मेरा कमेन्ट यहाँ
पिछली होली पर जाकिर ने पेड काटने के खिलाफ तर्क आधारित पोस्ट लगाई थी और मैने तथा कुछ और लोगो ने आपत्ति की थी की त्यौहार पर इस प्रकार की पोस्ट देने से सद्भावना की जगह दुर्भावना मन में आती हैं . वही इस पोस्ट के लिये भी कहूँगी की इस पोस्ट को लगाने का समय बिलकुल गलत हैं क्युकी कल बकरीद हैं और इस प्रकार की पोस्ट का कोई औचित्य नहीं हैं .
हर धर्म के अपने नियम कानून हैं और वो उसी हिसाब से चलता हैं , कम से कम जिस दिन भी किसी भी धर्म का कोई उत्सव हो उस दिन उस धर्म के विरुद्ध कुछ भी लिखना केवल दुर्भावना को ही जन्म देगा . आप ईद पर लिखो , वो दिवाली पर लिखे आप रमजान के खिलाफ लिखो वो नवरात्र के खिलाफ लिखे क्या हासिल होगा ?? पोस्ट इस समय हटा ली जाये तो बेहतर होगा और सही समय पर दुबारा दी जाये
पिछली होली पर जाकिर ने पेड काटने के खिलाफ तर्क आधारित पोस्ट लगाई थी और मैने तथा कुछ और लोगो ने आपत्ति की थी की त्यौहार पर इस प्रकार की पोस्ट देने से सद्भावना की जगह दुर्भावना मन में आती हैं . वही इस पोस्ट के लिये भी कहूँगी की इस पोस्ट को लगाने का समय बिलकुल गलत हैं क्युकी कल बकरीद हैं और इस प्रकार की पोस्ट का कोई औचित्य नहीं हैं .
हर धर्म के अपने नियम कानून हैं और वो उसी हिसाब से चलता हैं , कम से कम जिस दिन भी किसी भी धर्म का कोई उत्सव हो उस दिन उस धर्म के विरुद्ध कुछ भी लिखना केवल दुर्भावना को ही जन्म देगा . आप ईद पर लिखो , वो दिवाली पर लिखे आप रमजान के खिलाफ लिखो वो नवरात्र के खिलाफ लिखे क्या हासिल होगा ?? पोस्ट इस समय हटा ली जाये तो बेहतर होगा और सही समय पर दुबारा दी जाये
.
ReplyDelete.
.
मेरा कमेंट वहाँ पर...
.
.
.
आदरणीय शिल्पा जी,
आप एक विदुषी महिला हैं परंतु आपके आज के इस आलेख पर रचना जी की टिप्पणी की भावना से सहमत होना मुझे उचित लग रहा है।
कुछ और बात करने से पहले स्पष्ट कर दूँ कि एक उच्च जीवन आदर्श के रूप में हर सम्भव हिंसा से बचने व यदि हिंसा अपरिहार्य हो, तो सूक्ष्म से सूक्ष्म, न्यून से न्यूनतम, अल्प से अल्पतम हिंसा का चुनाव होना चाहिये, इसमें संदेह नहीं... मैं स्वयं भी शाकाहारी बनने की राह पर हूँ...
शाहनवाज सही कहते हैं कि 'अलग-अलग परिवेश में पालन, अलग-अलग मान्यताएं, अलग अलग किस्म का जीवन' हमारे विचारों का आधार तय करता है... अन्यथा न लें, तो निरामिष लेखक मन्डल पर ही एक नजर डाल लें, इसमें ब्राह्मणों व वैश्य/जैनों की बहुलता व दलित-अन्य वर्ण के हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाइयों का प्रतिनिधित्व न होना अनायास ही नहीं है...
मेरा हमेशा से मानना रहा है और यह सही भी है कि हमारे धार्मिक विश्वास-आस्थाओं-परंपराओं को तर्क के तराजू पर तौल कर नहीं आंका जा सकता... क्या सही है और क्या गलत यह उद्घाटन व्यक्ति के अंतर्मन से होना चाहिये...
हिंसा कई प्रकार की होती है, केवल जीव को काटना ही हिंसा नहीं है, वह वाचिक, लिखित व वैचारिक भी हो सकती है... यह आप मुझ से बेहतर समझ सकती हैं...
धर्म के मामले में हम सभी को दूसरे के घर की सफाई करने का हक तभी है जब हमने अपना घर अच्छे से साफ कर लिया हो...
मैं लिखना नहीं चाहता था पर जिस तरह आपने रचना जी की सही सलाह को सरसरे तौर पर खारिज किया है इसीलिये लिख रहा हूँ कि हिंसा अप्रत्यक्ष भी होती है... मतलब हमारे कर्मों-आचरण से यदि किसी को उसका देय नहीं मिलता और उसकी मौत हो जाती है तो यह भी हिंसा होती है...
हम हिंदू अपनी धार्मिक आस्थाओं के चलते हर साल अरबों लीटर दूध मूर्तियों पर चढ़ा देते हैं, करोड़ों किलो देशी घी आग में जला देते हैं, अरबों लीटर तेल के दिये जला देते हैं, अरबों किलो खाद्म जिसमें फल, मेवे, गुड़, चावल, दालें, मिठाई, पान, सुपारी आदि अनेकों पदार्थ शामिल हैं, यज्ञ-महायज्ञ-हवन के नाम पर आग में फूंक देते हैं...यानी भोजन की बर्बादी करते हैं...
और दूसरी ओर हमारे गरीब देश में करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, लाखों मर जाते हैं... इनका मरना अप्रत्यक्ष तरीके से की गयी हिंसा है... यह हिंसा निश्चित तौर पर जानवर को मारने में हुई हिंसा से बड़ी है... जिम्मेदार कौन है ?... आशा है आप इस पर भी प्रकाश डालेंगी...
...
यहाँ ब्लॉग में सभी अपने विचार रखते है और टिप्पणी के रूप में पाठक अपने विचार रखते रहे है चाहे वो लेखक के विचार से सहमती हो या असहमति उसे लेखक माने ही ये जरुरी नहीं है , किन्तु मुझे ऐसा लगा की कुछ लोगो को अपने विचारो से विपरीत विचार अपनी पोस्टो पर टिप्पणी के रूप में पसंद नहीं है इसलिए कुछ कहना बेकार है । किन्तु आप के ब्लॉग पर कह सकती हूँ की शाकाहार का जिसको जितना प्रचार करना हो करे उसमे कोई बुराई नहीं , किन्तु आप की बात से सहमत हूँ समय का ध्यान रखे , जब खुद के धर्म पर दुसरो के कहे जाने पर मन दुखता है तो ये भी ध्यान रखना चाहिए की दुसरे के तीज त्यौहारों पर कुछ कहते समय भी उसी बात का ध्यान रखे ।
ReplyDeleteSamai ki nadi ko dekhna bh zooroori hata hai,
ReplyDelete