जगह :- हिंदी विभाग , दौलत राम कॉलेज , दिल्ली विश्विद्यालय
समय काल :- १९६५ - २०००
इस विभाग मे इस दौरान तकरीबन २२ लेक्चरार थी ।
२ लेक्चरार दिल्ली विश्विद्यालय के विभागाध्यक्ष कि पुत्रियाँ थी ।
एक को छोड़ कर सब के पास स्नातकोत्तर डिग्री थी
एक को छोड़ कर बाकी सब विवाहित थी
दो को छोड़ कर सबके २ संतान ही थी
बाकी दो के ३ संतान थी
इन सब संतानों के बीच मे केवल एक लड़की ने ही हिंदी विषय मे स्नातकोत्तर शिक्षा ली लेकिन वो भी जीविका के लिये नहीं ।
ये वो समय था जब बच्चो को बताया जाता था कि उनको क्या पढना चाहिये यानी आज से भिन्न जहां बच्चो कि पसंद देखी जाती हैं ।
ऐसे क्या कारण रहे होगे कि अपने बच्चो को हिंदी कि शैक्षिक योग्यता दिलवाना उस समय कि इन लेक्चरार को पसंद नहीं आया ???
यहाँ बहुत बार इस बात को उठाया जाता हैं कि हिंदी मे जो लोग ब्लॉग लिखते हैं उनकी हिंदी अच्छी नहीं हैं । लेकिन जो लोग ये मुद्दा उठाते हैं उनकी हिंदी कि शैक्षिक योग्यता क्या हैं ?? अगर उनके पास हिंदी कि शैक्षिक योग्यता नहीं हैं तो वो किस बिना पर किसी को हिंदी सीखा सकते हैं या किसी के लिखे को गलत / स्तर हीन बता सकते हैं ।
हिंदी मे शैक्षिक योग्यता क्यूँ नहीं हैं लोगो के पास ??
क्यूँ लोगो ने हिंदी मे डिग्री इत्यादि ना लेकर डॉक्टर या इंजिनियर बनना पसंद किया और आज सालो बाद क्यूँ उनको दूसरो कि हिंदी सुधारने कि सुध आयी ।
क्या हैं वो कारण क्या खुले मन से इस पर चिंतन हो सकता हैं ?
एक डॉक्टर का बेटा अगर लिपिक हो जाता हैं वो भी कहीं हिंदी का किसी सरकारी दफ्तर मे तो क्या उस डॉक्टर को ख़ुशी होगी ???? या उसको लगेगा कि उसका बेटा "नालायक " हैं ??
फिर वही बेटा हिंदी ब्लॉग लिखने लग जाता हैं तो क्या वो अपने पिता कि नज़र मे उठ पाता हैं । वो ब्लॉग पर कितना भी अच्छा लिख ले { ये उसकी सोच हैं } लेकिन पिता कि नज़र मे वो अयोग्य हैं ।
हिंदी मे लिखने के लिये किसी योग्यता कि जरुरत नहीं हैं पर हिंदी को "जांचने " के लिये तो हिंदी मे योग्यता चाहिये । क्यूँ शैक्षिक योग्यता को हम नकारते हैं जब भी हिंदी कि बात होती हैं और क्यूँ वो लोग जो हिंदी मे शैक्षिक योग्यता रखते हैं अपने बच्चो को इस और अग्रसर नहीं करते ।
विचार आमंत्रित हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
January 24, 2011
January 23, 2011
सच कभी किसी को चोट नहीं पहुचाता हैं और ना ही किसी का दिल दुखाता हैं ।
सच कभी किसी को चोट नहीं पहुचाता हैं और ना ही किसी का दिल दुखाता हैं । ना ही किसी का दिल दुखता हैं । सच को स्वीकारने कि ताकत सब में नहीं होती हैं . अगर हम कुछ कहते हैं तो उस पर अटल नहीं रहते हैं यानी हमारे विचार पूर्ण रूप से परिपक्व हो उस से पहले ही हम अपनी राय दे देते हैं और फिर जब कोई हमे आईना दिखता हैं तो हम बजाये अपनी गलती मानने के एक और व्यक्ति तलाशते हैं जिसके साथ मिल कर हम अपनी अपरिपक सोच को सही साबित कर के दूसरे के सच को झूठ साबित कर दे ।
इस संसार मे अगर आप किसी को भी "तुच्छ " कहते हैं तो समझ लीजिये ईश्वर कि बनाई कृति को आप नकार रहे हैं । तुच्छ जैसा तो कोई नहीं हैं ना होगा बस विचार और कर्म सबके अपने हैं । ब्लोगिंग मे आप कब से हैं ? हो सकता हैं आज आप जिन से जुड़े हैं अगर आप उनका भूतकाल ब्लॉग्गिंग का जाने तो उनसे भी नाता तोड़ ले लेकिन अगर उनके भूतकाल के कर्म आप को सही लगे तो आप फिर भी उनसे जुड़े रहेगे ।
आप को यहाँ जितने भी अच्छे और सच्चे लगते हैं उन सब मे कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमजोरी हैं और वो कमजोरी उन सब को ही उनसब से जिन मे ये कमजोरी नहीं हैं तुच्छ बनाती हैं ।
प्रणाम
मेरा कमेन्ट यहाँ
इस संसार मे अगर आप किसी को भी "तुच्छ " कहते हैं तो समझ लीजिये ईश्वर कि बनाई कृति को आप नकार रहे हैं । तुच्छ जैसा तो कोई नहीं हैं ना होगा बस विचार और कर्म सबके अपने हैं । ब्लोगिंग मे आप कब से हैं ? हो सकता हैं आज आप जिन से जुड़े हैं अगर आप उनका भूतकाल ब्लॉग्गिंग का जाने तो उनसे भी नाता तोड़ ले लेकिन अगर उनके भूतकाल के कर्म आप को सही लगे तो आप फिर भी उनसे जुड़े रहेगे ।
आप को यहाँ जितने भी अच्छे और सच्चे लगते हैं उन सब मे कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमजोरी हैं और वो कमजोरी उन सब को ही उनसब से जिन मे ये कमजोरी नहीं हैं तुच्छ बनाती हैं ।
प्रणाम
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January 04, 2011
January 03, 2011
हिंदी ब्लोगिंग क्या हैं हिंदी मे ब्लॉग लिखना या ब्लॉग पर अच्छी हिंदी लिखना ???
कल प्रवीण शाह की पोस्ट पढी उस से पहले सतीश पंचम भी इसी विषय पर लिख चुके थे । चलो हिंदी ब्लोगिंग मे नकरातमक सोच वाले लोगो की संख्या मे इजाफा हो रहा हैं ।
हिंदी ब्लोगिंग क्या हैं हिंदी मे ब्लॉग लिखना या ब्लॉग पर अच्छी हिंदी लिखना ???
पंकज सुबीर जी के ब्लोग्पर जब भी जाना होता एक अध्यापक के लिये सिर नवाने का मन करता है । ना जाने कितने लोग / ब्लॉगर उनसे ग़ज़ल सीख रहे हैं फिर चाहे वो समीर हो , गौतम हो , या कंचन हो । लेकिन मैने कभी भी पंकज सुबीर का कोई कमेन्ट किसी भी ब्लॉगर की कविता पर / ग़ज़ल पर नहीं पढ़ा की यहाँ मीटर सही नहीं हैं या बंदिश की गलतियां हैं । वो अगर टीचर हैं तो उन्होने ब्लॉग का इस्तमाल करके एक विधा को आगे बढ़ाया हैं ना की किसी की अशुद्धियों को , हिंदी के हिज्जो को , टकण की गलतियों के लिये उसके ब्लॉग पर जा कर अपना ज्ञान दिखाते हुए ब्लॉगर का उपहास किया हैं ।
कभी कभी लगता हैं हिंदी सीखने वालो की कमी तो नहीं हैं । कोई हिंदी ज्ञाता क्यूँ नहीं अपने किसी ब्लॉग पर हिंदी की क्लास लेता हैं । जिनको सही हिंदी सीखनी होगी जरुर वहाँ आकर सीखेगे । सक्रिय होकर क्यूँ नहीं कोई हिंदी के उत्थान के लिये कोई ये करता हैं ।
हम हिंदी मे ब्लॉग लिखते हैं तो केवल इस लिये की हिंदी बोलचाल की भाषा हैं और हिंदी मे टंकन की सुविधा मिल गयी हैं । लेकिन इसके लिये हिंदी मे पारंगत होना जरुरी नहीं हैं ।
जो सीखना चाहे वो अपने ब्लॉग पर अगर सुबीर जी की तरह सिखाये तो सीखने वाले वही आयेगे अपने देश से ही नहीं विदेश से भी । केवल लिखना ही नहीं उसके उच्चारण के लिये विडियो इत्यादि भी डाले । हिंदी मे किस्सा कहानी उपन्यास ब्लॉग पर लिखने से हिंदी का स्तर नहीं उठ सकता और ना ही दूसरो की हिंदी के हिज्जे ठीक करने से , स्तर उठाना हैं तो मुहीम की तरह ब्लॉग पर हिंदी की कोचिंग शुरू करे लेकिन अपने ब्लॉग पर । अतिवादी हूँ रहूंगी ।
चलते चलते
मेरे माता पिता , दिल्ली विश्विद्यालय से हिंदी मे रीडर का पद से रिटायर हुए थे । दोनों लखनऊ विश्विद्यालय से हिंदी मे ऍम ऐ मे गोल्ड मेडलिस्ट थे और दोनों के अंडर मे कम से कम १४ १४ विद्यार्थियों ने पी एच डी की हैं । उनके पास हिंदी की अनमोल पुस्तके हैं जिन मे कुछ पांडुलिपियाँ भी हैं । अगर किसी विद्यार्थी को कोई पुस्तक चाहिये हो तो वो संपर्क कर सकता हैं । माँ अब पुस्तके बांटना चाहती हैं उन मे जिनको जरुरत हो ।
नया साल सब को शुभ हो
हिंदी ब्लोगिंग क्या हैं हिंदी मे ब्लॉग लिखना या ब्लॉग पर अच्छी हिंदी लिखना ???
