मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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September 14, 2010

बड़ा भाई जरुरी हैं ब्लोगिंग मे

आप ने अपना पक्ष रख कर मामला रफा दफा कर दियाआप ने सही किया या गलत किया ये भी आप ने कह दिया आप का नज़रिया हैंआप ने कहा कोई आप के परिवार का होता तो भी आप यही करते बस यही फरक हैं सोच काब्लोगिंग परिवार नहीं हैंआप को जब मे २००७ मे ब्लोगिंग मे आयी थी बड़ा भाई कहा जाता थाआप के विरुद्ध जा कर मैने नीलिमा / ज्ञानदत/ खिचड़ी प्रसंग पर लिखा था और आप के परम मित्र जो आज कल सक्रिये नहीं हैं ने एक ब्लॉग पर जा कर मेरे ही नहीं मेरे माता पिता के भी विरुद्ध टिपण्णी की थीउस समय ये प्रेम भाव क्यूँ जागृत नहीं था ??? उस समय आप ने कहा था "ज्ञान जी को मौज लेना नहीं आता " . ये सौहार्द केवल और केवल उस समय क्यूँ जागृत हुआ जब अमरेन्द्र जो की आप के ब्लॉग सहयोगी भी एक ब्लॉग पर इस प्रकरण मे आयेसब जानते हैं अमरेन्द्र और अरविन्द के बीच तनातनी हैं और आप और अमरेन्द्र आज कल बंधुत्व मे बंधे हैंअगर बात केवल और केवल अरविन्द और दिव्या के बीच होती तो भी पोस्ट केवल दिव्या की ही डिलीट होती क्युकी सामजिक प्रतिष्टा का भय आप उसको ही दिखा सकते थे

बीच बाचाव करने की पक्षधर मे इस लिये नहीं हूँ क्युकी यहाँ बहुत से खेमे हैं और दूसरी बात यहाँ हर कोई बड़ा भाई बनने का इच्छुक हैं ऑनलाइनइस पर दिव्या जी भी भड़क गयी हैं और ब्लॉग संसद ब्लॉग पर उन्होंने कह ही दिया हैं वो किसी की बहिन नहीं हैंकही ये भी पढ़ा था की जो पोस्ट आप ने उनकी हटवाई उसको हटाने का भी उनको पछतावा हैं

आप सब के इस बीच बचाव प्रोग्राम मे कभी सतीश सक्सेना आप के और समीर के बड़े भाई बन जाते हैं और कभी आप किसी को परिवार का मान लेते हैंयानी परिवार से हट कर ब्लोगिंग हैं ही नहींइतिहास दोहरा ले कम से कम मन मे और फिर देखे क्या इस "कपडा उतार " प्रक्रिया के लिये आप खुद कितने ज़िम्मेदार हैं

"वो अच्छी औरते नहीं हैं " ये मेरे और सुजाता के लिये इस्तमाल की जाने वाली tag लाइन हैं किसने दी सोचे ना याद आये गूगल करेउम्मीद हैं इतिहास जो नेट पर हमेशा सुरक्षित हैं मिल जाएगा

और
कमेन्ट ना छापना चाहे कोई शिकायत नहीं होगी क्युकी ये कमेन्ट इस लायक है ही नहीं की मुआ छपे , इस को तो पोस्ट होना चाहिये था बिना लाग लपेट के !!!

हाँ
पोस्ट शानदार हैं दमदार हैं नमकीन हैं मीठी हैं
हा हा ही ही ठा ठा ठी ठी हैं कुछ भी नहीं ग़मगीन हैं
पंचम से सक्सेना को मारा हैं
कहीं पे निगाहे हैं
तो कहीं पे निशाना हैं

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