ब्लॉगवाणी कि वापसी से बहुत से ब्लॉगर के ब्लॉग को साँस लेने कि सुविधा पुनः मिल गयी । ब्लॉगवाणी के ब्लॉग पर मैने कहा हैं ब्लोग्वानी पर सदस्यता शुल्क लगा दे १२०० रुपए प्रति साल और जो ब्लॉगर ये शुल्क दे वही ब्लोग्वानी कि सुविधा को उठाये । सारे झंझट ख़तम । ये ‘माडरेटर” जैसा दर्जा जिस को भी दिया जायेगा उसकी निष्पक्षता तब तक प्रश्नचिन्हित रहेगी जब तक हम कोई शुल्क नहीं देते और ‘माडरेटर”कि बात को एक रुल मानते हैं । इस प्रकार से आप अनजाने मे ही सही एक गुट को बढावा दे रहे हैं ब्लोगिंग मे । क्युकी आप ने इस ब्लॉग पर राय मांगी हैं सो अपनी राय दे रही हूँ ।
अगर हम ब्रॉड बैंड के लिये ३०० - १००० रुपए महिना खर्च कर सकते हैं तो १२०० साल कि सदस्यता ब्लोग्वानी कि ले कर अपने लिखे को पढ़वा भी सकते हैं । जो सदस्यता ना ले वो पढ़ तो सकते हैं पर उनका लिखा ब्लॉगवाणी पर आयेगा नहीं । हिन्दी को आगे ले जाने के लिये हम इतना तो कर ही सकते हैं । और ये सदस्यता शुल्क प्रति ब्लॉग होना चाहिये । हिन्दी का प्रचार प्रसार करने के लिये ये राशि कुछ भी नहीं हैं क्युकी ये केवल १०० रुपए प्रति माह होती हैं ।
पसंद ना पसंद इत्यादि जब सदस्यों के बीचे मे होगी तो किसी को भी आपत्ति नहीं होगी ।
कल मैने एक लिंक देखा हैं जिस जो ये हैं चिठ्ठाजगत । अगर ये जानकारी सही हैं तो क्या वाकई ये सुविधा बिना किसी मकसद के उपलब्ध कराई गयी हैं । अगर नहीं तो ये भ्रांती क्यूँ हैं ।
कोई भी सुविधा अगर दी जाती हैं तो उस पर प्रश्न चिन्ह लगते ही हैं क्युकी आज कल जागरूकता बहुत हैं और जागरूक रहने के साधन भी हैं ।
पारदर्शिता बहुत जरुरी हैं । और पारदर्शिता तभी सम्भव हैं जब हम सब उसके लिये उस के लिये जिम्मेदार हो ।
हिन्दी के प्रचार प्रसार कि बात सब करते हैं पर चिंता सबको केवल और केवल अपने ब्लॉग कि ही होती हैं । हमारा लिखा पढा गया या नहीं यही सब के लिये जरुरी हैं
ब्लोग्वानी के बंद होने से कुछ पोस्ट पर ये भी पढा कि हम विरोध मे पोस्ट नहीं कर रहे , ये कैसा विरोध हैं , ये तो एक प्रकार कि अहम् हैं कि हम इतना अच्छा लिखते हैं कि हम नहीं लिखेगे तो पाठक अच्छा पदने से महरूम हो जाएगा
पसंद पर एक क्लिक मेरी हैं अपना लिखा पसंद ना किया तो क्या किया !!!!
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हम तो जनम से कड़के है जी, १२०० रुपयें चार्ज लगा देंगे तो लायेंगे कहाँ से...
ReplyDeleteइन्टरनेट की बात तो इसी है कि इधर- उधर से कभी ऑफिस से कभी कहीं से उसे use कर लेते है
हमारी लाज रखा लीजियेगा, १२०० रुपयें सदस्यता शुल्क लगवा कर जुलम मत करियेगा....
यह बात पैसों की नहीं है
ReplyDeleteजिसे गलत दिशा में मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है
जो अच्छा कर रहे हैं
उनके काम में नुक्ताचीनी क्यों
पैसे देकर तो
ये लोग और गुर्रायेंगे
जबकि इनकी गुर्राहट जायज नहीं है
ये किसी पर भी आक्षेप लगा सकते हैं
मात्र पैसा ही सब कुछ नहीं हो सकता
बहुत कुछ तो हो सकता है
पर सब कुछ नहीं
ध्यान दीजिएगा।
रचना जी सुझाव के लिये शुक्रिया. ब्लागवाणी के लिये मुझे नहीं लगता कि पैसा कोई मुद्दा है.
ReplyDeleteअपना लिखा पढ़वाने के लिये पैसा! काश एसा दिन आये जब हिन्दी ब्लागर अपने लिखने से ही सम्मान पूर्वक अपना घर चला पाये.
हिन्दी "सेवा" के दायरे से निकल कर रोजी रोटी की भाषा बने और धीरे धीरे एसा हो रहा है.
