क्या आप डेमोक्रेसी के खिलाफ हैं ?? भारत डेमोक्रेसी डिजर्व नहीं करता , बहुत से लोगो का ये मानना हैं । क्या आप का भी यही मानना हैं ?
कभी हमारा देश राज्यों मे बटा था और शासन का कार्य भार राज का था । उस समय जो गरीब और नीचे के तबके के कामगार लोग थे यानी उस समय के कोमन में , आम आदमी उनके वंशज मे बहुत से आज आज मंत्री पद पर आसीन हैं और राजा बन गए हैं । आज उनके पास अथाह सम्पत्ति हैं और उसमे इजाफा करना ही उनका मकसद हैं ।
क्या हम अपनी विरासत का कर्ज भोग रहे हैं ।
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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April 14, 2011
April 07, 2011
खुद ईमानदार होते हुए भी जब इंसान गरीब होता हैं और बेईमान को अमीर देखता हैं तो शायद रास्ता दिखना बंद हो जाता हैं
लोकपाल बिल लाने के लिये अन्ना हजारे जी अनशन पर बैठ गए हैं । सोच रही हूँ जंतर मंतर हो आऊं , दर्शन कर लूँ । कुछ और भी सवाल मन मे उठ रहे हैं
जब गाँधी जी ने civil disobedience कि बात कि थी तब हमारी लड़ाई एक विदेशी शासक से थी
गाँधी जी ने उस विदेशी शासन कि जगह भारतीये लोगो को तैयार कर लिया था कि कौन क्या बनेगा भारतीये मंत्रिमंडल मे ।
यानी वहाँ ट्रान्सफर होना था शासन का
लेकिन इस समय तो ऐसा कुछ अभी कहीं नहीं दिख रहा
कोई भी ऐसा संगठन नहीं तैयार किया गया हैं जो तुरंत देश के शासन को संभल ले ।
ऐसे में civil disobedience से क्या होगा ? कहीं देश मे बजाये सब ठीक होने के मारा -मारी या जिस कहते हैं " anarchy " वो तो नहीं पैदा हो जायेगी ।
क्या हम सेना के हाथ मे शासन सौप देगे ??
क्या डेमोक्रेसी को खतरे मे डाल कर हम भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम लड़ेगे ??
अगर नहीं तो कौन होगा जो उस अव्यवस्थित स्थिति मे शासन कि बाग़ डोर संभालेगा ???
और अगर कल १०० आदमी कहीं अनशन पर बैठ जाये कि जो उनकी मांग हैं वो पूरी हो तब हम कैसे रिअक्ट करेगे जैसे जाट आन्दोलन को ही ले ।
और ये जो हर दिन अलग अलग जगह से राज्यों को बाँट कर नए राज्य बनवाने कि बात उठती हैं या जैसे नये राज्य बनाये जा रहे हैं ये विघटन बिलकुल उस समय से उलटा हैं जब आज़ादी कि लड़ाई के समय राज घरानों को इकठ्ठा कर के राज्यों मे तब्दील किया गया था
पता नहीं अन्ना हजारे जी के लिये मन मे बेहद सम्मान होते हुए भी लग रहा हैं ये रास्ता सही नहीं हैं ।
लेकिन ये भी नहीं पता हैं कि सही रास्ता कौन सा हैं । खुद ईमानदार होते हुए भी जब इंसान गरीब होता हैं और बेईमान को अमीर देखता हैं तो शायद रास्ता दिखना बंद हो जाता हैं
जब गाँधी जी ने civil disobedience कि बात कि थी तब हमारी लड़ाई एक विदेशी शासक से थी
गाँधी जी ने उस विदेशी शासन कि जगह भारतीये लोगो को तैयार कर लिया था कि कौन क्या बनेगा भारतीये मंत्रिमंडल मे ।
यानी वहाँ ट्रान्सफर होना था शासन का
लेकिन इस समय तो ऐसा कुछ अभी कहीं नहीं दिख रहा
कोई भी ऐसा संगठन नहीं तैयार किया गया हैं जो तुरंत देश के शासन को संभल ले ।
ऐसे में civil disobedience से क्या होगा ? कहीं देश मे बजाये सब ठीक होने के मारा -मारी या जिस कहते हैं " anarchy " वो तो नहीं पैदा हो जायेगी ।
क्या हम सेना के हाथ मे शासन सौप देगे ??
क्या डेमोक्रेसी को खतरे मे डाल कर हम भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम लड़ेगे ??
अगर नहीं तो कौन होगा जो उस अव्यवस्थित स्थिति मे शासन कि बाग़ डोर संभालेगा ???
और अगर कल १०० आदमी कहीं अनशन पर बैठ जाये कि जो उनकी मांग हैं वो पूरी हो तब हम कैसे रिअक्ट करेगे जैसे जाट आन्दोलन को ही ले ।
और ये जो हर दिन अलग अलग जगह से राज्यों को बाँट कर नए राज्य बनवाने कि बात उठती हैं या जैसे नये राज्य बनाये जा रहे हैं ये विघटन बिलकुल उस समय से उलटा हैं जब आज़ादी कि लड़ाई के समय राज घरानों को इकठ्ठा कर के राज्यों मे तब्दील किया गया था
पता नहीं अन्ना हजारे जी के लिये मन मे बेहद सम्मान होते हुए भी लग रहा हैं ये रास्ता सही नहीं हैं ।
लेकिन ये भी नहीं पता हैं कि सही रास्ता कौन सा हैं । खुद ईमानदार होते हुए भी जब इंसान गरीब होता हैं और बेईमान को अमीर देखता हैं तो शायद रास्ता दिखना बंद हो जाता हैं
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