हर साल की तरह इस साल भी इंटरनेशनल बुक फेयर दिल्ली में लगा सो मेरा जाना निश्चित था। मैं सालो से इस इवेंट में जाती हूँ पहले माँ के साथ जाती थी फिर अकेले पर क्रम जारी हैं। मुझे किताबे खरीदने से ज्यादा किताबो की सोहबत और संगत से प्यार हैं ऐसा मुझे लगता हैं। अपने को किताबो की बीच में पाना बड़ी मस्त :) फीलिंग देता हैं। शायद बचपन से घर में किताबे देखी हैं ढेरो किताबें।
इस बार मिनाक्षी Meenakshi Dhanwantri दिल्ली में थी सोचा शायद प्रेम पर कुछ खोजने किताबो के बीच जाना चाहे सो उनसे पूछना जरुरी था। उनका साथ बड़ा अपनत्व भरा होता हैं सो फ़ोन पर पूछा और फिर दोनों पहुचे बुक फेयर।
पिछले साल का मेल मिलाप का अनुभव कुछ सही नहीं लगा था , जिनसे मिलने गयी थी उन्होंने अपनी सुविधा के हिसाब से मिलने के समय सेट किया था। क्योंकि उनको बाहर से आना था इस लिये मैने अपने ऑफिस से छुट्टी ली और गयी उनकी सुविधा अनुसार। वो मिली पर दो मिनट का समय नहीं निकाल सकी एक कप चाय के लिये। अभी आई अभी आई कह कर ४ घंटे निकल गए पर उनके पास मेरे लिये २ पल नहीं हुए। वो तो निवेदिता और अमित से भी मिलना तय था सो अपनत्व का अभाव नहीं लगा था।
ख़ैर इस बार किसी से कुछ तय नहीं किया बस फेसबुक पर लिख दिया की मिनाक्षी और मै इवेंट में होंगे। सबसे पहले मीनाक्षी कुश Kush Vaishnav के "रुझान" पर पहुँच गई मैं माँ के लिये गौतम बुध के चित्र वाली डायरी ले रही थी। मिनाक्षी और कुश बड़ी अंतरंगता और अपनत्व से बात करते दिखे स्टाल के अंदर सो मैं बाहर रुक गयी। मुझे देखते ही कुश के चेहरे पर हंसी की रेखा आगयी और बड़ी ही गर्म जोशी से उसने स्वागत किया तो लगा हम अपने ही घर में हैं। बैठ कर उससे बात की सालो से बिना मिले ब्लॉग और फिर वेबसाइट को लेकर कुश से बहुत बात की पर मिलना कभी नहीं हुआ था। मुझे तो मिलना अच्छा लगा उसका अपनत्व अच्छा लगा।
वाणी प्रकाशन पर नीलिमा Neelima Chauhan को खोजा नहीं मिली सो उनकी किताब और फोटो के दर्शन से ही खुश हो कर आगये
उसके बाद हिंदी युग्म के स्टाल पर गए शैलेश Shailesh Bharatwasi नहीं थे वहाँ सो हम दोनों और स्टाल्स घूमने और किताबो से मिलने गए।
इस बार मिनाक्षी Meenakshi Dhanwantri दिल्ली में थी सोचा शायद प्रेम पर कुछ खोजने किताबो के बीच जाना चाहे सो उनसे पूछना जरुरी था। उनका साथ बड़ा अपनत्व भरा होता हैं सो फ़ोन पर पूछा और फिर दोनों पहुचे बुक फेयर।
पिछले साल का मेल मिलाप का अनुभव कुछ सही नहीं लगा था , जिनसे मिलने गयी थी उन्होंने अपनी सुविधा के हिसाब से मिलने के समय सेट किया था। क्योंकि उनको बाहर से आना था इस लिये मैने अपने ऑफिस से छुट्टी ली और गयी उनकी सुविधा अनुसार। वो मिली पर दो मिनट का समय नहीं निकाल सकी एक कप चाय के लिये। अभी आई अभी आई कह कर ४ घंटे निकल गए पर उनके पास मेरे लिये २ पल नहीं हुए। वो तो निवेदिता और अमित से भी मिलना तय था सो अपनत्व का अभाव नहीं लगा था।
