ईश्वर हैं या नहीं हैं ये सवाल उठता रहता हैं जवाब भी मिलते रहते हैं .
ईश्वर का निवास कहां हैं ये एक ऐसा सवाल हैं जिसका जवाब सबसे आसन हैं की हर एक जीव के अन्दर ईश्वर विराजमान हैं .
फिर लोग ये मंदिर , गुरुद्वारे और अन्य धार्मिक स्थल पर क्या खोजने जाते हैं .
अभी केदारनाथ में जल सैलाब में हजारो लोग लापता हैं या मृत घोषित हो चुके हैं
अब ये केदारनाथ में क्या खोजने गए थे
क्या शिव केदारनाथ में बसते हैं ??? अगर हाँ तो जो वहाँ गए थे उन्हे तो इस बार शिव ने साक्षात तांडव दिखा कर दर्शन दिये और उन सब को मुक्ति दी हैं फिर इतना हा हा कार क्यूँ ?
मुक्ति की कामना से ही तो लोग चारधाम की यात्रा पर जाते हैं और मुक्त होने पर खुश क्यूँ नहीं हुआ जाता ?
हम सब मानते हैं की ईश्वर की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता फिर इस जल सैलाब से हुई ईश्वर की करनी को आपदा क्यूँ मान रहे
हर कोई कह रहा हैं आपदा प्रबंधन अच्छा नहीं था
अब ईश्वर की मर्ज़ी नहीं थीं की जो इस बार वहाँ गये हैं वो सब वापिस आये सो कितना भी प्रबंधन किया जाता अंत यही होता जो हुआ हैं
सालो पहले किसी ने केदारनाथ मंदिर बनाया होगा , आज उस मंदिर का ट्रस्ट भी हैं , क्या ईश्वर को ट्रस्ट की जरुरत हैं ? क्यूँ नहीं जो चढावा हैं उसको वैसे ही छोड़ दिया जाए केवल केदारनाथ में ही नहीं हर मंदिर में ताकि जिनके पास ज्यादा हो वो चढा दे और जिनके पास कम हो वो उठा ले क्युकी ईश्वर को किसी चढावे की जरुरत हैं ही नहीं
पहले लोग अपने सब सांसारिक कर्तव्य पूरे करके वानप्रस्थ में आकर जगह जगह ईश्वर को खोजने निकलते थे
कठिन स्थान जहां से गंगा निकलती थी उसको देख कर मुक्ति की कामना करते थे आज कल जो जा रहे हैं उनमे वृद्ध , बच्चे , दुधमुहे बच्चे , नव विवाहित दंपत्ति और गर्भवती स्त्री भी शामिल हैं . इतनी उचाई पर जहाँ ऑक्सीजन कम होती हैं , ठण्ड बहुत होती हैं वहाँ वृद्ध के अलावा जितने जाते हैं वो मात्र टूरिस्ट हैं , वो लोग जो लगे हाथ घुमने के साथ ईश्वर के दर्शन कर , गंगा को देखा कर जीवन सफल करने की कामना रखते हैं .
जब किसी बच्चे की मृत्यु होती हैं या कोई जवान परलोक सीधारता हैं तो लोग कहते हैं ये कोई जाने की उम्र थी ??
लेकिन दूसरी तरफ हम सब मानते हैं की जाता वही हैं जिसकी मृत्यु निश्चित हैं .
शायद ये सब सैलानी जो आज मुक्त हो चुके इस संसार में अपने सब काम पूरे कर चुके होंगे इसीलिये वो इस यात्रा पर गए क्युकी ईश्वर ने उनके लिये ऐसा ही सोचा था .
