लीजिये फैसला आ गया
राम अयोध्या मे ही पैदा हुए थे
वो हिन्दू आस्था के प्रतीक हैं
कितनी अहम घोषणा हैं ये !!! कौन इस बात से इनकार कर सकता हैं ?? लेकिन ६० साल से हम इस घोषणा के लिये लड़ रहे हैं । अपनी आस्था अपने राम विस्थापित हो गए अपने ही देश मे ।
अब विस्थापित राम को रीहेबीलीटैट यानी प्रतिष्ठित करना होगा कैसे
मंदिर का निर्माण उस बीच वाले गुम्बद { जो कभी था } के नीचे करना होगा तभी तो प्रतिष्ठा मिलेगी विस्थापित राम को ।
कभी कभी सोचती हूँ हम ईश्वर को चलाते हैं या ईश्वर हम को चलाता हैं पता नहीं राम ऊपर बैठे इस समय अल्लाह के साथ इस जमीन के टुकडे के विभाजन पर क्या डिस्कशन कर रहे होगे ।
काश राम और अल्लाह का भी एक ब्लॉग होता तो वो जरुर लिखते मुझे विस्थापित और पुनेह प्रतिष्ठित करने वालो कभी अपनी औकात पर भी ध्यान देते ।
जय श्री राम
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
सब को सन्मति दे भगवान्
भगवान् को कौन विस्थापित कर पाया हैं और कौन उनको रीहेबीलीटैट कर पाया हैं ? पर खुश हूँ की राम का फैसला हो गया , उनको birth certificate ईशु होगया । अब देखते हैं पर्सनल "aadhar" नंबर देने सोनिया या मनमोहन सिंह कब जायेगे
अब जब जनम स्थान का पता चल ही गया हैं तो राम लला की मोहक छवि की भी बात कर ही लेते हैं
१ अवधेसके द्वारें सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से॥
तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।
सजनी ससिमें समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे॥
पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।
नवनील कलेवर पीत झँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ॥
अरबिंदु सो आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन-बृंग पिएँ।
मनमो न बस्यो अस बालकु जौं तुलसी जगमें फलु कौन जिएँ॥
२ तन की दुति स्याम सरोरुह लोचन कंचकी मंजुलताई हरैं।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंगकी दूरि धरैं॥
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि-ज्यौं किलकैं कल बाल-बिनोद करैं।
अवधेसके बालक चारि सदा तुलसी-मन-मंदिरमें बिहरैं॥
कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सबै मन मोद भरैं॥
कबहूँ रिसिआइ कहैं हठिकै पुनि लेत सोई जेहि लागि अरैं।
अवधेसके बालक चारि सदा तुलसी-मन-मंदिरमें बिहरैं॥
३ बर दंत की पंगति कंदकली अधराधर-पल्लव खोलनकी।
चपला चमकैं घन बीच जगैं छबि मोतिन माल अमोलनकी॥
घुँघुरारि लटैं लटकैं मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलनकी।
नेवछावरि प्रान करै तुलसी बलि जाउँ लला इन बोलनकी॥
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
September 30, 2010
September 14, 2010
बड़ा भाई जरुरी हैं ब्लोगिंग मे
आप ने अपना पक्ष रख कर मामला रफा दफा कर दिया । आप ने सही किया या गलत किया ये भी आप ने कह दिया आप का नज़रिया हैं । आप ने कहा कोई आप के परिवार का होता तो भी आप यही करते बस यही फरक हैं सोच का । ब्लोगिंग परिवार नहीं हैं । आप को जब मे २००७ मे ब्लोगिंग मे आयी थी बड़ा भाई कहा जाता था । आप के विरुद्ध जा कर मैने नीलिमा / ज्ञानदत/ खिचड़ी प्रसंग पर लिखा था और आप के परम मित्र जो आज कल सक्रिये नहीं हैं ने एक ब्लॉग पर जा कर मेरे ही नहीं मेरे माता पिता के भी विरुद्ध टिपण्णी की थी । उस समय ये प्रेम भाव क्यूँ जागृत नहीं था ??? उस समय आप ने कहा था "ज्ञान जी को मौज लेना नहीं आता " . ये सौहार्द केवल और केवल उस समय क्यूँ जागृत हुआ जब अमरेन्द्र जो की आप के ब्लॉग सहयोगी भी एक ब्लॉग पर इस प्रकरण मे आये । सब जानते हैं अमरेन्द्र और अरविन्द के बीच तनातनी हैं और आप और अमरेन्द्र आज कल बंधुत्व मे बंधे हैं । अगर बात केवल और केवल अरविन्द और दिव्या के बीच होती तो भी पोस्ट केवल दिव्या की ही डिलीट होती क्युकी सामजिक प्रतिष्टा का भय आप उसको ही दिखा सकते थे ।
बीच बाचाव करने की पक्षधर मे इस लिये नहीं हूँ क्युकी यहाँ बहुत से खेमे हैं और दूसरी बात यहाँ हर कोई बड़ा भाई बनने का इच्छुक हैं ऑनलाइन । इस पर दिव्या जी भी भड़क गयी हैं और ब्लॉग संसद ब्लॉग पर उन्होंने कह ही दिया हैं वो किसी की बहिन नहीं हैं । कही ये भी पढ़ा था की जो पोस्ट आप ने उनकी हटवाई उसको हटाने का भी उनको पछतावा हैं ।
आप सब के इस बीच बचाव प्रोग्राम मे कभी सतीश सक्सेना आप के और समीर के बड़े भाई बन जाते हैं और कभी आप किसी को परिवार का मान लेते हैं । यानी परिवार से हट कर ब्लोगिंग हैं ही नहीं । इतिहास दोहरा ले कम से कम मन मे और फिर देखे क्या इस "कपडा उतार " प्रक्रिया के लिये आप खुद कितने ज़िम्मेदार हैं ।
"वो अच्छी औरते नहीं हैं " ये मेरे और सुजाता के लिये इस्तमाल की जाने वाली tag लाइन हैं किसने दी सोचे ना याद आये गूगल करे । उम्मीद हैं इतिहास जो नेट पर हमेशा सुरक्षित हैं मिल जाएगा
और
कमेन्ट ना छापना चाहे कोई शिकायत नहीं होगी क्युकी ये कमेन्ट इस लायक है ही नहीं की मुआ छपे , इस को तो पोस्ट होना चाहिये था बिना लाग लपेट के !!!
