मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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August 09, 2014

हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले इंग्लिश माध्यम से पढ़ने वालो से लड़ रहे हैं लेकिन हिंदी को हर राज्य में राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त हो इसकी लड़ाई कौन लड़ेगा ?

हिंदी भाषा देश की भाषा हैं यानी हमारी "नेशनल लैंग्वेज" . लेकिन आज भी हिंदी पूरे देश में नहीं बोली जाती हैं
क्यों देश के हर राज्य में हिंदी नहीं पढ़ाई जाती हैं।  हिंदी को पढ़ना या ना पढ़ना वैकल्पिक क्यों हैं , जरुरी क्यों नहीं ?

आज़ादी के इतने साल बाद भी हम राज्यों में बांटे जा चुके हैं।  हर राज्य की अपनी भाषा हैं लेकिन राष्ट्र भाषा का ज्ञान नहीं हैं क्युकी मानना हैं की बोल चाल की भाषा जरुरी हैं हिंदी जरुरी  नहीं हैं।

अभी हिंदी को लेकर यु पी एस सी के इम्तिहान को लेकर काफी बवाल हुआ , अंत में इंग्लिश के नम्बर मेरिट में नहीं जोड़े जायेगे ऐसा निर्णय हुआ और उसके साथ ही पेपर को अलग अलग भाषाओ में बनाने  की बात होने लगी।


इसका  तो सीधा मतलब यही हुआ की अगर कोई बंगाल से हैं , और बंगला भाषा में अपना पेपर लिखता हैं तो उसकी नियुक्ति भी बंगाल में ही  होगी क्युकी उसके पास कोई भी कॉमन लैंग्वेज नहीं हैं जिसके कारण वो अन्य प्रांतो में काम कर सके।

अभी कॉमन भाषा का विकल्प इंग्लिश हैं।  होना हिंदी को चाहिये था पर हैं नहीं और ना ही सब राज्य इसको मानने को तैयार होंगे।

प्रधानमंत्री  ने कहा हैं वो सब जगह हिंदी में बोलेगे , चलिये उनको सुनने के लिये उत्सुक लोग ट्रांसलेटर की सुविधा रखते हैं { यानी दूसरे राष्ट्र के अधिकारी गण } पर हमारी प्रशासनिक सेवा अधिकारी जब अपने प्रान्त की जगह दूसरी जगह जायेगे तो किसी प्रकार  बात कर सकेंगे।  क्या बंगाल निवासी , ओरिसा में बंगाली में बोलेगा या ओरिया बोलेगा क्युकी दोनों को ही हिंदी और इंग्लिश नहीं आती होगी या आती भी होगी तो भी वो बोलेगे नहीं।  क्या इन सब को भी ट्रांसलेटर की सुविधा होगी।


हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले इंग्लिश माध्यम से पढ़ने वालो से लड़ रहे हैं लेकिन हिंदी को हर राज्य में राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त हो इसकी लड़ाई कौन लड़ेगा ?

जब तक हर नागरिक के लिये हिंदी पढ़ना ही नहीं उसमे प्रवीण होना आवश्यक नहीं होगा इंग्लिश ही वैकल्पिक भाषा रहेगी।  नार्थ में रहने वाले ज्यादातर लोग हिंदी , इंग्लिश दोनों भाषा का ज्ञान रखते हैं और अपनी रोजी रोटी के हिसाब से अपनी भाषा का चुनाव करते हैं पर बाकी जगह देश में ?



July 11, 2014

हाथ वाली कांग्रेस ने कब और कैसे इंडियन नेशनल कांग्रेस को हाई जैक करके अपने को इंडियन नेशनल कांग्रेस बना दिया इस पर एक समुचित इन्क्वायरी होनी चाहिये

सरदार पटेल की मूर्ति पर जो खर्च आएगा उसको लेकर तमाम फेसबुक स्टेटस पढ़ लिये। 
लोगो को लगता हैं ये गलत हैं लेकिन मुझे इसमे कुछ  गलत नहीं लगता
मुझे लगता हैं जरुरी हैं की बी जे पी ये सिद्ध करे की पटेल अन्य कई नेता " हाथ वाली कांग्रेस " की जागीर नहीं हैं . ये सब इंडियन नेशनल कांग्रेस से जुड़े थे और उस समय भारत में कोई भी और पोलिटिकल पार्टी नहीं थी जिसको आम जनता जानती और समझती हो।  " हाथ वाली कांग्रेस " का जन्म इंदिरा गांधी की वजह से हुआ था और ये इंडियन नेशनल कांग्रेस नहीं हैं .
हाथ वाली कांग्रेस के नेता तो बस इंदिरा , राजीव और संजय रहे  हैं यहां तक की अगर इतिहास को साक्षी माने तो नेहरू जी  का भी इस हाथ वाली कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं था। 
हाथ वाली कांग्रेस ने कब और कैसे इंडियन नेशनल कांग्रेस को हाई जैक करके अपने को इंडियन नेशनल कांग्रेस बना  दिया  इस पर एक समुचित इन्क्वायरी होनी चाहिये



June 30, 2014

ईश्वर तुमको अगले जीवन में जीवित रहने की लड़ाई से मुक्त रखे मेरी दोस्त अनुराधा।

 

आर. अनुराधा  

से बस एक बार २००८  में दिल्ली हाट में मिलना हुआ था।  उन से परिचय नेट पर उनकी एक पोस्ट चोखेर बाली ब्लॉग पर पढ़ कर हुआ था।  उस पोस्ट में उन्होने कैंसर पर अपनी विजय के विषय में लिखा था।  उस पोस्ट पर मैने कॉमेंट भी  किया था और फिर नारी ब्लॉग पर उन पर एक पोस्ट भी लिखी थी।  फिर ईमेल के जरिये उनसे दोस्ती रही और कहीं भी किसी ने कैंसर से हार मान चुके व्यक्ति का जिक्र किया तुरंत अनुराधा का ईमेल उसको दिया।  

हर बार अनुराधा ने उस व्यक्ति को प्रोत्साहित किया और उसकी जीने की शक्ति को बढ़ाने की मद्दत की।  जब  युवराज सिंह को कैंसर हुआ तो मन में निश्चिंतता थी वो ठीक हो जाएगा क्युकी अनुराधा अनुराधा विजय जो पा चुकी थी।  उसी प्रकार से वन्दना की रिश्तेदार के लिये मन में विश्वास था वो भी विजय पा लेगी क्युकी अनुराधा पा चुकी हैं 


अनुराधा का होना यानी कैंसर का परास्त होना था मेरे लिये और 

अचानक अनुराधा चली गयी , कैंसर फिर जीत गया। 

अब किसी भी कैंसर पीड़ित / कैंसर विजयी को देखती हूँ तो मन आशंका से भर जाता हैं क्युकी अनुराधा तुम जो नहीं हो।  कितने दिन से ये सब मन हैं , तुम्हारी याद के साथ।  

ईश्वर तुमको अगले  जीवन में जीवित रहने की लड़ाई से मुक्त रखे मेरी दोस्त अनुराधा।  

May 03, 2014

ये जितने भी "नेता" हैं ये केवल "ताने" हैं

कल एक सर्वे मे बताया   जा रहा था की इस इलेक्शन मे प्रति वोटर ४३७ रूपए का सरकारी खर्च होगा अगर ७५ % फीसदी से उपर मतदान हो
जब भी मैं कहीं पढ़ती हूँ कि किसी पार्टी ने वोटर को  लालच देने के लिये रूपए बांटे तो मन मे विचार आता हैं कि काश इलेक्शन मे वोट डालने  कि सरकारी फ़ीस होती
मान लीजिये अगर आप को ५०० रूपए दे कर वोट डालने का अधिकार होता तो क्या आप डालते ?
ये जितने भी "नेता" हैं ये केवल "ताने" हैं क्युकी इनके  पास एक दूसरे के लिये बस ताने ही  हैँ ।  जितनी बेहूदी भाषा का प्रयोग ये करतेँ हैं एक दूसरे के लिये सुन कर लगता हैं किसी को भी वोट ना दिया जाये।
इनकी इसी भाषा से प्रभावित हो कर फ़ेसबुक , ट्विटर और ब्लॉग पर हर पार्टी के समर्थक अपनी अपनी बेहूदी भाषा से इलेक्शन के यज्ञ मे आहुति दे रहे हैं


