मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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January 03, 2011

हिंदी ब्लोगिंग क्या हैं हिंदी मे ब्लॉग लिखना या ब्लॉग पर अच्छी हिंदी लिखना ???

कल प्रवीण शाह की पोस्ट पढी उस से पहले सतीश पंचम भी इसी विषय पर लिख चुके थे । चलो हिंदी ब्लोगिंग मे नकरातमक सोच वाले लोगो की संख्या मे इजाफा हो रहा हैं ।
हिंदी ब्लोगिंग क्या हैं हिंदी मे ब्लॉग लिखना या ब्लॉग पर अच्छी हिंदी लिखना ???
पंकज सुबीर जी के ब्लोग्पर जब भी जाना होता एक अध्यापक के लिये सिर नवाने का मन करता है । ना जाने कितने लोग / ब्लॉगर उनसे ग़ज़ल सीख रहे हैं फिर चाहे वो समीर हो , गौतम हो , या कंचन हो । लेकिन मैने कभी भी पंकज सुबीर का कोई कमेन्ट किसी भी ब्लॉगर की कविता पर / ग़ज़ल पर नहीं पढ़ा की यहाँ मीटर सही नहीं हैं या बंदिश की गलतियां हैं । वो अगर टीचर हैं तो उन्होने ब्लॉग का इस्तमाल करके एक विधा को आगे बढ़ाया हैं ना की किसी की अशुद्धियों को , हिंदी के हिज्जो को , टकण की गलतियों के लिये उसके ब्लॉग पर जा कर अपना ज्ञान दिखाते हुए ब्लॉगर का उपहास किया हैं ।
कभी कभी लगता हैं हिंदी सीखने वालो की कमी तो नहीं हैं । कोई हिंदी ज्ञाता क्यूँ नहीं अपने किसी ब्लॉग पर हिंदी की क्लास लेता हैं । जिनको सही हिंदी सीखनी होगी जरुर वहाँ आकर सीखेगे । सक्रिय होकर क्यूँ नहीं कोई हिंदी के उत्थान के लिये कोई ये करता हैं ।
हम हिंदी मे ब्लॉग लिखते हैं तो केवल इस लिये की हिंदी बोलचाल की भाषा हैं और हिंदी मे टंकन की सुविधा मिल गयी हैं । लेकिन इसके लिये हिंदी मे पारंगत होना जरुरी नहीं हैं ।

जो सीखना चाहे वो अपने ब्लॉग पर अगर सुबीर जी की तरह सिखाये तो सीखने वाले वही आयेगे अपने देश से ही नहीं विदेश से भी । केवल लिखना ही नहीं उसके उच्चारण के लिये विडियो इत्यादि भी डाले । हिंदी मे किस्सा कहानी उपन्यास ब्लॉग पर लिखने से हिंदी का स्तर नहीं उठ सकता और ना ही दूसरो की हिंदी के हिज्जे ठीक करने से , स्तर उठाना हैं तो मुहीम की तरह ब्लॉग पर हिंदी की कोचिंग शुरू करे लेकिन अपने ब्लॉग पर । अतिवादी हूँ रहूंगी ।

चलते चलते
मेरे माता पिता , दिल्ली विश्विद्यालय से हिंदी मे रीडर का पद से रिटायर हुए थे । दोनों लखनऊ विश्विद्यालय से हिंदी मे ऍम ऐ मे गोल्ड मेडलिस्ट थे और दोनों के अंडर मे कम से कम १४ १४ विद्यार्थियों ने पी एच डी की हैं । उनके पास हिंदी की अनमोल पुस्तके हैं जिन मे कुछ पांडुलिपियाँ भी हैं । अगर किसी विद्यार्थी को कोई पुस्तक चाहिये हो तो वो संपर्क कर सकता हैं । माँ अब पुस्तके बांटना चाहती हैं उन मे जिनको जरुरत हो ।

नया साल सब को शुभ हो

14 comments:

  1. Happy New Year

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    http://reflexion-poojaprajapati.blogspot.com/

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  2. आपको नये वर्ष की शुभकामनायें।

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  3. माफ करें रचना जी चूंकि आपके ब्‍लाग का नाम ही बिना लाग लपेट के है और आप भी बात बिना लाग लपेट के ही कह रही हैं। सो मैं भी हिम्‍मत करके बिना लाग लपेट के कुछ कहना चाहता हूं।