पंकज सुबीर जी के ब्लोग्पर जब भी जाना होता एक अध्यापक के लिये सिर नवाने का मन करता है । ना जाने कितने लोग / ब्लॉगर उनसे ग़ज़ल सीख रहे हैं फिर चाहे वो समीर हो , गौतम हो , या कंचन हो । लेकिन मैने कभी भी पंकज सुबीर का कोई कमेन्ट किसी भी ब्लॉगर की कविता पर / ग़ज़ल पर नहीं पढ़ा की यहाँ मीटर सही नहीं हैं या बंदिश की गलतियां हैं । वो अगर टीचर हैं तो उन्होने ब्लॉग का इस्तमाल करके एक विधा को आगे बढ़ाया हैं ना की किसी की अशुद्धियों को , हिंदी के हिज्जो को , टकण की गलतियों के लिये उसके ब्लॉग पर जा कर अपना ज्ञान दिखाते हुए ब्लॉगर का उपहास किया हैं ।
कभी कभी लगता हैं हिंदी सीखने वालो की कमी तो नहीं हैं । कोई हिंदी ज्ञाता क्यूँ नहीं अपने किसी ब्लॉग पर हिंदी की क्लास लेता हैं । जिनको सही हिंदी सीखनी होगी जरुर वहाँ आकर सीखेगे । सक्रिय होकर क्यूँ नहीं कोई हिंदी के उत्थान के लिये कोई ये करता हैं ।
हम हिंदी मे ब्लॉग लिखते हैं तो केवल इस लिये की हिंदी बोलचाल की भाषा हैं और हिंदी मे टंकन की सुविधा मिल गयी हैं । लेकिन इसके लिये हिंदी मे पारंगत होना जरुरी नहीं हैं ।
जो सीखना चाहे वो अपने ब्लॉग पर अगर सुबीर जी की तरह सिखाये तो सीखने वाले वही आयेगे अपने देश से ही नहीं विदेश से भी । केवल लिखना ही नहीं उसके उच्चारण के लिये विडियो इत्यादि भी डाले । हिंदी मे किस्सा कहानी उपन्यास ब्लॉग पर लिखने से हिंदी का स्तर नहीं उठ सकता और ना ही दूसरो की हिंदी के हिज्जे ठीक करने से , स्तर उठाना हैं तो मुहीम की तरह ब्लॉग पर हिंदी की कोचिंग शुरू करे लेकिन अपने ब्लॉग पर । अतिवादी हूँ रहूंगी ।
चलते चलते
मेरे माता पिता , दिल्ली विश्विद्यालय से हिंदी मे रीडर का पद से रिटायर हुए थे । दोनों लखनऊ विश्विद्यालय से हिंदी मे ऍम ऐ मे गोल्ड मेडलिस्ट थे और दोनों के अंडर मे कम से कम १४ १४ विद्यार्थियों ने पी एच डी की हैं । उनके पास हिंदी की अनमोल पुस्तके हैं जिन मे कुछ पांडुलिपियाँ भी हैं । अगर किसी विद्यार्थी को कोई पुस्तक चाहिये हो तो वो संपर्क कर सकता हैं । माँ अब पुस्तके बांटना चाहती हैं उन मे जिनको जरुरत हो ।
नया साल सब को शुभ हो
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