हम परेशान क्यूँ होते क्युकी हम ईश्वर के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं अगर हम उसके निर्णय को यथावत स्वीकार करले तो कोई परशानी ही नहीं हैं
लोग कहते हैं धारी देवी की मूर्ति को विस्थापित किया इसलिये ये हुआ , मुझे लगता हैं धारी देवी को पहले से ही पता था की सैलाब में उनका मंदिर डूब जाएगा और उन्होने अपना स्थान बदलने की योजना को कार्यन्वित कर लिया
लोग कहते हैं केदारनाथ का पूरा इलाका जल सैलाब में दूब गया हैं बस मंदिर बचा हैं
सोच कर देखिये मंदिर से ही तो शुरू हुआ था और मंदिर पर ही फिर हम पहुच गए
फिर किस लिये
इतना झूठ
इतना फरेब
इतनी लूट पाट
इतना छल कपट हम सब करते हैं
आपदा हम सब खुद बढाते हैं , इतने बाज़ार , होटल , हेलीपेड क्या जरुरत थी इन सब की
ईश्वर को शायद वहीँ भक्त अपने द्वार पर चाहिये जो बिना इस सब टीम टाम , ताम झाम के उनसे मिलने आते थे .
ईश्वर सत्य हैं
सत्य ही शिव हैं
शिव ही सुंदर हैं
सत्यम शिवम् सुन्दरम
असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ईश्वर का निवास कहां हैं ये एक ऐसा सवाल हैं जिसका जवाब सबसे आसन हैं की हर एक जीव के अन्दर ईश्वर विराजमान हैं .
फिर लोग ये मंदिर , गुरुद्वारे और अन्य धार्मिक स्थल पर क्या खोजने जाते हैं .
अभी केदारनाथ में जल सैलाब में हजारो लोग लापता हैं या मृत घोषित हो चुके हैं
अब ये केदारनाथ में क्या खोजने गए थे
क्या शिव केदारनाथ में बसते हैं ??? अगर हाँ तो जो वहाँ गए थे उन्हे तो इस बार शिव ने साक्षात तांडव दिखा कर दर्शन दिये और उन सब को मुक्ति दी हैं फिर इतना हा हा कार क्यूँ ?
मुक्ति की कामना से ही तो लोग चारधाम की यात्रा पर जाते हैं और मुक्त होने पर खुश क्यूँ नहीं हुआ जाता ?
हम सब मानते हैं की ईश्वर की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता फिर इस जल सैलाब से हुई ईश्वर की करनी को आपदा क्यूँ मान रहे
हर कोई कह रहा हैं आपदा प्रबंधन अच्छा नहीं था
अब ईश्वर की मर्ज़ी नहीं थीं की जो इस बार वहाँ गये हैं वो सब वापिस आये सो कितना भी प्रबंधन किया जाता अंत यही होता जो हुआ हैं
सालो पहले किसी ने केदारनाथ मंदिर बनाया होगा , आज उस मंदिर का ट्रस्ट भी हैं , क्या ईश्वर को ट्रस्ट की जरुरत हैं ? क्यूँ नहीं जो चढावा हैं उसको वैसे ही छोड़ दिया जाए केवल केदारनाथ में ही नहीं हर मंदिर में ताकि जिनके पास ज्यादा हो वो चढा दे और जिनके पास कम हो वो उठा ले क्युकी ईश्वर को किसी चढावे की जरुरत हैं ही नहीं
पहले लोग अपने सब सांसारिक कर्तव्य पूरे करके वानप्रस्थ में आकर जगह जगह ईश्वर को खोजने निकलते थे
कठिन स्थान जहां से गंगा निकलती थी उसको देख कर मुक्ति की कामना करते थे आज कल जो जा रहे हैं उनमे वृद्ध , बच्चे , दुधमुहे बच्चे , नव विवाहित दंपत्ति और गर्भवती स्त्री भी शामिल हैं . इतनी उचाई पर जहाँ ऑक्सीजन कम होती हैं , ठण्ड बहुत होती हैं वहाँ वृद्ध के अलावा जितने जाते हैं वो मात्र टूरिस्ट हैं , वो लोग जो लगे हाथ घुमने के साथ ईश्वर के दर्शन कर , गंगा को देखा कर जीवन सफल करने की कामना रखते हैं .