ख़ैर इस बार किसी से कुछ तय नहीं किया बस फेसबुक पर लिख दिया की मिनाक्षी और मै इवेंट में होंगे। सबसे पहले मीनाक्षी कुश Kush Vaishnav के "रुझान" पर पहुँच गई मैं माँ के लिये गौतम बुध के चित्र वाली डायरी ले रही थी। मिनाक्षी और कुश बड़ी अंतरंगता और अपनत्व से बात करते दिखे स्टाल के अंदर सो मैं बाहर रुक गयी। मुझे देखते ही कुश के चेहरे पर हंसी की रेखा आगयी और बड़ी ही गर्म जोशी से उसने स्वागत किया तो लगा हम अपने ही घर में हैं। बैठ कर उससे बात की सालो से बिना मिले ब्लॉग और फिर वेबसाइट को लेकर कुश से बहुत बात की पर मिलना कभी नहीं हुआ था। मुझे तो मिलना अच्छा लगा उसका अपनत्व अच्छा लगा।
वाणी प्रकाशन पर नीलिमा Neelima Chauhan को खोजा नहीं मिली सो उनकी किताब और फोटो के दर्शन से ही खुश हो कर आगये
उसके बाद हिंदी युग्म के स्टाल पर गए शैलेश Shailesh Bharatwasi नहीं थे वहाँ सो हम दोनों और स्टाल्स घूमने और किताबो से मिलने गए।
दुबारा १२ ऐ स्टाल पर करीब २ बजे आये , तब तक शैलेश Shailesh Bharatwasiआ चुके थे। हर साल की तरह उन्होंने स्वागत किया और कहा आप तो पहले दिन आती थी इस बार इतनी देर क्यों लगा लोग याद रखते हैं आना। फिर अपनी नयी नवोदित लेखिकाओ से परिचय करवाया नारी ब्लॉग के टैग के साथ। गौतम Gautam Rajrishi की किताब को "रोग" था सो उस समय तक उसकी डिलीवरी नहीं हुई थी। मिनाक्षी ने बहुत सी किताबे देखी और ली। ,गौतम Gautam Rajrishi को फ़ोन पर सन्देश दिया। तब तक वंदना गुप्ता Vandana Gupta शैलेश Shailesh Bharatwasi से मिलने आई। ब्लॉग पर उनसे बहुत बाते हुई थी पर मिलने से वंचित थे। जैसे ही मैने वंदना Vandana Gupta कहा तुरंत बड़े अपनत्व से गले मिली मन खुश होगया। फिर अपनी किताब के विमोचन पर बुलाया। काफी देर उनसे बात की उसके बाद बैक तो होम यानी रुझान @Kush Vaishnav के स्टाल पर। काफी भीड़ थी अच्छा लगा लोगो को किताबो से मोहब्बत करते देखना।
गौतम Gautam Rajrishi से मिलना चाहती थी एक फौजी को गले लगा कर प्यार करना चाहती थी। और सामने से गौतम आ रहे थे। कुश @ Kush Vaishnav से कहा देखती हूँ पहचानते हैं या नहीं पर मेरी खुशकिस्मती उन्होंने पहचान ही लिया। उनसे मिलना मेरे लिये एक उपलब्धि हैं। बहुत टाइम बाद एक घर जैसी फीलिंग हुई कुश Kush Vaishnav की वजह से। गौतम को एक की रिंग दिया गौतम बुद्ध वाला तो तुरंत कुश कहना की मुझे तो दिया नहीं अच्छा लगा फिर उनको भी दिया। ये अधिकार होता हैं।
सामने रंजना भाटिया अपनी बेटी और नातिन के साथ बड़ा अच्छा लगा। उनसे मिलना तय था काफी साल बाद मिले पर बढ़िया लगा। फिर कुश वंदना गुप्ता की किताब के विमोचन में ले गए।
हिंदी ब्लॉगर की किताबो को छापने वाले प्रकाशक ब्लॉगर मिल कर एक हिंदी ब्लॉगर कोना स्टैंड भी अगले साल बनवा ले जरुरी हैं अच्छा लगा की आप लोगो में कोई ईर्ष्या नहीं हैं
सामने रंजना भाटिया अपनी बेटी और नातिन के साथ बड़ा अच्छा लगा। उनसे मिलना तय था काफी साल बाद मिले पर बढ़िया लगा। फिर कुश वंदना गुप्ता की किताब के विमोचन में ले गए।
हिंदी ब्लॉगर की किताबो को छापने वाले प्रकाशक ब्लॉगर मिल कर एक हिंदी ब्लॉगर कोना स्टैंड भी अगले साल बनवा ले जरुरी हैं अच्छा लगा की आप लोगो में कोई ईर्ष्या नहीं हैं
अब अगले साल रिटर्न ऑफ़ दी बुक फेयर का इंतज़ार
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