मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

September 08, 2018

देश बदल रहा हैं

देश बदल रहा हैं या समय के साथ चल रहा हैं या समय के साथ हमारी संस्कृति नष्ट हो रही हैं बड़े सारे प्रश्न गूँज रहें हैं।  शायद तब भी उठे होंगे जब नारी और पुरुष की समानता की बात पहली बार हुई होगी , जब हरिजन शब्द का इस्तमाल पहली बार हुआ होगा , जब ठाकुर के कुयें से दलित को पानी भरने का अधिकार पहली बार मिला होगा और भी बहुत सी पहली बार.... . 
धारा  ३७७ को यानी होमोसेक्सुअलिटी को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा।  किसी की सेक्सुअलिटी ईश्वर की देने हैं इस लिये उसके अनुरूप उसको  भी जीने का उतना  ही अधिकार हैं जितना हम सब को।  
ये धारा १८६१ में ब्रिटिश राज्य में लागू की गयी थी और तब से इसके तहत बहुत से लोगो पर ज्यादतियां होती रही हैं।  
कभी किसी ने सोचा हैं क्यों ब्रिटिशर्स इस रूल को इंडिया में लाये ? पता नहीं लोग क्या सोचते हैं पर मुझे लगता हैं की उनकी संस्कृति में ये अमान्य था सो उन्होंने इसको यहां भी अमान्य किया।  वहां Buggery Act 1533, था जो इस लिये लाया गया था ताकि sodomization के लिये सजा दी जा सके।  sodomization यानी समलैंगिक बलात्कार।  
शायद ब्रिटिशर्स को ऐसा लगा होगा की उनके यहां के लोग जो अपने घर से महीनो और सालो दूर रह रहे हैं वो अपनी सेक्स रिलेटेड इच्छा sodomization से ना पूरी करे। 

ब्रिटिशर्स तो चले गए रह गया कानून और वो सब जो हर बात में ब्रिटिशर्स को गाली देते हैं उनके बनाये कानून से चिपके रहे।  

क्या समलैंगकिता हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं ?http://devdutt.com/articles/applied-mythology/queer/did-homosexuality-exist-in-ancient-india.html                

जिस देश में आशीर्वाद देने मात्र से सूर्य का पुत्र पैदा हो सकता कवच और कुण्डल पहन कर लेकिन नदी में बहा दिया जाता हैं वहाँ हम संस्कृति की किस नैतिकता और उसके नष्ट होने की बात कर रहे हैं।  

नैतिकता हैं की हम अगर किसी को प्यार करते हैं तो उसकी रक्षा करे।  समलैंगिकता को फैशन की तरह ना प्रदर्शित करे ना इस्तमाल करे।  
कोई समलैंगिक हैं तो उसको ये अधिकार नहीं मिल जाता हैं कीहुई हैं वो अगर पावर में हैं तो दुसरो को sodomize करे क्युकी आपके लिये जो नेचुरल हैं वो दूसरे के के लिये अप्राकृतिक हैं।  

सबसे बड़ी बात हैं की होमोसेक्सुअलिटी dicriminalized हुई हैं sodomization नहीं।  
अभी कानून को बदला जाना हैं और इस में समय लगेगा।  

रेनबो केवल LGBT तक सिमित नहीं हैं LGBT कम्युनिटी को ये रेनबो ऐसा बनाना होगा की इसके नीचे sodomization की जगह ही ना रहे।  
बात समलैंगिक विवाह और बच्चो के एडॉप्शन तक ही सिमित नहीं हो सकती क्युकी आप एक समाज का हिस्सा हैं जहां आप की ख़ुशी के आप के अधिकार आप तक नहीं सिमित होंगे अगर आप समलैंगिक शादी करेंगे और बच्चा गोद लेंगे।  

उस बच्चे के अधिकारों का क्या जिसको आप गोद लेंगे ? क्या वो समलैंगिक अभिभावक चाहता हैं ? या फिर आप किसी समलैंगिक को ही गोद लेंगे ? तब तो आप एक नया कोना बनायेगे अपने लिये।  अगर आप को ये सही लगता हैं तो आप की लड़ाई सही दिशा में हैं अन्यथा मेरे दृष्टि में नहीं क्युकी आप अपनी ख़ुशी के लिये किसी और की ख़ुशी का हनन कर रहे हैं 

July 21, 2018

अब कारवां गुज़र गया हैं और गुबार ही दिख रहा हैं

१९६९ में नीरज जी के घर जाना हुआ था। नीरज जी एक जाने माने कवि थे। रिश्ते जुड़े हुए थे पारिवारिक और इस रिश्ते से मम्मी ने बताया " मामा हैं नमस्ते करो " दोनों बहिनो ने हाथ जोड़ कर नमस्ते जरूर की होगी। इतना बड़ा घर पहले कभी नहीं देखा था। इतना बड़ा आँगन। अंदर बड़े कमरे में एक बड़ा सा रिकॉर्ड चेंजर। बड़े सारे रिकॉर्ड। आंखे खुली की खुली फिर पता चला की सीक्वेंस सेट कर दो रिकॉर्ड बजते रहेगे। मुझे आज भी वो रिकॉर्ड चैंजेर याद हैं और ये भी याद हैं ९ वर्ष की उम्र में मैने सोच लिया था जब नौकरी करुँगी तो रिकॉर्ड चैंजेर जरूर खरीदूंगी।
नीरज जी के छोटे भाई की पत्नी से मम्मी की बहुत दोस्ती थी।
एक रात हम वहीँ रहे और पूरा समय नीरज जी हम ही लोगो के साथ रहे। पापा ने खाना खाया या नहीं ये भी उन्होंने पूछा। अपनी अम्बस्सडोर कार से गए थे { उसके असली मालिक हमारी मम्मी के ज्येष्ठ सगे भाई थे पर गाडी तो अपनी थी } उसके ड्राइवर की चिंता भी नीरज जी को थी { इतना सब कुछ याद इस लिये हैं क्युकी घर में ना जाने कितनी बार माँ ने बताया था की उनके भाई हैं नीरज जी } .
जो याद हैं वो हैं बड़ा मकान , आंगन , रिकॉर्ड चेंजर और सारी रात उस आँगन में दरी बिछा कर नीरज जी उनकी आवाज में गाने सुनना। सस्वर गा रहे थे।
कल उनका निधन होगया माँ ने अखबार में पढ़ा ,उदास रही। माँ के हिसाब से क्युकी हमने नीरज जी को सस्वर गाते सुना सो हमारी किस्मत अच्छी हैं।
किस्मत का पता नहीं लेकिन यादे बहुत हैं ऐसे बहुत से चर्चित लोगो की जिन से माँ के कारण मिलना रहा।अब कारवां गुज़र गया हैं और गुबार ही दिख रहा हैं
गिरने से डरता है क्यों, मरने से डरता है क्यों
ठोकर तू जब तक न खाएगा
पास किसी ग़म को न जब तक बुलाएगा
ज़िन्दगी है चीज़ क्या नहीं जान पायेगा
रोता हुआ आया है, रोता चला जाएगा
ए भाई ज़रा देख के..
अपना शरीर उन्होंने दान कर दिया हैं ऐसा खबरे कह रही हैं

January 12, 2017

रिटर्न ऑफ़ दी बुक फेयर

हर साल की तरह इस साल भी इंटरनेशनल बुक फेयर दिल्ली में लगा सो मेरा जाना निश्चित था। मैं सालो से इस इवेंट में जाती हूँ पहले माँ के साथ जाती थी फिर अकेले पर क्रम जारी हैं। मुझे किताबे खरीदने से ज्यादा किताबो की सोहबत और संगत से प्यार हैं ऐसा मुझे लगता हैं। अपने को किताबो की बीच में पाना बड़ी मस्त :) फीलिंग देता हैं। शायद बचपन से घर में किताबे देखी हैं ढेरो किताबें।
 इस बार मिनाक्षी Meenakshi Dhanwantri दिल्ली में थी सोचा शायद प्रेम पर कुछ खोजने किताबो के बीच जाना चाहे सो उनसे पूछना जरुरी था। उनका साथ बड़ा अपनत्व भरा होता हैं सो फ़ोन पर पूछा और फिर दोनों पहुचे बुक फेयर।
 पिछले साल का मेल मिलाप का अनुभव कुछ सही नहीं लगा था , जिनसे मिलने गयी थी उन्होंने अपनी सुविधा के हिसाब से मिलने के समय सेट किया था। क्योंकि उनको बाहर से आना था इस लिये मैने अपने ऑफिस से छुट्टी ली और गयी उनकी सुविधा अनुसार। वो मिली पर दो मिनट का समय नहीं निकाल सकी एक कप चाय के लिये। अभी आई अभी आई कह कर ४ घंटे निकल गए पर उनके पास मेरे लिये २ पल नहीं हुए। वो तो निवेदिता और अमित से भी मिलना तय था सो अपनत्व का अभाव नहीं लगा था।
 ख़ैर इस बार किसी से कुछ तय नहीं किया बस फेसबुक पर लिख दिया की मिनाक्षी और मै इवेंट में होंगे। सबसे पहले मीनाक्षी कुश Kush Vaishnav के "रुझान" पर पहुँच गई मैं माँ के लिये गौतम बुध के चित्र वाली डायरी ले रही थी। मिनाक्षी और कुश बड़ी अंतरंगता और अपनत्व से बात करते दिखे स्टाल के अंदर सो मैं बाहर रुक गयी। मुझे देखते ही कुश के चेहरे पर हंसी की रेखा आगयी और बड़ी ही गर्म जोशी से उसने स्वागत किया तो लगा हम अपने ही घर में हैं। बैठ कर उससे बात की सालो से बिना मिले ब्लॉग और फिर वेबसाइट को लेकर कुश से बहुत बात की पर मिलना कभी नहीं हुआ था। मुझे तो मिलना अच्छा लगा उसका अपनत्व अच्छा लगा।
 वाणी प्रकाशन पर नीलिमा Neelima Chauhan को खोजा नहीं मिली सो उनकी किताब और फोटो के दर्शन से ही खुश हो कर आगये
उसके बाद हिंदी युग्म के स्टाल पर गए शैलेश Shailesh Bharatwasi नहीं थे वहाँ सो हम दोनों और स्टाल्स घूमने और किताबो से मिलने गए।
दुबारा १२ ऐ स्टाल पर करीब २ बजे आये , तब तक शैलेश Shailesh Bharatwasiआ चुके थे। हर साल की तरह उन्होंने स्वागत किया और कहा आप तो पहले दिन आती थी इस बार इतनी देर क्यों लगा लोग याद रखते हैं आना। फिर अपनी नयी नवोदित लेखिकाओ से परिचय करवाया नारी ब्लॉग के टैग के साथ। गौतम Gautam Rajrishi की किताब को "रोग" था सो उस समय तक उसकी डिलीवरी नहीं हुई थी। मिनाक्षी ने बहुत सी किताबे देखी और ली। ,गौतम Gautam Rajrishi को फ़ोन पर सन्देश दिया। तब तक वंदना गुप्ता Vandana Gupta शैलेश Shailesh Bharatwasi से मिलने आई। ब्लॉग पर उनसे बहुत बाते हुई थी पर मिलने से वंचित थे। जैसे ही मैने वंदना Vandana Gupta कहा तुरंत बड़े अपनत्व से गले मिली मन खुश होगया। फिर अपनी किताब के विमोचन पर बुलाया। काफी देर उनसे बात की उसके बाद बैक तो होम यानी रुझान @Kush Vaishnav के स्टाल पर। काफी भीड़ थी अच्छा लगा लोगो को किताबो से मोहब्बत करते देखना।
गौतम Gautam Rajrishi से मिलना चाहती थी एक फौजी को गले लगा कर प्यार करना चाहती थी। और सामने से गौतम आ रहे थे। कुश @ Kush Vaishnav से कहा देखती हूँ पहचानते हैं या नहीं पर मेरी खुशकिस्मती उन्होंने पहचान ही लिया। उनसे मिलना मेरे लिये एक उपलब्धि हैं। बहुत टाइम बाद एक घर जैसी फीलिंग हुई कुश Kush Vaishnav की वजह से। गौतम को एक की रिंग दिया गौतम बुद्ध वाला तो तुरंत कुश कहना की मुझे तो दिया नहीं अच्छा लगा फिर उनको भी दिया। ये अधिकार होता हैं।
 सामने रंजना भाटिया अपनी बेटी और नातिन के साथ बड़ा अच्छा लगा। उनसे मिलना तय था काफी साल बाद मिले पर बढ़िया लगा। फिर कुश वंदना गुप्ता की किताब के विमोचन में ले गए।
हिंदी ब्लॉगर  की किताबो को छापने वाले प्रकाशक ब्लॉगर मिल कर एक हिंदी ब्लॉगर कोना स्टैंड भी अगले साल बनवा ले जरुरी हैं अच्छा लगा की आप लोगो में कोई ईर्ष्या नहीं हैं 
अब अगले साल रिटर्न ऑफ़ दी बुक फेयर का इंतज़ार