जब किसी बच्चे की मृत्यु होती हैं या कोई जवान परलोक सीधारता हैं तो लोग कहते हैं ये कोई जाने की उम्र थी ??
लेकिन दूसरी तरफ हम सब मानते हैं की जाता वही हैं जिसकी मृत्यु निश्चित हैं .
शायद ये सब सैलानी जो आज मुक्त हो चुके इस संसार में अपने सब काम पूरे कर चुके होंगे इसीलिये वो इस यात्रा पर गए क्युकी ईश्वर ने उनके लिये ऐसा ही सोचा था .
हम परेशान क्यूँ होते क्युकी हम ईश्वर के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं अगर हम उसके निर्णय को यथावत स्वीकार करले तो कोई परशानी ही नहीं हैं
लोग कहते हैं धारी देवी की मूर्ति को विस्थापित किया इसलिये ये हुआ , मुझे लगता हैं धारी देवी को पहले से ही पता था की सैलाब में उनका मंदिर डूब जाएगा और उन्होने अपना स्थान बदलने की योजना को कार्यन्वित कर लिया
लोग कहते हैं केदारनाथ का पूरा इलाका जल सैलाब में दूब गया हैं बस मंदिर बचा हैं
सोच कर देखिये मंदिर से ही तो शुरू हुआ था और मंदिर पर ही फिर हम पहुच गए
फिर किस लिये
इतना झूठ
इतना फरेब
इतनी लूट पाट
इतना छल कपट हम सब करते हैं
आपदा हम सब खुद बढाते हैं , इतने बाज़ार , होटल , हेलीपेड क्या जरुरत थी इन सब की
ईश्वर को शायद वहीँ भक्त अपने द्वार पर चाहिये जो बिना इस सब टीम टाम , ताम झाम के उनसे मिलने आते थे .
ईश्वर सत्य हैं
सत्य ही शिव हैं
शिव ही सुंदर हैं
सत्यम शिवम् सुन्दरम
बढिया, बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपदा हम सब खुद बढाते हैं , इतने बाज़ार , होटल , हेलीपेड क्या जरुरत थी इन सब की
ReplyDeleteईश्वर को शायद वहीँ भक्त अपने द्वार पर चाहिये जो बिना इस सब टीम टाम , ताम झाम के उनसे मिलने आते थे
- सहमत। एक और बात लोग अपने अनुभव से बता रहे हैं(फ़ेसबुक पर भी कुछ ऐसे स्टेटस देखे हैं) वो यह कि पहले चारधाम यात्रा पर जाने वाली गाडि़यों के लिये रोटेशन सिस्टम था, प्रोपर रेकार्डकीपिंग और चैकिंग थी। इससे एक पर्टीकूलर स्ट्रेच पर यात्रियों की संख्या पर नियंत्रण रहता था। यह सिस्टम इस बार समाप्त कर दिया गया था। परिणामस्वरूप भीड़ अंधाधुंध बढ़ गई थी जिससे अब तक कितने ही लोग लापता हैं। इस हिसाब से तो आपदा प्रबंधन को सबसे ज्यादा डैमेज इस बदले सिस्टम ने किया है।
यह सब छल कपट किस लिए , सोचने की ही तो बात है मगर कोई सोचता नहीं !
ReplyDeleteहम एक भीड़ का हिस्सा बनकर ही खुश हैं तब यह हादसे होते रहेंगे ...
ReplyDeleteजवाब कड़वे हैं. पूछने वाले भी क़ुबूल नहीं करते सच्चे जवाब.
ReplyDeleteaaj ke time me kisi se pucho to kahta hain ki kedarnath ghumne ja raha hun... darshan karne kam log jate hain ...wahan log aysahi karne jayada jate hain...aur ishwar ka nayay nitay hain roz hota hain ...manav kisi aapda k liye khud jimedar hai na ishwar ............manav karam karne k liye sawtantar hain ...ishwar us karam ka phal dene k liye pratantar hain ....yeh katu satay hain ish k liye gudh vishleshan ki jarurat hain ....
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