सच कभी किसी को चोट नहीं पहुचाता हैं और ना ही किसी का दिल दुखाता हैं । ना ही किसी का दिल दुखता हैं । सच को स्वीकारने कि ताकत सब में नहीं होती हैं . अगर हम कुछ कहते हैं तो उस पर अटल नहीं रहते हैं यानी हमारे विचार पूर्ण रूप से परिपक्व हो उस से पहले ही हम अपनी राय दे देते हैं और फिर जब कोई हमे आईना दिखता हैं तो हम बजाये अपनी गलती मानने के एक और व्यक्ति तलाशते हैं जिसके साथ मिल कर हम अपनी अपरिपक सोच को सही साबित कर के दूसरे के सच को झूठ साबित कर दे ।
इस संसार मे अगर आप किसी को भी "तुच्छ " कहते हैं तो समझ लीजिये ईश्वर कि बनाई कृति को आप नकार रहे हैं । तुच्छ जैसा तो कोई नहीं हैं ना होगा बस विचार और कर्म सबके अपने हैं । ब्लोगिंग मे आप कब से हैं ? हो सकता हैं आज आप जिन से जुड़े हैं अगर आप उनका भूतकाल ब्लॉग्गिंग का जाने तो उनसे भी नाता तोड़ ले लेकिन अगर उनके भूतकाल के कर्म आप को सही लगे तो आप फिर भी उनसे जुड़े रहेगे ।
आप को यहाँ जितने भी अच्छे और सच्चे लगते हैं उन सब मे कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमजोरी हैं और वो कमजोरी उन सब को ही उनसब से जिन मे ये कमजोरी नहीं हैं तुच्छ बनाती हैं ।
प्रणाम
मेरा कमेन्ट यहाँ
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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बहुत सही विश्लेषण किया है .भगवान की इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति सर्वगुण-संपन्न नहीं है .सभी में कोई न कोई कमी है .
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात है।
ReplyDeleteपूरे व्यक्तित्व को स्वीकार करना हो।
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