जापान से वापिस आकर अपना देश और अपने देश का खाना बहुत अच्छा लगा । चावल और बन खा खा कर तबियत उकता गयी थी । माँ के हाथ कि बनी घुईयाँ की रसेदार सब्जी और रोटी खा कर लगा कुछ खाया ।
कल से फिर रेगुलर रोटीन का काम शुरू
आज एक ब्लॉग पर एक बनारसी बाबू कि ब्लॉग पर आये कमेंट्स कि सचाई पता चली । क्या वाकयी लोग कमेंट्स
को docter करवा सकते हैं । उफ़ कमेंट्स के लिये क्या क्या करते हैं
नाग नागिन केचुल बदलते हैं सही हैं काश ये सुविधा कुछ इंसानों को भी मिली होती कम से कम वो गंदगी से निजात पा सकते थे ।
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं