मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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March 21, 2012

नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए -- अनदेखा सच

जब मैने नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए
पोस्ट नारी ब्लॉग पर पोस्ट की थी तो बहुत सावधानी से लिखा था की सब कुछ उतना साफ़ नहीं हैं जितना दिखता हैं । मेरी आशंका निर्मूल नहीं साबित हुई । आज बच्चो की पिता ने खुद कहा हैं वो चाहता हैं की बच्चे नोर्वे में रहे और अब इसके लिये उसने अपनी पत्नी को मनोरोगी कह दिया हैं ।

नारी ब्लॉग पर अपने एक पाठक को जवाब देते हुए मैने कमेन्ट में कहा था
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बात केवल कानून की ही नहीं हैं बात ये सोचने की हैं की अगर वहाँ के सोशल डिपार्टमेंट ने इन माँ पिता के खिलाफ शिकायत की हैं { जैसा की कल खबर मे था } और वहाँ की अदालत का फैसला हैं की क्युकी पाया गया हैं की बच्चो के पास ना तो उचित कपड़े थे और ना ही खिलोने और उनके लालन पोषण में उनके माँ पिता सक्षम नहीं थे इस लिये अदालत किसी भी वजह से उनके माँ पिता को ये बच्चे नहीं देगी और बच्चो के एक अंकल { शायद मामा } अब विदेश जा कर इनकी कस्टडी लेगे .
तरुण और राजन जो बात मेने पोस्ट में नहीं लिखी हैं आप दोनों सोच कर देखे बिना किसी इमोशन को बीच में लाकर कहीं ऐसा तो नहीं हैं की बच्चो के माँ पिता ने आर्थिक कारणों से ये सब होने दिया और पिछले ७ महीने से वो बच्चो के प्रति किसी भी खर्चे से मुक्त हैं और अब क्युकी उनको भारत आना हैं तो वो बच्चो की लड़ाई में भारत सरकार की सहायता ले रहे हैं . अगर पूरा घटना कर्म कोई देखे तो केवल माँ के माता पिता का ही टी वी में उल्लेख हैं कही भी दादा दादी की कोई बात नहीं हो रही हैं
हमारे देश में कानून व्यवस्था के चलते बच्चो की सुरक्षा का कोई कानून ही नहीं हैं पर विदेशो में हैं और नोर्वे में सब से मजबूत हैं

राजन बच्चे फोस्टर केयर मे रखने का कारण ही ये था की बच्चो को पूर्ण सुविधा नहीं मिल रही थी
उनके पास सही ढंग के कपड़े नहीं थे और मैने केवल अपनी सोच को विस्तार दिया हैं आप से और तरुण से बात करके .
भारतीयों में मूलभूत सुविधा और बचत का बहुत बड़ा कारण हैं की भारतीये विदेशो मे पसंद ही नहीं किये जाते हैं . लोग मानते हैं की हम पेट काट कर प्रोपर्टी खरीदने वालो में हैं . हम कम सहूलियतो में रह कर पैसा बचाते हैं और अपने बच्चो पर उतना खर्च नहीं करते हैं जो सही हैं [ बस सही और गलत की परिभाषा क्या हैं ये कौन तय करेगा ?? पता नहीं }

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मूल प्रश्न अब भी वही हैं की हम कानून व्यवस्था को कभी नहीं देखते । हम केवल और केवल सामाजिक व्यवस्था को देखते हैं और उसके ढांचे को खुद ही बिगाडते जा रहे हैं । हम झूठ के सहारे अपने गलत काम को जस्टिफाई करते हैं और बहना बनाते हैं की हम परिवार को बचा रहे हैं ।

विदेशो में परिवार रहे या ना रहे पर कानून के जरिये समाज की व्यवस्था सही रहती हैं और बच्चो की सुरक्षा व्यवस्था , वृद्ध की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा देश का हैं ।


हम कितना अक्षम और सक्षम हैं ये हम को खुद सोचना चाहिये

March 20, 2012

ton or not

सचिन का महा शतक बन गया
तो क्या पता ही था बंगलादेश के खिलाफ या आयरलैंड के खिलाफ ही बनेगा !!!!
तो क्या टीम तो हार ही गयी ?
तो क्या शतक ही तो था ?
अब तो रिटायर होगा ना ??

क़ोई भी जब क़ोई माईल स्टोन यानी मील का पत्थर तक अपने पैरो के निशान बनाता हैं तो उसके पीछे उसके सालो के सपने , उनको पूरा करने का अथक परिश्रम और अपने जीवन की अभिलाषा सब जुड़े होते हैं ।

आज सचिन ने जो मील का पत्थर क्रिकेट के रास्ते पर लगा दिया हैं वहाँ जब क़ोई और पहुँच जाए और उसको छू ले तो बस वही अधिकारी हैं सचिन से आगे जाने का ।

कभी पढ़ा था
मंजिल तक पहुचना जितना जरुरी हैं उस से भी ज्यादा जरुरी हैं सही और सच्चे रास्ते पर चल कर मंजिल तक पहुचना । सचिन का नाम आज तक किसी मैच फिक्सिंग या घोटाले में नहीं सूना । क्रिकेट के प्रति उसका जूनून आज उसको उस मुकाम पर ले आया जहां ये सब प्रशन बेमानी हैं की किसके खिलाफ शतक लगा , कितने दिन बाद लगा , अब रिटायर हो जाये इत्यादि ।

एक बार शाहरुख़ खान ने अपने बड बोले पन की आदत के चलते अमिताभ बच्चन पर टीका टिपण्णी करते हुए कुछ कहा था , वो याद नहीं हैं हां अमिताभ का दिया हुआ जवाब जरुर याद हैं
अमिताभ ने कहा था पहले शाहरुख़ 60 साल के हो जाए , और उनको काम मिलता रहे तब मै रहा तो उनके वक्तव्य पर कुछ कहूंगा ।

सचिन और अमिताभ को देख कर लगता हैं
सपने देखो और उनको पूरा होने की कामना भी करो , उनको पूरा करने के लिये अपनी पूरी ताकत भी लगा दो । फिर हर सपना जरुर पूरा होगा ।

सचिन को १०० शतक की बधाई

March 14, 2012

कल से आगे

इस पोस्ट को समझने के लिये
मेरी कल की पोस्ट यहाँ देखी जा सकती हैं

मेरा कमेन्ट

इस पोस्ट को समझने के लिये
मेरी कल की पोस्ट यहाँ देखी जा सकती हैं


अविनाश वाचस्पति
ने कहा…

Naari ho ya aari ho. Aaptti darz karne ke bajay rachna karna seekho. Varna to abhiman karti rahna, ghamand se phool kar kuppa ho jana, aisi neeyat hai ti niyati yahi rahegi. Saari dunia ko apne tarikon ke pallu se baandh kar kyon chalana chahati ho ???

3/13/2012 08:45:00 अपराह्न



अविनाश वाचस्पति
आप अपने को लेखक मानने का भ्रम पाल कर जी रहे हैं , जीते रहे

Netiquette से आप अनभिज्ञ हैं जानती हूँ .


जेंडर बायस युक्त हैं आप का कमेन्ट और आप शायद इस से भी अनभिज्ञ हैं की इस प्रकार के कमेन्ट देना अब कानून अपराध हैं जहां आप पूरे नारी जाति पर ऊँगली उठा रहे हैं
जिसका ब्लॉग हैं वो जवाब देने में समर्थ हैं और क्युकी उसके ब्लॉग पर मोडरेशन के बाद भी ये कमेन्ट पुब्लिश किया गया हैं तो इसमे उसकी सहज सहमती हैं मै जानती हूँ . इसको कायरता भी कहते हैं

March 13, 2012

अतिथि- तुम कब जाओगे..समीर जी मेरी आपत्ति दर्ज करे

पहली बार आप के आलेख पर आपत्ति दर्ज करा रही हूँ ।
आप का निष्कर्ष "विदेश में रहने वालों के लिए यह मंजर बहुत आम है- यहाँ वो आयें तो अतिथि और हम वहाँ जायें तो डॉलर कमाने वाले!! दोनों तरफ से लूजर और यूँ भी अपनी जमीन से तो लूजर हैं ही!!!" निहायत छोटी सोच का परिचायक लगा
क़ोई भी भारत से आप के यहाँ अगर आता हैं तो आप से पूछ कर ही आता होगा और क्युकी आप आप ने कहा ये आम बात हैं की भारतीये विदेशो में बसे भारतीयों के यहाँ जा कर अतिथि बन जाते हैं तो ये पहला प्रकरण नहीं होसकता । यानी आप स्वयं भी कहीं ना कहीं इसके लिये जिम्मेदार हैं । आप को जब पता हैं भारत से आने वाले गरीब टुट पुन्जिये हैं तो आप को उन्हे न्योता देने की जगह उन से सम्बन्ध ही तोड़ लेना चाहिये ।

हम कितना भी गरीब सही पर जमीर अभी जिन्दा हैं समीर भाई , आशा हैं नाराज नहीं होगे और हो तो क्षमा कर दे पर ये कमेन्ट देना जरुरी था ।

मै अपनी बात भी बता दूँ की मै तो भारत में भी किसी रिश्ते दार के घर नहीं रुकती , होटल में ही रहना पसंद करती हूँ
कनाडा आती तब भी वहीँ करती ।

मेरा कमेन्ट यहाँ

March 10, 2012

समय से बड़ा कुछ नहीं

हिंदी ब्लॉग जगत की रीत हैं निराली
हास्य और फूहड़ हास्य में अंतर जो आज बता रहे हैं
वही आज से बस एक साल पहले
फूहड़ हास्य के लिये चर्चित ब्लॉग पर
टीप खूब दिया करते थे
उन आयोजनों में जहां
फूहड़ हास्य को समानित किया जाता था
ब्लॉग मीटिंग कहते थे

व्यंग कहते थे उस लेखन को जहां
"रचना " पर होती थी
अश्लील पोस्ट और कविता

आज पुरजोर तरीके से
वो अपनी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं
अपने को साहित्यकार बता कर
हिंदी कविता / हास्य को
बचाने की कोशिश कर रहे हैं

कहीं किसी ने आप से पहले भी
हिंदी ब्लॉग जगत में यही कहा था
उसका मज़ाक कभी आप ने उड़ाया था
ये आज आप को याद भी नहीं हैं

क़ोई बात नहीं
समय से बड़ा कुछ नहीं
वही सबको समझाता हैं
और सच एक ना एक दिन
सबके सामने आता हैं

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