    मुझे तो इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती कि यहां ब्‍लाग पर लिखने वाले अगर अपनी हिन्‍दी भी सुधारते जाएं। दो चार लोग अगर उन्‍हें उनकी वर्तनी की गलतियां बता रहे हैं तो इसमें आपत्ति क्‍या है। जिसे नहीं सुधरना है वह न सुधरे। जिन्‍हें नहीं सीखना होगा वे नहीं सीखेंगे।
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    अन्‍यथा न लें आपके माता-पिता हिन्‍दी विषय के रीडर रहे हैं,दोनों हिन्‍दी में एमए गोल्‍ड मेडलिस्‍ट रहे हैं,लेकिन फिर भी आपने हिन्‍दी नहीं सीखी। या फिर आप जानबूझकर यहां इस तरह की अधकचरी हिन्‍दी लिख रही हैं।
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  4. यदि कोई उपहास ना उड़ कर हमारी गलत हिंदी की ओर हमारा ध्यान दिलाता है तो मुझे उसमे कोई बुराई नहीं नजर आती है इससे भले हिंदी साहित्य का का कोई लाभ हो या ना हो, इससे हमारी हिंदी और अच्छी ही होगी | हा कोई ये काम आप का मजाक उड़ाने के लिए करे या ये कहे की चुकि आप अच्छी हिंदी नहीं लिख सकती तो आप को हिंदी ब्लोगिंग नहीं करनी चाहिए तो वो गलत है उसकी तरफ ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है |

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  5. अपनी भाषा का सुधार स्वयं करना बहुत अच्छी बात है. यदि कोई दूसरा तत्संबंधी सहायता दे सकता है तो उसकी सेवाओं को देखना चाहिए. यह ब्लॉगर का अपना दृष्टिकोण है कि वह ऐसी सेवा का उपयोग करना चाहता है अथवा नहीं.

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  6. राजेश उत्साही जी
    जब हम सीखने की उम्र मे होते हैं तो बच्चे होते हैं और उस समय हमारे लिया क्या पढना उचित है इसका फैसला हमारे माँ पिता ही करते हैं
    इस से ज्यादा क्या कह सकती हूँ ।
    कोई क्या करता हैं और क्यूँ करता हैं अपने निज जीवन मे , उसके क्या लक्ष्य हैं जिन्दगी मे इस के लिये पहले उसको जानना जरुरी हैं
    मै आयत निर्यात के पेशे मे हूँ , अपनी खुद की कंपनी चलती हूँ , सो हिंदी मेरी भाषा हैं पर जीविका का साधन नहीं । मेरे लक्ष्य हमेशा साफ़ थे सो उनको पूरा करने के लिये क्या पढना उचित हैं वो पढ़ा और उस मे मै भी प्रथम ही रही हूँ ।

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  7. एक लिंक हैं जहा डॉ अमर ने इस बात पर काफी बहस करवाई थी की लिंक ये हैं आप को जरुर पढना चाहिये राजेश उत्साही जी
    http://c2amar.blogspot.com/2009/10/blog-post.html

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  8. रचना जी आपकी बात से पूरी तरह सहमति है। इसलिए मेरा यह सवाल ही नहीं है कि आपने अच्‍छी हिन्‍दी क्‍यों नहीं सीखी। मैं कह रहा हूं जिन्‍हें सीखनी होगी वे सीख लेंगे,अन्‍यथा साधन होने पर भी नहीं सीखेंगे।
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    बहरहाल आप आयत-निर्यात के व्‍यवसाय में हैं और वह आपकी जीविका का साधन है। मेरी जीविका संपादकीय है और वह भी हिन्‍दी भाषा की। जाहिर है कि मैं कम से कम अपनी हिन्‍दी को बेहतर रखना चाहता हूं और जहां कहीं मुझे इसमें कोई कमी दिखती है उसे इंगित करने की कोशिश करता हूं।
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    आपने अमरकुमार जी का जो‍ लिंक दिया,उस पर एक छोटी सी पोस्‍ट पढ़ने को मिली। बहस तो वहां नजर ही नहीं आई।

