काफी समय पहले से हिंदी जाल पर दूसरो कि पोस्ट को अपनी कह कर हिंदी जाल पर ब्लॉग लिखे जा रहे थे । तब उनकी भर्त्सना खुले मन से होती थी ।
आज ३ साल बाद देखने मे आ रहा हैं कि एक ब्लॉगर निरन्तर अखबारों से और किताबो से भारतीये संस्कृति , नारीवाद और ना जाने कितने विषयों पर लिखे आलेखों को सीधा सीधा टीप कर अपने ब्लॉग पर डाल रहा हैं और लोग उसकी पीठ थप थापा रहे हैं ।
उसकी पिछली दो तीन पोस्ट मे वो कमेन्ट भी हटा दिये गए हैं जो उन लिनक्स कि और इंगित करते हैं जहा ओरिजिनल आर्टिकल हैं ।
क्या हम सही करते हैं ऐसे लोगो को उर्जावान कह कर जो जान कर अपने को इंटेलिजेंट साबित करना चाहते हैं । जिस उम्र मे उनको अपनी जीविका के साधन जुटाने चाहिये उस उम्र मे वो चोरी कर रहे हैं ।
कमाल हैं ,
नाम देने कि जरुरत आज महसूस नहीं हो रही पर शीघ्र ही दूंगी
प्रेरणा और चोरी मे अंतर हैं , ओरिजिनल लेखक का नाम देना और लिंक देना जरुरी हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं