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June 25, 2012

व्यंग और सटायर

ये एक ऐसी विधा हैं जिसका ज्ञान बहुत कम लोगो को होता हैं
लोग दूसरे के ऊपर मौज मस्ती के लिये या अपनी भड़ास निकालने के लिये लिख देते हैं और उसको व्यंग या स्टायर का नाम देते हैं

व्यंग और स्टायर की विधा के ऊपर हिंदी मे तो नेट पर मुझे ज्यादा जानकारी नहीं मिली लेकिन विकी पर बहुत जानकारी इंग्लिश मे उपलब्ध हैं . Satire is primarily a literary genre or form, although in practice it can also be found in the graphic and performing arts. In satire, vices, follies, abuses, and shortcomings are held up to ridicule, ideally with the intent of shaming individuals, and society itself, into improvement.[1] Although satire is usually meant to be funny, its greater purpose is often constructive social criticism, using wit as a weapon 

यानी व्यंग या स्टायर का सबसे बड़ा मकसद होता हैं किसी भी व्यक्ति या समाज को उसकी गलतिया दिखा कर शर्मसार करना . व्यंग का मंतव्य हसाना होता हैं पर उसका मकसद केवल और केवल हास्य को हथियार बना कर सामाजिक आलोचना करना होता हैं ताकि समाज मे सुधार संभव हो सके .

A common feature of satire is strong irony or sarcasm—"in satire, irony is militant"[2]—but parody, burlesque, exaggeration, juxtaposition, comparison, analogy, and double entendre are all frequently used in satirical speech and writing. This "militant" irony or sarcasm often professes to approve of (or at least accept as natural) the very things the satirist wishes to attack.

यानी की सटायर हास्य से फरक होता हैं

हास्य यानी ह्यूमर  केवल और केवल हसाने के लिये होता हैं और जब हम सेन्से ऑफ़ ह्यूमर की बात करते हैं तो उसका मतलब केवल और केवल किसी बात मे छुपाए हुए हास्य को समझने की ताकत  होती हैं वही जब हम स्टायर की बात करते हैं तो मतलब होता हैं की हम हास्य को हथियार बनाकर किसी को सुधारने को प्रेरित करने की प्रक्रिया को शुरू करते हैं


सटायर को ब्लैक ह्यूमर भी कहा जाता है क्युकी स्टायर में हम जो लिखते या कहते हैं उसका वो मतलब नहीं होता हैं मतलब एक दम उलटा होता हैं

महिला ब्लोग्गर में मैने घुघूती बासूती और अंशुमाला को ब्लैक ह्यूमर का इस्तमाल करते बहुत देखा हैं
अंशुमाला को तो कई बार इसके लिये गलत भी समझा गया नारी ब्लॉग पर और मुझे उनके कमेन्ट को समझाना पडा दूसरी महिला ब्लोगर को . एक बार तो मै खुद ही अंशुमाला के कमेन्ट को गलत समझ कर यानी नारी विरोधी समझ कर डिलीट कर बैठी थी .



this post is inspired by a comment shilpa gave on a blog today where the author claimed that he has written a satire and shilpa refuted it in her own way


6 comments:

  1. व्यंग्य किस उद्देश्य से किया जाता हैं ये ज्यादा मायने रखता है अपने आपमें व्यंग्य गलत कभी नहीं होता.कभी जसपाल भट्टी जिस तरह का व्यंग्य करते थे वह व्यवस्था पर एक 'कटाक्ष' होता था जिसका उद्देश्य गलत नहीं होता हैं जबकि शेखर सुमन अब तक जो करते रहे हैं वो दूसरों का मजाक उडाना हैं व्यंग्य या कटाक्ष नहीं.जबकि ऐसे ज्यादातर लोग अपने बारे में जल्दी से मजाक सहन नहीं कर सकते.एक बार नवजोत सिद्धू ने उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब दे दिया था तब उन्हें बडी जल्दी स्वाभिमान याद आ गया था.राजनीति में अगर आप देखें तो शरद यादव(लालू यादव नहीं) में व्यंग्य की अद्भुत क्षमता हैं कभी संसद में उन्हें बोलते हुए सुनिएगा.
    घूघूती जी या अंशुमाला जी जिस तरह के व्यंग्यात्म लहजे में काफी सरलता से अपनी बात कहती हैं वो भी एक तरह से कटाक्ष ही हैं कभी व्यवस्था पर तो कभी हमारी किसी गलत सोच पर और ऐसे उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य को समझने में कुछ लोगों को कई बार गलतफहमी भी हो जाती हैं.पुरुषों में मुझे डॉ अमर कुमार की टिप्पणियाँ बहुत अच्छी लगती थी हालाँकि उनकी भाषा कई बार कठिन हुआ करती थी लेकि न अंदाज मस्तमौला था.इसके अलावा कुछ दिनों से एक और ब्लॉगर संजय(मौसम कौन) जी को पढना शुरु किया.उनका बात कहने का अंदाज मुझे बहुत पसंद आया.कुछ लोग और हैं जिनमें सटायर की बहुत अच्छी समझ हैं लेकिन वो अक्सर इसका गलत उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते हैं और इसमें महिला और पुरुष दोनों ही शामिल हैं.मैं नाम नहीं लूँगा आप खुद समझ जाईये.

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  2. सटायर मारना बचपन की आदत है नीजि जीवन में भी यही करती हूं | बच्ची को कितनी बार मना करू की अपने समान ना फेके नहीं मानती है किन्तु जैसे ही प्यार से कहती हूं की लाऊ दोनों मिल कर तुम्हारा समान तोड़ते है तो एक बार में ही समझ जाती है और समान अच्छे से रख देती है | किन्तु वो बच्ची है इसलिए समझ जाती है बडो से साथ आप कैसे भी बात कर ले वो उसे नहीं समझते है :( | जब नई नई ब्लॉग जगत में आई थी तो कभी ये नहीं सोचा था की लोग वास्तव में सटायर को समझ नहीं पाएंगे लगता था की कौन बेफकुफ़ होगा जो मेरे इस कथन को सच मान बैठेगा जैसे कि "बहु दहेज़ ना लाये तो किस काम की उसे जला ही दो " पर धीरे धीरे देखा की वास्तव में कुछ लोगों के विचार महिलाओ धर्म और कई अन्य विषयों को लेकर इतने ही बेफकुफाना है इसलिए जब आप मुझे महिला विरोधी समझी तो मुझे तब जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ | ब्लॉग जगत में आने के पहले आम लोगों को सोच के बारे में इतना नहीं पता था प्रारंभ में तो ऐसे विचार देख कर यहाँ से भाग जाने की इच्छा होती थी लगता था की मै यहाँ नहीं टिक सकती क्योकि मुझे कोई इस तरह की बाते कहेगा तो मै तो बिल्कुल भी बर्दास्त नहीं कर सकती और महीनो तक बस एक पाठक ही बनी रही पर मुझमे धीरे धीरे हिम्मत नारी ब्लॉग को पढ़ने के बाद आता गया और लिखना शुरू किया | वैसे आम बोलचाल में लोग ये नहीं कहते है की सटायर मार रही है कहते है की जब भी बोलती है उलटा ही बोलती है | वैसे आज ये विषय क्यों उठाया कोई खास बात |

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    1. अब ख़ास बात हो भी तो आप जैसे "ब्लॉग मेहमानों " से कह कर क्या होगा . आज के बाद ना जाने कब देवी दर्शन देगी .

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    2. हा हा हा खास बात कह तो दीजिये कम से कम हम जैसे "मेहमान" जब भी फुरसत मिले आ कर देख तो जायेंगे ना कि बात क्या है |

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  3. This is a delicate art rachna ji . very people can master it . I remember shri parsaayi ji . he was great satire writer. we need more such writers and in blog-world also .. we must have some very good writers who can write healthy satire ...which should be more on issue based.
    thanks
    vijay

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    1. vijay
      print media and blog media are completley different zones all togther
      and many people like me have not even read parsaii but may have read others

      many of us dont even read hindi sahitya
      in blog world we dont need good authors we need good issues
      good debate and some sort of forum to carry the issued forward

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