एक दिन एक डॉक्टर का बेटा
एक सरकारी दफ्तर में
सिफारिश से बन गया कलर्क
बड़ी मुश्किल से
एक नौकरी का जुगाड़ हुआ
वो भी एक सरकारी संस्थान में
ख़ैर
फिर उसने सोचा चलो
तरक्की के लिये
ब्लॉग लिखा जाये
हिंदी की रोटी सेकी जाये
और
ब्लॉग पर हिंदी को प्रमोट किया जाये
इस बहाने एक सरकारी चिट्ठी का
जुगाड़ उसने किया और
हिंदी सेवी होने का तमगा अपने लगा लिया
फिर
अपना जनम सिद्ध अधिकार समझ लिया
जो भी हिंदी मे ब्लॉग पर कुछ भी लिखे
उसकी हिंदी , रचना धर्मिता की आलोचना करना
सच हैं इंसान का मानसिक स्तर
उसके बचपन में ही दिख जाता हैं
वो कहते हैं ना
पूत के पाँव पालने मे ही दिख जाते हैं
वैसे ऐसे लोगो को
संस्कारो की बड़ी चिंता रहती हैं
जो खुद अपने ही माता पिता की
नज़रो में असफल होते हैं
दिस्क्लैमेर
इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
कमेन्ट करने वाले अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखे
एक सरकारी दफ्तर में
सिफारिश से बन गया कलर्क
बड़ी मुश्किल से
एक नौकरी का जुगाड़ हुआ
वो भी एक सरकारी संस्थान में
ख़ैर
फिर उसने सोचा चलो
तरक्की के लिये
ब्लॉग लिखा जाये
हिंदी की रोटी सेकी जाये
और
ब्लॉग पर हिंदी को प्रमोट किया जाये
इस बहाने एक सरकारी चिट्ठी का
जुगाड़ उसने किया और
हिंदी सेवी होने का तमगा अपने लगा लिया
फिर
अपना जनम सिद्ध अधिकार समझ लिया
जो भी हिंदी मे ब्लॉग पर कुछ भी लिखे
उसकी हिंदी , रचना धर्मिता की आलोचना करना
सच हैं इंसान का मानसिक स्तर
उसके बचपन में ही दिख जाता हैं
वो कहते हैं ना
पूत के पाँव पालने मे ही दिख जाते हैं
वैसे ऐसे लोगो को
संस्कारो की बड़ी चिंता रहती हैं
जो खुद अपने ही माता पिता की
नज़रो में असफल होते हैं
दिस्क्लैमेर
इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
कमेन्ट करने वाले अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखे
हा हा हा ………अब जरूरी थोडी है रचना जी वो ब्लोगर हो या न हो सत्य तो सत्य ही रहेगा न ………इंसान की मानसिकता कभी नही बदलती फिर चाहे वो किसी का भी बेटा हो और वो खुद क्या है इस बात पर निर्भर करता है ………यही है आज के लोगों की मानसिकता ………दोहरे मापदंड
ReplyDeleteकमाल की कविता है और पहली टिप्पणी भी यही गवाही दे रही है।
ReplyDeleteएक तरो ताज़ा कर देने वाली रचना देने के लिए शुक्रिया !
रचना जी!...यथार्थ को आपने कहानी में ढाला है!...लोग ऐसा ही कर रहे है!...सुन्दर प्रस्तुति!...आभार!
ReplyDeletephir sochana padega ki kya likhoon? kya comment karne vale par patthar vagairah barasane kee yojana lagi hai sath men vah bhi mupht.
ReplyDeleteis it true ?
ReplyDeleteऔरत को पियक्कड़ शराबियों के दरम्यान छोड़ देने का मतलब है उसे बर्बाद होने के लिए छोड़ देना .
जी मैं संदर्भ नहीं जानता, बार बार ताकीद किया गया है कि किसी खास से इसका मतलब नहीं है। ये समझने के लिए काफी है कि ये खास मकसद और किसी को टारगेट करके लिखा गया है। पर किसे.. मुझे नहीं पता..
ReplyDeleteपर हां ये जरूर कहूंगा जिसे आप संदेश देना चाहती हैं,ये संदेश साफ है, उन तक पहुंच जरूर गया होगा।
दोहरे मापदंड की अंतर्कथा
ReplyDeleteएक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
ReplyDelete:-)