पोस्ट आती हैं, उनका अभिप्राय वास्तव में दूसरे के धर्म का मखौल उडाना और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करना होता है, बस<br /><br />आदरणीय अंतर सोहिल जी<br /><br />सभी को एक पैमाने से न नापें | आप जो कह रहे हैं - कि इन सभी पोस्ट्स का अभिप्राय दूसरे धर्म का मखौल उडाना होता है - यह एक जनरलाऐज़्द आक्षेप है - कम से कम मेरी पोस्ट के पीछे तो ऐसा कोई मंतव्य नहीं था | आप ने यदि वह पोस्ट पढ़ी होती - तो आप यह न कह रहे होते | यह तो अनवर जमाल जी - जिन्होंने वहां कई टिप्पणियां की हैं - वे भी नहीं कह रहे मेरे विषय में !!<br /><br />कृपया आरोप लगाने से पहले अपने तथ्य जांच लें |Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-50257492210344269932011-11-10T02:45:56.628+05:302011-11-10T02:45:56.628+05:30तो फिर कभी समय मिले तो "निरामिष" ब्लॉग प...तो फिर कभी समय मिले तो "निरामिष" ब्लॉग पर अवश्य पधारें।<br />वहां है, प्रक्रिया ३६५ दिन २४ X ७<br /><a href="http://niraamish.blogspot.com/2011/11/mass-animal-sacrifice-on-eid.html" rel="nofollow">निरामिष: पशु-बलि : प्रतीकात्मक कुरीति पर आधारित हिंसक प्रवृति</a><br /><br />इसीलिए……भी!! एवं……<br /><br />और हिन्दु धर्म सदैव कुरिति पर आक्षेप सहने और कठिनता या स्वेच्छा सुधार का स्वागत करता रहा है। इसलिए यह आरोप निराधार है कि हिन्दु मान्यता आलोचना सुननें में अपरिपक्व रहा है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-72071066276325866372011-11-09T21:06:10.574+05:302011-11-09T21:06:10.574+05:30.
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रचना जी,
आपके आलेख की भावना से सहमत !
......<br />.<br />.<br />रचना जी,<br /><br />आपके आलेख की भावना से सहमत !<br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-50385876075352514372011-11-09T18:11:14.938+05:302011-11-09T18:11:14.938+05:30सुज्ञ जी
सब हिन्दू खाते हैं से मतलब था जो हिन्दू ख...सुज्ञ जी<br />सब हिन्दू खाते हैं से मतलब था जो हिन्दू खाते हैं ना की हर हिन्दू , सब हिन्दू यानी वो सब जो ये खाते हैं<br />दूसरी बात क्या होली पर होलिका दहन के विरुद्ध पोस्ट देने से और बकरीद पर मासाहार के विरुद्ध पोस्ट देने से क़ोई बहस हो भी पाती हैं केवल और केवल बाद मजगी होती हैं<br />किसी मुद्दे पर , जो हमारे लिये जरुरी हो , उस पर निरंतर लिखना होगा , उसको मिशन की तरह आगे ले जाना होगा और हर दिन , हर पल हर समय उस पर और उसी पर बात करनी होगी . कितने कर लेते हैं ये ??<br />मुझे नारी आधारित विषयों पर बात करनी हैं तो क्या मै कन्या दिवस का इंतज़ार करूँ और फिर एक पोस्ट लिख दूँ नहीं मै हर समय जहां मुझे नारी पर हंसी मजाक , अश्लीलता दिखती हैं और क़ोई भी करता हैं मै लिखती हूँ .<br />शायद अब मै अपनी बात समझा सकी हूँ<br />बाकी धर्म सबके अपने हैं और उनसे सबकी अपनी मान्यता जुड़ी हैं , हिन्दू धर्म पर आक्षेप अगर हमे मंजूर नहीं हैं तो इस्लाम पर मुसलमान को नहीं हो सकता<br />सुधार की प्रक्रिया ३६५ का काम हैं २४ X ७रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-58400486914159647562011-11-09T15:51:20.757+05:302011-11-09T15:51:20.757+05:30रचना जी,
मुझे आपके इस कथन से आपत्ति है "और स...रचना जी,<br /><br />मुझे आपके इस कथन से आपत्ति है "और सब हिन्दू खाते हैं" बहुत ही क्रूर और गन्भीर आक्षेप है। यदि आप कहती कि कुछ हिन्दू भी खाते है तो शायद आधारहीन न होता। पर सभी को एक साथ आरोपित कर देना अनुचित है।<br />आपने लिखा ही है कि "भारत में विवाद होने पर बंद कर दिया" मतलब साफ है इन अवांछित वस्तुओं का विरोध करने वाले भी है। छल से फ्रेंच फ्राई को टैलो में फ्राय करने मात्र का जमकर विरोध होता है। यहां शुद्ध सात्विक मनुष्यों की उपस्थिति है ही।<br /><br />दूसरा……<br /><br />@होली दिवाली ईद बकरीद बड़ा दिन और गुरु नानक जनम दिन पर अगर इतनी बहस इन सब बातो पर ना की जाए तो क्या जिन्दगी रुक /बदल जायेगी .<br /><br /><br />ये सब बहस हैं और कुछ नहीं , जिस की जो धार्मिक रीत हैं उन में बदलाव संभव हो ही नहीं सकता हैं<br /><br />रचना जी,<br /><br />इसी प्रकार की चर्चा, बहस चिंतन-मनन से हिन्दुओं में भी प्रचलित पशुबलि को बंद किया जा सका। और साकारात्मक चिंतन के बाद स्वीकार भी किया गया। सुधार तो आते ही है, कभी सहज-बोध से तो कभी कठिनाई से। पर यदि मंथन ही न होगा तो उपयुक्त और अनुपयुक्त का भेद ही कैसे ज्ञात होगा?<br /><br />मुझे तो किसी की जान के साथ खेलकर खुशीयाँ मनाना अनुचित प्रतीत होता है। अगर जिन्दगी में खुशीयाँ कम आती है तो यह अर्थ नहीं कि परपीड़ा से आनन्द प्राप्त किया जाय।<br /><br />सुधार ही एकमात्र उपाय है मानव का शनै शनै सभ्य होते जाने के लिए। मानव जब सुसंस्कृत होगा, अहिंसक होगा, शान्त होगा तो निश्चित ही खुशीयाँ मनाने के हजारों अवसर आएँगे।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2317402208490749429.post-26188746456227678242011-11-09T12:45:02.318+05:302011-11-09T12:45:02.318+05:30होलिका दहन गलत
कुर्बानी गलत
इस प्रकार की जितनी भी...होलिका दहन गलत<br />कुर्बानी गलत<br /><br />इस प्रकार की जितनी भी पोस्ट आती हैं, उनका अभिप्राय वास्तव में दूसरे के धर्म का मखौल उडाना और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करना होता है, बस!<br /><br />प्रणामअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.com