क्या कर दित्ता जी... सांप सूंघ जाने वाले मुहावरे का वास्तव में प्रयोग करना चाहती है क्या आप ?
ReplyDeleteफिर इन शब्दों की क्या अहमियत रह जायेगी... फोकट का चन्दन घिस मेरे नंदन..
मैं पूछता हूँ क्या जरुरत है ऐसी बात करने की जो कड़वी लगे चाहे सच ही क्यों ना हो..?
kyoon bhai garibon ko marwaane ki baat kare ho 12000/ salaan to joe jor se pukaarnaa bhi mushkil hai,
ReplyDeleteरचना जी किसी भी लोकप्रिय वेबसाइट से आर्थिक लाभ कमाना कोई बड़ी बात नहीं. ब्लागवाणी पर बिना प्रयोक्ता से पैसे लिये भी आर्थिक लाभ कमाया जा सकता है, आखिर गूगल भी सर्च के पैसे नहीं लेता.
ReplyDeleteइसका भी उपाय सोचा जा सकता है.
जब अपना लिखा पसंद आता है
ReplyDeleteतभी तो लिखा जाता है
अपनी संतान सबको प्रिय होती है
यही जमाना चाहता है।
पर हमें तो इंतजार रहेगा
रचनावाणी का ...
पर हम सिर्फ पढ़ने जाया करेंगे
इतने पैसे कहां कमा पाते हैं
अपना लिखा पढ़वाने में
जाया करेंगे
हम तो उस दिन की इंतजार में हैं
जिस दिन ब्लॉग में लिखने के
भी पैसे आया करेंगे।
इस सुझाव से असहमत, जैसा कि पंकज व्यास ने कहा, मैं कई ब्लागरों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं जिन्हें इंटरनेट की सुविधा आसानी से हासिल नहीं है, वे हिन्दी में लिखना चाहते हैं, तो क्या 1200 रुपये ज्यादा नहीं हैं उनके लिये? कई तो ऐसे हैं जो महीने भर में 1 या 2 पोस्ट लिखते हैं तो साल की 30-40 पोस्ट लिखने के 1200 रुपये चुकाना तो ज्यादती है… वेबसाईट से पैसा तो अन्य तरीकों से भी कमाया जा सकता है, और जैसा कि वाचस्पति जी ने कहा, कुछ सिरफ़िरे तो पैसा देकर और भी ज्यादा गुर्रायेंगे, उनका क्या कीजियेगा? सदस्यता फ़ीस वाला सुझाव सही नहीं है, सिरिल भी इसे मान चुके हैं।
ReplyDeleteसुरेश थैंक्स की आप ने कम से कम सहमत और असहमत की बात की । कमेन्ट मे यही बात हो तो एक बहस मे भी राय निकल आती हैं । अगर शुल्क नहीं होगा तो लिखने वाला केवल और केवल ब्लोग्वानी पर ही तो नहीं दीखेगा
ReplyDeleteबाकी उसका ब्लॉग तो रहेगा ही । १०० रुपए प्रति माह भी हम खर्च नहीं करना चाहते और सुविधा सब चाहते हैं । फिर क्यूँ पसंद और ना पसंद की बात उठती हैं । ब्लॉग लिखो , क्या जरुरी हैं की उसको संकलक पर डालो ।
ब्लॉग बना ही अपनी खुशी के लिये लिखने के लिये हैं पर अगर आप को "दूसरो को पढ़वाने " के लिये लिखना हैं तो पैसा दो और पढ़वाओ । आपस मे जितना चाहे पसंद ना पसंद करते रहो ।
चलिये एक बहस की शुरुआत तो इस दिशा मे हुई. आखिर बात कहीं से शुरु तो होती ही है.
ReplyDeleteरामराम.
आप कहते हैं "हम फ्री मे सेवा दे रहे हैं " सो हम को कोई कुछ ना कहे लेकिन ये सम्भव नहीं हैं क्युकी फ्री सेवा जब "लोक कल्याण " के लिये होती हैं तो उसको भी पारदर्शी होना होगा । क्युकी अब बात मोदेरेशन की हैं तो अगर ये ब्लोग्वानी टीम के अलावा को इस और करेगा तो निश्चित रूप से पारदर्शिता ख़तम होगी । कोई भी अपनी पसंद कह कर किसी को भी पसंद कर लेता हैं ।
ReplyDeleteब्लॉग वाणी पर हमारा अधिकार हो इसके लिये सदस्यता शुल्क आवश्यक हैं ख़ास कर उनके लिये जिनको एक दिन ब्लोग्वानी ना होने से ख़तरा महसूस हुआ ।
बात "लोकप्रिय वेबसाइट से आर्थिक लाभ कमाना" की नहीं हैं बात हैं की क्या फ्री सेवा थी इसलिये ख़तम होते ही शोर हुआ और सदस्यता शुल्क कोई नहीं देगा ।
कितने ही लेखक हैं जो हिन्दी मे किताब छपाते हैं अपने ही पैसे से ।
Cyril
Lets us make someone accountable
and is spending Rs 100 per month to difficult to difficult for promotion of hindi
Till there were just 100 or so bloggers it was a " in house gap shap manch " but with 5000 odd hindi writers it would be better to collect money
even if blogvani is not intersted to use the money , it can be used to promote HINDI
पी सी आप ने बताया नहीं अपना नजरिया ।
ReplyDeleteकुछ सिरफ़िरे तो पैसा देकर और भी ज्यादा गुर्रायेंगे, उनका क्या कीजियेगा?
ReplyDeletesadsytaa daenae kaa adhikaar { right to admission reserved } kewal blogvani team ko hii hoga
ये रूपये वाला आइडिया चलेगा ही नहीं
ReplyDeleteउसका सबसे बड़ा कारण है.... लोगों की तुच्छ मानसिकता। ये भी तो हो सकता है कि कोई सिरफिरा पैसे खर्च करके ऐसी वैसी हरकत करे और कहे, हमने तो पैसा दिया है, क्यों न करें वह जो नहीं करना चाहिए
एक पोस्ट का एक रूपया ज़्यादा बेहतर है
ReplyDeleteदेखने सुनने में भी मधुरता लगती है :-)
हिसाब किताब के लिए पिछले 365 की पोस्ट्स के बराबर का एडवांसनुमा जमा करवा लेना चाहिए
बी एस पाबला
सबके सब भाग लेगे नए एग्रीगेटर की तलाश में ....
ReplyDeleteरचना जी आपसे असहमत, धन को लेखक के लेखों को प्रकाशित और पढ़ाने के लिये नहीं किया जाना चाहिये इससे तो हो सकता है कि कुछ अच्छे चिट्ठाकार लिखना ही बंद कर दें या नये लोग चिट्ठाकारी में आने से ही कतरायें। हाँ कोई और तरीका ईजाद किया जाना चाहिये।
ReplyDeleteरचना, चलिये बहस की शुरुआत सही हुई… बात ये नहीं है कि "सुविधा तो सभी चाहते हैं लेकिन 100 रुपया महीने भी नहीं देना चाहते"। अभी हिन्दी ब्लॉगिंग उस स्तर पर नहीं पहुँची कि हिन्दी लिखने वाले (जो पहले से ही कम हैं) पैसा देकर कहीं अपनी रचना प्रकाशित करें। जो संकलक यह सुविधा दे रहा है, उसके पास अन्य कई जरिये हैं लागत निकालने के (कम से कम ऐसा कोई भी संकलक नो प्राफ़िट नो लॉस के आधार पर चलाया जाना चाहिये, विज्ञापन वगैरह लगाकर)। रही बात गर्राने वालों की तो एक बार आपने उनसे पैसा ले लिया तो वे गर्राते ही रहेंगे, कभी संतुष्ट नहीं होंगे… और यदि सदस्यता समाप्त कर दी तो किसी दूसरे संकलक पर जाकर कपड़े फ़ाड़ने लगेंगे…। असली समस्या है स्वान्तः सुखाय न लिखने वालों से, उन्हें ही पसन्द की चिन्ता सताती रहती है। ये सारा झमेला ही इस बात से शुरु हुआ है कि तेरी पसन्द मेरी पसन्द से ज्यादा क्यों और कैसे? किसी "खास विचारधारा" के चिठ्ठे पर अधिक पसन्द देखकर कईयों के पेटदर्द होता है, उसका क्या किया जा सकता है। चन्द विघ्नसंतोषियों की हरकतों की वजह से 1200 रुपये (या कुछ भी) का भार हिन्दी चिठ्ठाकारों पर एक भारी बोझ बन जायेगा… (मुझे नहीं पता कि अंग्रेजी में किसी संकलक के साथ भी ऐसा होता है क्या? यानी सदस्यता शुल्क वगैरह। यदि होता हो तो मुझे अवश्य सूचित करें, यदि नहीं होता हो, तो इसका मतलब होगा कि हिन्दी चिठ्ठे लिखने वाले गोबर पट्टी के कुछ नालायक ही हैं जो पोखर में ही रहना पसन्द करेंगे)
ReplyDelete
ReplyDeleteआज सुबह ब्लागवाणी ब्लाग पर आपकी टिप्पणी देख कर असहज हो गया, यह ख़्याल मेरे मन में आया था । इसे उछालने से पहले जब विचार किया तो पाया कि यह सँभव नहीं है । मुफ़्त के माल और सुविधा पर इतनी धौंस-पट्टी, तो सशुल्क सेवा लेने पर तो ब्लागवाणी टीम को अपने ताबेदार से अधिक कुछ और न समझेंगे । साबित करें कि मैं गलत सोच रहा हूँ ?
आपका दूसरा तर्क तो एकदम ही भटकाने वाला है, यदि धन खर्च करने से किसी साहित्य या भाषा का प्रसार सँभव होता, तो राजभाषा प्रकोष्ठ और अन्य हिन्दी प्रसार निदेशालय अब तक अपना लक्ष्य क्यों न पा सका ? अकेले ’ हिन्दी अपनाइये ’ के बैनर पर प्रतिवर्ष कितना व्यय किया जाता है, एनी गेस ? कोई अँदाज़ा पेश करिये, बाद में मैं इसका ख़ुलासा भी दूँगा !
सो. रचना मैडम जी, स्टार्ट गेसिंग नाऊ ..
हालाँकि मेरी कोई योग्यता तर्कशास्त्र या हिन्दी में नहीं है, फिर भी टिप्पणी विकल्प खुला देख टिपिया दिया । अनिधिकृत तो नहीं है, न ?
कुल मिलाकर बहस शायद इस दिशा मे जा रही है कि कोई धन वगैरह देने की बंदिश नही होनी चाहिये? लेकिन ये आईडिया एक दम फ़्लाप भी नही है. आज भेले ही लगता हो. अगर सच्चे अर्थों मे कोई हिंदी से प्रेम ही करता हो तो पाबलाजी वाली एक रुपये प्रति पोस्ट मे दम है. बात वो भले ही मजाक मे कह रहे हों..पर इस एक रुपये से बहुत कुछ किया जा सकता है.
ReplyDeleteरामराम.
सुरेश असली समस्या हैं ब्लॉग मे हो रही गुटबंदी । यहाँ लोग जो ख़ुद कहते हैं जब उनपर आती हैं तो तिलमिलाते हैं । अगर हम सदस्यता शुरू करेगे तो कम से कम ये जरुर होगा की उस समुदाय मे जो भी लिखेगा वो उस समुदाय को मानेगा , उसके नियम मानेगा । अपनी व्यक्तिगत राय के तहत मुझे तो लगता हैं पढ़ने का अधिकार भी सदस्य शुल्क के बाद ही हो ताकि सब तरफ़ सिर्फ़ वाह वाही ही हो ।
ReplyDeleteआप ब्लॉगर हैं और ब्लोगिंग करते हैं आप से सहमत और असहमत हुआ जा सकता हैं पर जो लोग ब्लॉग पर कविता , कहानी लिखते हैं उनको आपस मे एक दूसरे से कम और ज्यादा आक्नाए की क्षमता कितनो मे हैं ? आप पसंद ना पसंद कर सकते हैं पर वो अच्छा और वो बुरा कैसे कह सकते हैं लेकिन यहाँ कहा जाता हैं । पूछो तो अपने गुट के ब्लॉगर से एक दूसरे पर रोपण प्रत्यारोपण करवाया जाता हैं ।
एक अनाम लिखे ठीक दूसरा लिखे तो उसका नाम पता { बहुत बार जाने अनजाने अग्रीगेटर से पता करके } उछाला जाता है । मजाक और दूसरे की भावनाओं को मौज कह कर अपनी विदु़ता को बताया जाता हैं ।
नये ब्लॉगर को मेल दी जाती हैं और लिस्ट भेजी जाती हैं इनको मत पढ़ना । सो इस से बेहतर की जो लोग अग्रीगेटर पर रह कर ब्लोगिंग करना चाहते हैं वो एक फीस दे ।
और रही बात १०० रुपए दे सकने या ना दे सकने की तो मुझे लगता हैं अगर हमारी आर्थिक स्थिती सही नहीं हैं तो ब्लोगिंग मे समय ना ही नष्ट करे उतने समय मे स्थिति को सुधारे । ये व्यक्तिगत राय और अनुभव हैं ।
बात ये नहीं हैं की कितना पैसा हो और ना हो बात ये हैं की क्या फ्री सर्विस ख़तम होने पर जो शोर मचा हैं , जो इन्सेकुरिटी ब्लॉग समुदाये मे हुई की हमे कौन अब पढेगा वो ही समुदाय क्या पैसा दे कर हिन्दी को आगे ले जाना चाहता है या नहीं
डॉ अमर आप और मै तक़रीबन एक ही समय से इस हिन्दी ब्लोगिंग मे हैं । क्या आप को यहाँ सब कुछ उतना ही सहज लगता हैं जितना होना चाहिये । क्या यहाँ केवल और केवल राष्ट्र भाषा को आगे ले जाया जा रहा हैं या हम सब सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना अपना ठेलना चालू रखे हैं । जो हमसे पहले आये हैं क्या उनको दंडवत किये बिना हिन्दी ब्लोगिंग नहीं की जा सकती हैं ?
ReplyDeleteक्या आप सच मे बात से अनजान हैं जहाँ हिन्दी के बडे बडे लेखक ख़ुद पैसा देकर अपनी किताब छपवाते है अगर हाँ तो मेरे पास एक पुब्लिशेर हैं हिन्दी के जीके यहाँ आप को काफी लोगो की लिस्ट मिल जायेगी । और अनुदान भी उनको ही मिलते हैं जिनकी पहुच होती हैं । बहुत सी जगह सबसे पहली किताब उसकी छपती हैं जो संस्था को चलाने के लिये डोनेशन लाता हैं या पैसा देता हैं ।
मै जो लिखती हूँ वो केवल सोच से लिखती हूँ , कोई सर्वे नहीं करती आकडो का । मुझे लगा सदस्य शुल्क से समस्या कुछ हल होगी और किसी के हाथ मे मोडरेशन से और पक्षपात होगा सो मैने अपनी बात अपने ब्लॉग पर लिख दी । मैने कोई विकल्प नहीं दिया हैं , मे तो ये देखने की इच्छुक हूँ की क्या हम मे से कोई भी हिन्दी के लिये पैसा खर्च करना चाहता हैं ।
कुछ अच्छे चिट्ठाकार लिखना ही बंद कर दें या नये लोग चिट्ठाकारी में आने से ही कतरायें।
ReplyDeleteविवेक रस्तोगी क्या हिन्दी की ब्लोगिंग अग्रीगेटर के बिना सम्भव ही नहीं हैं । मैने शुल्क की बात अग्रीगेटर के लिये की हैं , ब्लॉग तो आप का नेट पर वैसे ही रहेगा हाँ संकलक पर नहीं दीखेगा अगर शुल्क नहीं देगे तो
जब अपना लिखा पसंद आता है
ReplyDeleteतभी तो लिखा जाता है
अपनी संतान सबको प्रिय होती है
यही जमाना चाहता है।
पर हमें तो इंतजार रहेगा
रचनावाणी का ...
पर हम सिर्फ पढ़ने जाया करेंगे
इतने पैसे कहां कमा पाते हैं
अपना लिखा पढ़वाने में
जाया करेंगे
हम तो उस दिन की इंतजार में हैं
जिस दिन ब्लॉग में लिखने के
भी पैसे आया करेंगे।
mai to avinash ji ke uprokt vicharon se sahmat hu ki blog likhne me paisa aana chahiye,
मै आप की बात से सहमत नही, जब कि मै इस से ज्यादा पेसे देने कि स्थिति मै हुं, लेकिन मेने अन्य ब्लागर भाईओ के साथ चलना है, ओर बहुत से ब्लांगर इतना पेसा नही लगा सकते, ओर अगर ऎसा कुछ होता है तो आधे से ज्यादा लोग भाग जायेगे, हां नियम सख्त बनाये जाये, ओर कुछ रकम इस तरह से ली जाये कि किसी को चुभे नही, जेसा कि पावलाजी ने कहा. लेकिन जब कुछ रकम ली जाये तो विदेश मै रहने वालो से साल के इकट्टॆ पेसे ले लिये जाये या उन्हे छुट दी जाये, क्योकि १ रुपया देने के लिये हमे १२००, १३००रुपये का खर्च उन्हे भेजने के लिये कम से कम देना पडेगा ..
ReplyDeleteइस लिये जेसा चलता है चले.मदद के रुप मे लोग जो चाहे दे, यह गलत भी नही.राम राम
एक शब्द छूट गया था
ReplyDeleteसही वाक्य होना चाहिए
हिसाब किताब के लिए पिछले 365 दिन की पोस्ट्स के बराबर का एडवांसनुमा जमा करवा लेना चाहिए
बी एस पाबला
आपके प्रस्ताव का मैं पूर्ण समर्थन करती हूँ......आपने मेरे ही मन की बात कह दी.
ReplyDeleteब्लोग्वानी या इसी तरह के और भी एग्रीगेटर के रूप में जो इतना बड़ा प्लेटफोर्म उपलब्ध है हिंदी पाठकों को इसकी कीमत अधिकांश लोग बिलकुल ही नहीं समझ नहीं पा रहे...मुझे बड़ा ही अफ़सोस होता है यह देखकर..यदि यह माध्यम उपलब्ध न हो तो लेखक पाठक वर्ग कहाँ से तलाशेंगे...?????????
टीम ने निशुल्क इस सेवा के लिए अपने जेब से जो खर्च किया है या जो समय और श्रम खर्च कर रहे हैं,उसकी क्या कोई कीमत नहीं होनी चाहिए ????
मेरा तो सुझाव है कि टीम कुछ और सुविधाएँ अपने अग्रीगेटर में जोड़ दे और उसके लिए निश्चित शुल्क ले....
ब्लोग्वानी टीम को मैं बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने सेवा फिर से बहाल कर दी...
असहमत हूँ ..कई विद्यार्थी भी ब्लॉग लिखते हैं वे कहाँ से देंगे. हाँ अगर यह वैकल्पिक हो तब ठीक है ..लेकिन तब जो अधिक देंगे वे धौंस दिखायेंगे.
ReplyDeleteभई हम तो स्वतंत्र लेखक हैं पत्रिकाओ मे रचना भेजते है छपती है तो पारिश्रमिक से नमक सब्ज़ी वगैरह आ जाता है (आटा दाल चावल नही) .पत्रिकाएँ छपने की सूचना भी मुफ्त मे छापती हैं । अब हज़ार रुपये प्रतिमाह के खर्च पर यह शौक पाल लिया है । बहुत सारे अच्छे लेखक इसलिये भी जुड़ नही पाते हैं कि यहाँ मिलना जुलना तो वैसे भी कुछ नहीं है गाँठ का पैसा ज़रूर जाना है । इसलिये वे रईसों के इस शौक को दूर से ही सलाम करते हैं । अब बताइये हिन्दी का गरीब लेखक क्या करे ? और नये लेखक ,बेरोजगार छात्र .उनका क्या होगा । ब्लॉग जगत का भविष्य किन लोगों के हाथ मे होगा ? हिन्दी कवि सम्मेलन का मंच जिस तरह धनाढ्य लोगो ने खरीद लिया और उसका जो हश्र हुआ वह सब जानते है ।
ReplyDelete@ पाबला जी
ReplyDeleteध्यान दिया जाए
गौर किया जाए
कह रहे हैं
पाबला जी
365 पोस्ट के लिए
एक रुपैया सिर्फ
हमें भी यही
जायज लगता है।
पर फिर ख्याल आता है
इंसान रावण को
खड़ा करके क्यूं जलाता है
क्योंकि उसे लिटा
नहीं पाता है।
इसलिए हिन्दी हित संधान
करने दें ब्लॉगवाणी को
इसे पैसावाणी या धनवाणी में
रूपांतरित करने की चेष्टा न करें।
वैधानिक चेतावनी :-
सिरिल जी ने तो आरंभ में ही
मना कर दिया है धन के बारे में
फिर क्यों मन बहका रहे हैं
बहस को फिसला रहे हैं।
जो समर्थ हैं वो तो तैयार हों..बाकी पर विचार किया जा सकता है केस टू केस बेसिस पर.
ReplyDeleteविमर्श जारी रखें, फिर आते हैं. :)
ब्लागरो का दीमाग बहुत तेज चलता है, ब्लागर क्या क्या सोच लेता है।
ReplyDeleteहमारे पास सम्पदा तो है नही बौद्धिक सम्पदा है, वही दे सकते है। :)
रचना जी,
ReplyDeleteआपका शुल्क वाला सुझाव बिल्कुल जायज है किन्तु यह बात भी सही है कि हिन्दी ब्लॉगर को अपने ब्लॉगस से कुछ भी कमाई नहीं होती, तो वह शुल्क कहाँ से पटायेगा। शुल्क लगाने से सिर्फ यह होगा कि बहुत सारे ब्लॉगर्स ब्लॉगवाणी से कट जायेंगे, सिर्फ कुछ सम्पन्न ब्लॉगर्स ही जुड़े रह पायेंगे।
हिन्दी ब्लॉग्स से कमाई शुरु होने दीजिए, ब्लॉगर्स लोग भी शुल्क पटाने के लिए सहर्ष तैयार हो जायेंगे।
मैं आपसे पूरी तरह असहमत हूं.. जैसा कईयों ने कहा है कि अधिकांश ब्लौगर आर्थिक रूप से उतना नहीं दे सकते हैं.. आपका कहना है कि अगर उतना सक्षम नहीं हैं तो पहले उतना सक्षम हों फिर ब्लौगिंग करें(यह आपका व्यक्तिगत राय है, जैसा आपने लिखा है), मुझे तो यह राय या सलाह कम और अहंकार ज्यादा दिख रहा है..
ReplyDeleteअब आते हैं विवादों पर.. अगर आज एक संकलक पैसा मांगता है(चाहे कोई भी हो) तो कल दूसरा भी मांगेगा.. इससे गुटबाजी को और बढ़ावा मिलेगा जो हिंदी के लिये कहीं से भी अच्छा नहीं है.. दूसरी बात यह कि जो गरीब हैं और इतना वहन नहीं कर सकते हैं वे ब्लौगर वे हतोत्साहित होकर या तो लिखना छोड़ देंगे या फिर उसी प्रिंट की ओर मुंह ताकने लगेंगे..
अब आते हैं उस लिंक की ओर जो आपने लगाया है.. अगर वैसे देखें तो मैं भी कम अमीर नहीं हूं.. हां चिट्ठाजगत जितना नहीं.. उस तरह के दाम बताने वाले पच्चिसों साईट बिखरें पड़ें हैं.. उन पर ध्यान ना दें..