October 12, 2016

एक खुला पत्र फेसबुक के रावण भक्तो के नाम

हे  रावण भक्तो 
सादर सप्रेम नमस्ते
पता चला की तुम्हारे इष्ट में कितनी अच्छाईया थी इस बार फेसबुक पर।  कितना विलाप हुआ उसके पुतले जलने पर इस बार इस फेसबुक भूमि पर इतना तो लंका की भूमि पर तब नहीं हुआ होगा जब वो मारा सॉरी "मरे " होंगे।  
ख़ैर उनका गुणगान करने वालो ने अभी तक किसी भी स्टेटस में उनको " श्री रावण जी " कह कर संबोधित नहीं किया हैं।  इतना हक़ तो बनता हैं ना आप के इष्ट देव का।  
जी हाँ सालो साल से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के भक्त आप के इष्ट का पुतला फूंक कर याद कर रहे हैं की अगर किसी में इतनी बुराइयां एक साथ हो जितनी रावण ने अपने अंदर समा ली थी तो उसकी मृत्यु बेशक एक बार होती हैं लेकिन उसका पुतला सदियों तक सुलगता हैं।  
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के भक्तो ने ऐसा कभी नहीं कहा की उनके इष्टदेव अपने मनुष्य रूप में गलतियों से बचे रहे।  विष्णु का अवतार होते हुए भी मनुष्य रूप में उन्होने हर वो दुःख तकलीफ झेली जो साधारण मनुष्य झेलता हैं और राजा बनने के बाद भी प्रजा के तंज से ना बच सके।  अपनी पत्नी को गर्भवती होने के पश्चात भी वन भेज कर सदियों के लिये अपने माथे पर कलंक का टीका  लगाया।  मनुष्य थे , यानी गलतियों के पुतले।  
रावण भक्तो आप का तर्क की रावण एक अच्छा भाई था , बहुत बढ़िया लगता हैं।  बड़ा तर्क संगत हैं आज के परिवेश में।  आप कहना  चाहते हैं अच्छा भाई वो होता हैं जो अपनी बहिन के अपमान का बदला दूसरे की माँ बहिन बीवी करके लेता हैं।  शायद ये रावण से ही इंस्पिरेशन लेकर पुरुष सदियों से नारी पर यही करता आया हैं।  यानी अपनी बहिन , बीवी , माँ बस अपनी बाकी सब केवल और केवल औरत।  
और ये तर्क की आप के इष्ट रावण ने सीता को तो छुआ ही नहीं सुन कर बड़ा अच्छा लगा , क्योंकि रोज ही सुनाई देता हैं मोलेस्टेशन और रेप में अंतर होता हैं।  आँख से वस्त्र उतारने में और हाथ से वस्त्र उतारने के अंतर को आप और आप के इष्ट दोनों मानते रहे।  
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी का जनम कथाओ के अनुसार व्यभिचारी अत्याचारी अहंकारी आपके इष्ट रावण को मारने के लिये ही हुआ था ऐसा कथाओ में हैं कहानियों में हैं।  आपके इष्ट देव रावण को स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी ने एक ज्ञानी माना हैं उन्ही कथाओ में लेकिन जैसे कभी ना कभी हर बुराई का अंत होता हैं वेसे ही रावण का भी हुआ और बुराई के अंत को याद करने के लिये पुतला जल रहा है 
कुछ प्रश्न शूपणखा और कैकई और मंथरा के पुतले जलाने को लेकर भी हैं , अब स्त्री समाज में हमेशा दोयम रही हैं तो उसका पुतला बना कर जलाने योग्य कैसे समझा जाता।