जो स्याही की सहायता से जीता है
दूसरो पर कालिख उडेलता है
अग्रेजी की कतरनों को
हिंदी का जामा
पहनता है
यहाँ वहाँ से फोटो
उठाता है
मौलिकता के नाम पर
अपने लिखे पर चिपकाता है
शिक्षक हों कर
गुरू की गरिमा को
भूल जाता है
जहाँ मतभेद ना हों
भाषा से मतभेद लाता है
अपनी गलती को ना
स्वीकार कर सब पर
शक करना ओर
किसी के भी नाम
के सहारे
अपने
फटे पुराने
लेखो पर
अपनो से चर्चा
करवा कर
स्याही की सहायता से जीता
जाता है
तभी तो अपनी बिना नाम की
शख्सियत को
मसिजीवी
वह बताता है
दूसरो पर कालिख उडेलता है
अग्रेजी की कतरनों को
हिंदी का जामा
पहनता है
यहाँ वहाँ से फोटो
उठाता है
मौलिकता के नाम पर
अपने लिखे पर चिपकाता है
शिक्षक हों कर
गुरू की गरिमा को
भूल जाता है
जहाँ मतभेद ना हों
भाषा से मतभेद लाता है
अपनी गलती को ना
स्वीकार कर सब पर
शक करना ओर
किसी के भी नाम
के सहारे
अपने
फटे पुराने
लेखो पर
अपनो से चर्चा
करवा कर
स्याही की सहायता से जीता
जाता है
तभी तो अपनी बिना नाम की
शख्सियत को
मसिजीवी
वह बताता है