मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

April 25, 2012

नज़र अपनी अपनी समझ अपनी अपनी . ६ साल के बाद हिंदी ब्लॉग लेखन

हिंदी ब्लॉग लिखते लिखते ७वे साल में पदार्पण करना हैं इस माह के अंत तक . 
जब आई थी तब यहाँ "नारद" युग था और उसी प्रकार की लगाई बुझाई थी . मेरे साथ साथ "ब्लॉग वाणी और चिटठा जगत" आया  और  और "पसंद " , " नापसंद "  तथा टॉप टेन , टॉप हंड्रेड का चलन रहा . 
आज कल "हमारी वाणी " हैं पर हमारा कुछ ना था ना हैं ना होगा . 
फिर भी महिला के प्रति दोयम का दर्जा और उस से असहमत होने पर उसके परिवार और उसके जीवन शेली पर ऊँगली उठाना आज भी बरकार हैं , वंदना की कविता पर हुये फेसबुक बवाल ने बताया . आज भी लोगो जेंडर बायस और सेक्सुअल हरासमेंट को केवल शरीर से जोडते हैं और अपने को पढ़ा लिखा और बुद्धिजीवी कहते हैं . 
हिन्दू मुस्लिम विवाद आज भी बरकरार हैं क्युकी बात आस्था की कभी नहीं होती हैं बात होती हैं एक दुसरे को नीचा दिखाने की . 
रामायण , गीता , कुरआन या बाइबल महज धर्म ग्रन्थ हैं कोई संविधान या क़ानूनी किताब नहीं हैं ये समझाना पढ़े लिखो को कितना मुश्किल हैं ये अगर किसी को देखना हैं तो हिंदी ब्लॉग जगत मे देखे . यहाँ संविधान और तिरंगे का अपमान होता हैं और धर्म ग्रंथो के लिखे को बार बार पढ़ाया जाता हैं . 
तर्क तो बहुत ही बढ़िया हैं कोई कहता हैं हिन्दू देवता ने यहाँ चीर हरण किया तो कोई कहता हैं कुरआन में बुजुर्ग औरतो को कपड़े उतारने की सलाह दी गयी हैं . 
लगता हैं लोग इन ग्रंथो को सुबह शाम बांचते होगे . 
कुछ बदला भी हैं जैसे अनूप जी फ़ुरसतिया पर सामाजिक लेख लिखते  दिखे , समीर जी उड़न तश्तरी पर भारतीये अतिथियों से परेशान दिखे . ज्ञान पाण्डेय जी अस्वस्थ होने की वजह से कम सक्रिय दिखे और अल्पना जी ने तथा कई और महिला ने सस्वर माना  की ब्लॉग जगत महिला ब्लॉगर के लिये सहिष्णु नहीं हैं . 
जो बहुत शिद्दत से बदला वो हैं महिला का विद्रोही स्वर जो अब बहुत जल्दी सुनाई देता हैं अगर कहीं भी महिला ब्लॉगर का अपमान होता हैं .{ हां इस दौरान मुझे वंदना से बड़ी जेलसी हुई क्युकी उनको बहुत गाली पड़ी पहले सिर्फ मुझे पड़ती थी , मुझे लगा मेरी सत्ता हिल गयी }
अदा जी , महफूज जी और दिव्या जी ने ब्लॉग पर कमेन्ट बंद करदिये सो सतीश सक्सेना जी के यहाँ १०० कमेन्ट तक दिखे . वैसे सतीश सक्सेना जी ने अपने बच्चो की शादी कर दी हैं और अपनी बहु को वो अपना बेटा मान चुके हैं और ब्लॉग जगत में शायद सबसे ज्यादा टिपण्णी उसी पोस्ट पर आयी हैं . 
अजय झा जी की बुलबुल बिटिया नियम से दांत साफ़ करती हैं और पढ़ती भी हैं मुझे तो लगता हैं वो अवश्य अजय जी का नाम रोशम करेगी , जिसके दांत इतने साफ़ हो वो चमका ही देगी अपने माँ पिता का नाम . 

महिला ब्लॉगर जो एक साल पहले तक दोस्त थी वो आज एक दूसरे के ब्लॉग पर कमेन्ट भी नहीं करती हैं ये बदलाव हैं या महज प्रतिक्रया कह नहीं सकती . 