April 22, 2014

पता नहीं पिछली पोस्ट के बाद से यही दिमाग में हैं

 लोग कहते हैं की माफ़ कर देना चाहिये और आगे बढ़ना चाहिये।  कमाल हैं जब तक कोई माफ़ी ना मांगे आप कैसे किसी को भी माफ़ कर सकते हैं ? माफ़ी कोई तब मांगता हैं जब उसको लगता हैं की उसने कोई गलती की हैं और अगर कोई माफ़ी मांगता ही नहीं हैं तो उसको अपनी कोई गलती लगती ही नहीं हैं।  ऐसे में उसको माफ़ कर देने से क्या फरक पड़ जाता हैं ?

लोग ये भी कहते हैं जो माफ़ नहीं करते हैं वो खुश नहीं रह पाते , कोई खुश हैं या नहीं हैं ये लोग कैसे जान लेते हैं ?

पढ़ा था
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
यानी अगर एक सांप जिसके अंदर विष हैं वो क्षमा करता हैं तो ही क्षमा करने में शोभा हैं यानी बलवान ही क्षमा कर सकता हैं

तो जो लोग बिना किसी के माफ़ी मांगे उसको क्षमा करने का ढोंग करते हैं वो केवल और केवल अपने को बलवान सिद्ध करना चाहते हैं जबकि वो शायद बहुत डरपोक और कमजोर हैं

पता नहीं पिछली पोस्ट के बाद से यही दिमाग में हैं

April 09, 2014

अपने को कालजयी मानने वाले अक्सर जब काल को प्राप्त होते हैं तो जय कहने वाले बहुत कम होते हैं

अपने जीवन काल में  बहुत से व्यक्ति  ये सोचते हैं कि उनके जाने के बाद  सारी दुनिया में उनकी मौत का मातम होगा।  देश के हर चॅनल और अखबार में उनकी तस्वीर होगी।  पर ऐसा होता ही नहीं हैं , पता चलता हैं किसी भी चॅनल या अखबार में नाम नहीं हैं।

क्या  कभी आप के साथ भी ऐसा हुआ हैं कि किसी कि मृत्यु कि खबर कहीं पढ़ कर या सुन कर आप कि अंतरात्मा ने कहा हो " अच्छा हुआ दुनिया से एक गन्दा व्यक्ति उठ गया " या किसी के घर से मिली कोई अनिष्ट खबर सुन कर आप के मुख से अनायास ये निकल गया हो कि " इनके साथ तो ऐसा होना ही था। "

पता नहीं पर कभी कभी ऐसा क्यूँ हो जाता हैं की जब कोई हमारा बहुत बुरा करता हैं और बिना वजह करता हैं तो उसकी मृत्यु के बाद कोई अफ़सोस होता ही नहीं हैं और लगता हैं ईश्वर खुद न्याय करता हैं।  

अपने को कालजयी मानने वाले अक्सर जब काल को प्राप्त होते हैं तो  जय कहने वाले बहुत कम होते हैं
बहुत से लोग अपने को अमीर और पॉपुलर बनाने कि होड़ में पुरस्कार इत्यादि बाँट के सोचते हैं कि वो कालजयी बन गए और जब वो काल को प्राप्त होते हैं तो पता  चलता हैं उनकी बीमारी का खर्च उनके परिवार जन लोगो के आगे हाथ फैला कर पूरा करते हैं।  निरंतर शराब का सेवन करने वाले जब काल को प्राप्त होते हैं तो पीछे रह गए उनके परिवार जन सोचते हैं अब रोटी का जुगाड़ कैसे होगा और फिर शुरू होता हैं सरकारी भीख का जुगाड़ का फैसला।

हे राम !!!


April 02, 2014

एक पुरानी पोस्ट कल याद आगयी

http://mypoeticresponse.blogspot.in/2012/06/blog-post_22.html
एक पुरानी पोस्ट कल याद आगयी

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