हाँ
पोस्ट शानदार हैं दमदार हैं नमकीन हैं मीठी हैं
हा हा ही ही ठा ठा ठी ठी हैं कुछ भी नहीं ग़मगीन हैं
पंचम से सक्सेना को मारा हैं
कहीं पे निगाहे हैं
तो कहीं पे निशाना हैं
बीच बाचाव करने की पक्षधर मे इस लिये नहीं हूँ क्युकी यहाँ बहुत से खेमे हैं और दूसरी बात यहाँ हर कोई बड़ा भाई बनने का इच्छुक हैं ऑनलाइन । इस पर दिव्या जी भी भड़क गयी हैं और ब्लॉग संसद ब्लॉग पर उन्होंने कह ही दिया हैं वो किसी की बहिन नहीं हैं । कही ये भी पढ़ा था की जो पोस्ट आप ने उनकी हटवाई उसको हटाने का भी उनको पछतावा हैं ।
आप सब के इस बीच बचाव प्रोग्राम मे कभी सतीश सक्सेना आप के और समीर के बड़े भाई बन जाते हैं और कभी आप किसी को परिवार का मान लेते हैं । यानी परिवार से हट कर ब्लोगिंग हैं ही नहीं । इतिहास दोहरा ले कम से कम मन मे और फिर देखे क्या इस "कपडा उतार " प्रक्रिया के लिये आप खुद कितने ज़िम्मेदार हैं ।
"वो अच्छी औरते नहीं हैं " ये मेरे और सुजाता के लिये इस्तमाल की जाने वाली tag लाइन हैं किसने दी सोचे ना याद आये गूगल करे । उम्मीद हैं इतिहास जो नेट पर हमेशा सुरक्षित हैं मिल जाएगा
और
कमेन्ट ना छापना चाहे कोई शिकायत नहीं होगी क्युकी ये कमेन्ट इस लायक है ही नहीं की मुआ छपे , इस को तो पोस्ट होना चाहिये था बिना लाग लपेट के !!!
हाँ
पोस्ट शानदार हैं दमदार हैं नमकीन हैं मीठी हैं
हा हा ही ही ठा ठा ठी ठी हैं कुछ भी नहीं ग़मगीन हैं
पंचम से सक्सेना को मारा हैं
कहीं पे निगाहे हैं
तो कहीं पे निशाना हैं
September 13, 2010
पाठक का महातम टिपण्णी से कहीं ऊँचा हैं ।
आज कल तुरंत पता चल जाता हैं की कितने लोगो ने पोस्ट को पढ़ा हैं । तुरंत यानी ईधर आप ने पोस्ट पुब्लिश की ऊधर डेशबोर्ड पर stat का button दबाते ही आकडे हाज़िर । इस के अलावा कौन कहा से आया ये भी पता चल जाता हैं ।
लोग टिपण्णी मिल या नहीं मिली या क्यूँ नहीं ली पर चर्चा कर रहे हैं लेकिन पाठक किस आलेख पर कितने आये और कितने पढ़ कर चले गये फिर आने के लिये पता नहीं देखते भी हैं या नहीं ।
पोस्ट पुब्लिश होने के ५ मिनट मे अगर ५ लोग आप को पढते नज़र आ आरहे हैं तो खुश हो जाईये क्युकी पाठक का महातम टिपण्णी से कहीं ऊँचा हैं ।
लोग टिपण्णी मिल या नहीं मिली या क्यूँ नहीं ली पर चर्चा कर रहे हैं लेकिन पाठक किस आलेख पर कितने आये और कितने पढ़ कर चले गये फिर आने के लिये पता नहीं देखते भी हैं या नहीं ।
पोस्ट पुब्लिश होने के ५ मिनट मे अगर ५ लोग आप को पढते नज़र आ आरहे हैं तो खुश हो जाईये क्युकी पाठक का महातम टिपण्णी से कहीं ऊँचा हैं ।
Subscribe to:
Posts (Atom)