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  9. राजेश उत्साही जी मेरी पोस्ट मे हिंदी ना सीखने की बात ही नहीं कही गयी थी , मैने तो ये लिखा था की जिनकी हिंदी अच्छी हैं वो क्यूँ नहीं अपने ब्लॉग को जरिया बनाते हैं पंकज सुबीर जी के तरह और लोगो को हिंदी सीखने की शुरुवात करते हैं । पोस्ट आप दुबारा जरुर पढे । मैने प्रवीण शाह की पोस्ट के बाद अपनी सोच यहाँ रखी हैं ना की ये कहा हैं की हिंदी मत सिखाये । आप ने अधकचरा कहा मेरी हिंदी को कोई बात नहीं आप की तरह हिंदी की पंडित नहीं हूँ और ना बनना चाहती हूँ हां हिंदी बोल चाल की भाषा हैं मेरी और वो रहेगी


    "लेकिन फिर भी आपने हिन्‍दी नहीं सीखी।" और आप का प्रश्न यही था और इसीलिये जवाब भी दिया

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  10. रचना जी आप अपनी इसी पोस्‍ट का चलते-चलते वाला पैराग्राफ पढ़कर देखें। उस पैराग्राफ को पढ़कर ही मैंने अधकचरी हिन्‍दी की बात कही थी। माफ करें पंडित मैं भी नहीं हूं हिन्‍दी का और न ही मेरे पास कोई अधिकारिक डिग्री है। मैं भी बोलचाल की हिन्‍दी ही लिखता और बोलता हूं। लेकिन कोशिश करता हूं कि हर संभव सही लिखूं और बोलूं।
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    पंकज सुबीर जी साहित्‍य की एक विधा को सिखा रहे हैं। जो शायद लोग सीखना चाहते हैं। उस विधा को सीखने में यह निहित है कि आपको भाषा का ज्ञान हो। जिन्‍हें वह ज्ञान है और जिनकी रूचि है वही लोग वहां जाएंगे। लेकिन भाषा सीखने के लिए कोई किसी ब्‍लाग पर नहीं आएगा, ऐसा मेरा मानना है।

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  11. जिनके पास हिंदी कोई आधिकारिक डिग्री ही नहीं हैं वो अगर अधकचरी शब्द का उपयोग करते हैं तो उनको पुनह अपने शब्दों पर विचार करना होगा । ब्लॉग पर बहुत कुछ हो सकता हैं पर हिंदी ब्लॉगर आज भी एक दूसरे के हिज्जे सही करने मे लगे हैं । ब्लॉग पर अपने को साहित्यकार समझने की भ्रान्ति बहुत से लोग पाले हैं हैं और यही elite दिखने का भ्रम हैं ।

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  12. जिन्‍हें वह ज्ञान है और जिनकी रूचि है वही लोग वहां जाएंगे। लेकिन भाषा सीखने के लिए कोई किसी ब्‍लाग पर नहीं आएगा, ऐसा मेरा मानना है।

    yaani log hindi seekhnae kae ichchuk aap ko nahin lagtey to phir itni haay tauba hi kyu machani haen

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  13. इस विषय पर अंशुमाला जी का नजरिया बेहतर लगा। मैं खुद उन्हें भी और कई और को भी एकाधिक बार गलतियों पर टोक चुका हूँ(और खुद भी इस विषय पर टिप्पणियाँ प्राप्त कर चुका हूँ) लेकिन इस टोकाटाकी का उद्देश्य खुद को विद्वान दिखाना और दूसरों को नीचा दिखाना नहीं बल्कि परस्पर सहयोग के द्वारा सुधार करना है। भाग्यवश न मेरी इन बातों का किसी ने बुरा माना है न मैंने। वजह शायद - कहने-समझने के पीछे उद्देश्य। और सीखने की कोई उम्र नहीं होती, शायद। पंकज सुबीर जी का उदाहरण आपने दिया है, वे भी अनुकरणीय हैं लेकिन अगर मुझे कोई मेरी गलती पर टोके तो मैं उसका स्वागत ही करूँगा।

    पोस्ट के आखिरी पैरा में आपने जिन पुस्तकों का जिक्र किया है, उन्हें अगर किसी तरीके से ऒनलाईन मुहैया करवाया जा सके तो ज्यादा लोग लाभान्वित हो सकेंगे।

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  14. मोम सम कौन
    वो पुस्तके हिंदी विषय की हैं उनकी जरुरत हिंदी के शोध करने वाले लोगो को होती हैं । ऑन लाइन करने के समय और पैसा दोनों चाहिये जो नहीं हैं ।

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