PD
ReplyDeleteis blog par jo bhi likhte hun apni baat hotee haen apnae liyae hotee haen . व्यक्तिगत राय aur सलाह do alag alag baatey haen aur isiiliyae usko spasthaa sa kehaa bhi haen maenae
aur vyaktigat raay rakhna agar ahankaar haen to mujeh khushi haen ki mujh mae sochane ki taakat haen
सच कहूं तो मुझे तो इसमें भी किसी साजिस की बू आ रही है ! क्या ही अच्छा रहता कि आप बोल्ग्बानी से अनुरोध करते कि आप अच्छी रचनाओं पर रचनाकार को शुल्क दे, बजाये शुल्क लगाने के !
ReplyDeleteअगर पैसे देने की बात है तो सेवाओं को और ज्यादा professional होना होगा.. फिर आपको दिन में १०-२० पोस्ट ही नजर आयेगी.. ये तो समस्या का हल नहीं हो सकता...
ReplyDeleteavinash ji ki baat se sehmat:
ReplyDelete"मात्र पैसा ही सब कुछ नहीं हो सकता
बहुत कुछ तो हो सकता है
पर सब कुछ नहीं
ध्यान दीजिएगा।"
par saath hi ye jodna chahoonga ki ....
sab kuch ki
chah bhi kahan....
bahut kuch bhi nahi chahiye...
thoda kuch se kaam chal jaiyega....
aur ye thoda kuch...
...us bahut kuch main se mil jaiyega.
jo paison se aaiyega !!!
to islye prastav uchit hai....
thode se ferbadal aur vichar ke baad lago kiya ja sakta hai..
और रही बात १०० रुपए दे सकने या ना दे सकने की तो मुझे लगता हैं अगर हमारी आर्थिक स्थिती सही नहीं हैं तो ब्लोगिंग मे समय ना ही नष्ट करे उतने समय मे स्थिति को सुधारे । ये व्यक्तिगत राय और अनुभव हैं ।
ReplyDeleteइसका क्या मतलब है? अगर ऐसा हो तो दुनिया में प्रेमचंद, एडगर एलेन पो, मार्क्स, ब्रांट सिस्टर्स, वोन गोग जैसे घोर गरीबी के बावजूद खुद को अभिव्यक्त करने वाले वाले लेखक और कालाकार नहीं होंगे.
और फिर ब्लोगवाणी ही पैसा क्यों ले, ब्लॉगर, गूगल सर्च, क्विलपैड पैसा क्यों न लें? फायरफोक्स पैसा क्यों न ले, हर एडऑन और थीम डाउनलोड करने का पैसा क्यों न माँगा जाये. प्रयोक्ताओं के लिए कुछ भी फ्री क्यों रहे?
लोकप्रिय साइटें और ब्लोगर भी फ्री में अपना कंटेंट क्यों पढने दें? विकिपीडिया को भी शुल्क वसूलना चाहिए? मैंने खुद आजतक वेब पर डोमेन नेम/होस्टिंग और शोपिंग के आलावा किसी भी सेवा के लिए कोई शुल्क नहीं दिया है, जहाँ कोई शुल्क मांगने लगता है वहीँ दसियों ऐसी साइटें आ जाती हैं जो उससे अच्छी सेवा मुफ्त देने तैयार हैं.
ब्लोगवाणी मुझे लिस्ट करने का पैसा मांगेगा तो मैं अपना लिखा पढ़वाने के लिए चिट्ठाजगत या किसी नए फ्री एग्रेगेटर की ओर जाऊंगा, वहीँ मुझे उन ब्लोगरों के बारे में भी जानकारी मिल जायेगी जो ब्लोगवाणी पर नहीं हैं. हजारों लोग बिलकुल मेरे जैसा ही सोचेंगे और ब्लोगवाणी की लोकप्रियता में भारी गिरावट आ जायेगी.
अगर हर वेब सर्विस की औसत हज़ार रुपये फीस लगने लगे तो..... गूगल के हज़ार, याहू के हज़ार, ब्लोग्गर के हज़ार, एग्रेगेटर के हज़ार, लोकप्रिय हिंदी ब्लोग्स के पॅकेज के हज़ार, फायरफोक्स के हज़ार, ईमेल के हज़ार, विकिपीडिया के हज़ार, हर (अभी फ्री में डाऊनलोड के लिए उपलब्ध) सोफ्वेयार्स के हज़ार, बीबीसी/टाइम्स/न्यूजवीक/हेल्थ साईट/ टेक साइट के हज़ार, फोरम के हज़ार, यूट्यूब के हज़ार, हर वेब वेब अप्लिकेशन्स के हज़ार-हज़ार......................... लिस्ट गोज़ ऑन !!!
मेरी नज़र मे वो बात केवल और केवल स्वाबलंबन की दिशा मे पहला कदम हैं । अगर पैर मजबूत नहीं होगे तो कोई भी गिरा सकता हैं । आर्थिक रूप से अपने को मजबूत करने के लिये कहना अगर किसी को चोट पहुचता हैं तो वो व्यक्ति एक बार फिर सोचे की जो मैने कहा उसमे कितना हिस्सा हैं चोट पहुचाने वाला । सभी आत्म निर्भर हो और तभी शौकिया चीजों पर खर्च करे ये कहने मे किसका अहम् टूट गया , नहीं समझ रही हूँ । क्या ब्लोगिंग शौक की नहीं जरुरत की चीज़ हैं की उसके बिना नहीं रहा जा सकता और इस लिये उस से सम्बंधित हर सेवा फ्री मे उपलब्ध करवाई जाये
ReplyDeleteब्लॉग्गिंग किसी के लिए शौकिया हो सकती है किसी के लिए ज़रूरत भी हो सकती है. मेरी आवाज़, भावनाओं, विचारों, कविताओं, कार्टूनों, लेखों, विश्लेषणों, दुखों,समस्याओं, कुंठाओं, नज़रिए को मेरे आसपास का कोई भी इंसान नहीं समझता, न मेरे परिवार के लोग न ही आसपास के लोग इनसे कोई सरोकार रखते हैं, न ही समझने की कोशिश करते हैं (किसी के पास समय नहीं है,या किसी के सर पर से ये सब कुछ गुज़र जाता है). मैं अपने काम से इतनी फुर्सत और कमाई नहीं पाता हूँ की अपने जैसे विचारों वाले लोगों को शहर भर में खोजता फिरूं. अपनी अभिव्यक्तियां पत्र-पत्रिकाओं को भेजता हूँ तो कभी छपती हैं अधिकतर नहीं.
ReplyDeleteमुझ जैसे आर्थिक और सामाजिक रूप से अलग थलग इंसान के पास फिर खुद को अभिव्यक्त करने का साधन क्या है? मेरी जगह कोई गृहणी हो सकती है, कोई छात्र-छात्र, कोई छोटा-मोटा दुकानदार, कोई नया वकील, कोई बैंकर, कोई शिक्षक, किसान, सेल्समैन, बेरोजगार, शौकिया राजनैतिक विश्लेषक जो की एक व्यस्त मैकेनिक हो इत्यादि इत्यादि
एक ब्लॉग्गिंग थी, खुद को अभिव्यक्त करने और अपने जैसे लोगों से जुड़ने का साधन, उसमे भी पैसे की बात होने लगी.
अभिव्यक्ति कभी भी शौकिया नहीं होती, यह इंसान की मूलभूत ज़रूरतों में से एक है. समस्याओं से दबा इन्सान दूसरो से कह कर खुद को अभिव्यक्त करता है, अब बोलने सुनाने कोई न हो तो लिख कर अपने विचार संप्रेषित करता है, खुद को अगर अभिव्यक्त नहीं करेगा तो अन्दर ही अन्दर घुट जाएगा, कई शारीरिक और मानसिक रोगों का मरीज़ हो जाएगा
ईमानदारी से खुद से पूछिए क्या आप भी ब्लॉग्गिंग में इसी कारण से हैं? या आपकी ब्लॉग्गिंग शौकिया है.
मैं तो कहूँगा की टेक्नोलोजी ने हमसे हमारे रिश्ते नाते और आत्मीयता छीन ली है, वर्चुअल जीवन उसी की भरपाई का अपर्याप्त सा ही सही एक प्रयास है.
आपकी इस बात से एकदम असहमत
ReplyDeleteऔर रही बात १०० रुपए दे सकने या ना दे सकने की तो मुझे लगता हैं अगर हमारी आर्थिक स्थिती सही नहीं हैं तो ब्लोगिंग मे समय ना ही नष्ट करे उतने समय मे स्थिति को सुधारे । ये व्यक्तिगत राय और अनुभव हैं ।
क्या ब्लॉगिंग का अधिकार उन्हीं का रहेगा जो 100/- महीना दे सकेंगे?
यह तो एक तरह की तानाशाही हो जायेगी, ये शब्द रचना जी ने लिखें हैं सोच कर ही आश्चर्य हो रहा है।
.......लगे हाथों उन्हें अपनी स्थिती सुधारने का तरीका भी बता दें।
ReplyDeleteये ना भूलें कि हिन्दी के अधिकांश लेखक गरीब थे।
जब सिरिल यह कह चुकें है कि शुल्क मुद्दा नहीं है तो इस बहस का कोई फायदा ही नहीं। आज तक कभी मैथिलीजी-सिरिलजी ने शुल्क की बात नहीं की।
ReplyDeleteमेरे सुझाव में तो जो आज तक जैसा चल रहा है वही रहने दें, किसी बाहरी को टींम में शामिल करने, मॉडरेशन आदि का अधिकार देने आदि की कोई जरूरत नहीं। जिन्हें ब्लॉगवाणी पर अपना ब्लॉग दिखाना है, आपके निर्देशों का पालन करे अन्यथा अपना ब्लॉग- ब्लॉगवाणी से हटा ले।