मनोज जी , सलिल जी , अनुराग जी , हंसराज जी को पढने और उनसे बात करने का अपना सुख हैं , राधा रमण और संजय जाट जी से भी चैट पर बात हो जाती हैं 
महिला ब्लॉगर की नज़र में . मै महिला के खिलाफ लिखती हूँ , पुरुष ब्लॉगर की नज़र में उनके खिलाफ . नज़र अपनी अपनी समझ अपनी अपनी . 

हिंदी ब्लॉग लेखन में नित नए ब्लॉग जुड़ रहे हैं पर ग्रुप बाज़ी अब तभी होती हैं जब या तो हिन्दू मुस्लिम दंगा करवाना होता हैं या महिला पुरुष दंगल , बाकी समय स्वस्थ बहस हो जाती हैं .

 
 

April 20, 2012

मेरा कमेन्ट

जबसे ब्लॉग जगत से जुड़ा हूँ , ईमानदार लेखन, पढने  को लगभग तरस से गए !

अगर किसी की तारीफ़ करनी हो तो बाकी सबको नीचा दिखाने की क़ोई जरुरत नहीं होती हैं
आप को क्या अच्छा लगता हैं आप वो पढते हैं
आप की इन पंक्तियों ने मुझे अनूप शुक्ल की चिटठा चर्चा की याद दिला दी जहां उन्होने कहा था "विवेक सिंह मुझे इसलिये प्रिय हैं कि उनके जैसी मौलिक सोच वाली कविता /तुकबंदी और कोई किसी के यहां नहीं दिखती मुझे। बहुत कम शब्दों में बिना तामझाम के बात कहने का सलीका विवेक जैसा मुझे और नहीं दिखता फ़िलहाल। "http://chitthacharcha.blogspot.in/2009/09/blog-post_17.html


आप अपनी पसंद ना पसंद के तराजू पर किसी की ईमानदारी को कैसे तौल सकते हैं


दिन मे कितनी ब्लॉग पोस्ट हम मे से क़ोई पढ़ पाता हैं की आकलन कर सके क़ोई क्या और कितना कहां कहां लिख रहा हैं .
किसी की तारीफ़ करिये आप को टीप की बौछार मिलेगी ही पर उसके लिये बाकी सब को कटघरे में खड़ा कर देना कितना सही हैं



April 14, 2012

इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं

एक दिन एक डॉक्टर का बेटा
एक सरकारी दफ्तर में 
सिफारिश से बन गया कलर्क
बड़ी मुश्किल से
एक नौकरी का जुगाड़ हुआ 
वो भी एक सरकारी संस्थान में
ख़ैर
फिर उसने सोचा चलो
तरक्की के लिये
ब्लॉग लिखा जाये
हिंदी की रोटी सेकी जाये
और
ब्लॉग पर हिंदी को प्रमोट किया जाये
इस बहाने एक सरकारी चिट्ठी का
जुगाड़ उसने किया और
हिंदी सेवी होने का तमगा अपने लगा लिया
फिर
अपना जनम सिद्ध अधिकार समझ लिया
जो भी हिंदी मे ब्लॉग पर कुछ भी लिखे
उसकी हिंदी , रचना धर्मिता की आलोचना करना


सच हैं इंसान का मानसिक स्तर
उसके बचपन में ही दिख जाता हैं
वो कहते हैं ना
पूत के पाँव पालने मे ही दिख जाते हैं

वैसे ऐसे लोगो को
संस्कारो की बड़ी चिंता रहती हैं
जो खुद अपने ही माता पिता की
नज़रो में असफल होते हैं

दिस्क्लैमेर
इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
कमेन्ट करने वाले अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखे


April 01, 2012

फिल्मों या उनके प्रोमोज़ में ऐसा-वैसा कुछ दिखे तो दर्शकों को उस पर भी शिकायत दर्ज कराने के लिए भी कोई संस्था होनी चाहिए.


i uploaded एडवरटाइज़िंग स्टैंडर्ड काउंसिल आफ इंडिया link some time back on naari blog and now u given the link here great . such links need to circulated

as regards फिर फिल्मों या उनके प्रोमोज़ में ऐसा-वैसा कुछ दिखे तो दर्शकों को उस पर भी शिकायत दर्ज कराने के लिए भी कोई संस्था होनी चाहिए...अगर पहले से ही ऐसी कोई संस्था है, और किसी पाठक को उस पर जानकारी है तो सबसे अवश्य साझा करें...
i think you can put your objection on this link
http://cbfcindia.gov.in/home.aspx

if you will scroll down the page you will find "be vigilant "tab click that and put your complaint

now bloging is being used for social awareness and gives immense pleasure to see the same

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