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July 21, 2018

अब कारवां गुज़र गया हैं और गुबार ही दिख रहा हैं

१९६९ में नीरज जी के घर जाना हुआ था। नीरज जी एक जाने माने कवि थे। रिश्ते जुड़े हुए थे पारिवारिक और इस रिश्ते से मम्मी ने बताया " मामा हैं नमस्ते करो " दोनों बहिनो ने हाथ जोड़ कर नमस्ते जरूर की होगी। इतना बड़ा घर पहले कभी नहीं देखा था। इतना बड़ा आँगन। अंदर बड़े कमरे में एक बड़ा सा रिकॉर्ड चेंजर। बड़े सारे रिकॉर्ड। आंखे खुली की खुली फिर पता चला की सीक्वेंस सेट कर दो रिकॉर्ड बजते रहेगे। मुझे आज भी वो रिकॉर्ड चैंजेर याद हैं और ये भी याद हैं ९ वर्ष की उम्र में मैने सोच लिया था जब नौकरी करुँगी तो रिकॉर्ड चैंजेर जरूर खरीदूंगी।
नीरज जी के छोटे भाई की पत्नी से मम्मी की बहुत दोस्ती थी।
एक रात हम वहीँ रहे और पूरा समय नीरज जी हम ही लोगो के साथ रहे। पापा ने खाना खाया या नहीं ये भी उन्होंने पूछा। अपनी अम्बस्सडोर कार से गए थे { उसके असली मालिक हमारी मम्मी के ज्येष्ठ सगे भाई थे पर गाडी तो अपनी थी } उसके ड्राइवर की चिंता भी नीरज जी को थी { इतना सब कुछ याद इस लिये हैं क्युकी घर में ना जाने कितनी बार माँ ने बताया था की उनके भाई हैं नीरज जी } .
जो याद हैं वो हैं बड़ा मकान , आंगन , रिकॉर्ड चेंजर और सारी रात उस आँगन में दरी बिछा कर नीरज जी उनकी आवाज में गाने सुनना। सस्वर गा रहे थे।
कल उनका निधन होगया माँ ने अखबार में पढ़ा ,उदास रही। माँ के हिसाब से क्युकी हमने नीरज जी को सस्वर गाते सुना सो हमारी किस्मत अच्छी हैं।
किस्मत का पता नहीं लेकिन यादे बहुत हैं ऐसे बहुत से चर्चित लोगो की जिन से माँ के कारण मिलना रहा।अब कारवां गुज़र गया हैं और गुबार ही दिख रहा हैं
गिरने से डरता है क्यों, मरने से डरता है क्यों
ठोकर तू जब तक न खाएगा
पास किसी ग़म को न जब तक बुलाएगा
ज़िन्दगी है चीज़ क्या नहीं जान पायेगा
रोता हुआ आया है, रोता चला जाएगा
ए भाई ज़रा देख के..
अपना शरीर उन्होंने दान कर दिया हैं ऐसा खबरे कह रही हैं

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