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January 05, 2012

क्या आप को लगता हैं अब शाकाहारी खाने के शौक़ीन ज्यादा बाहर जा कर खाना पसंद करेगे ?

क्या आप जानते हैं की भारतीये होटल अब वेजिटेरियन खाने को ज्यादा अहमियत देने वाले हैं । कारण बड़ा सीधा हैं एक सर्वे ने बताया हैं की जिन लोगो के पास ज्यादा पैसा हैं यानि खरीदने की ज्यादा ताकत हैं वो सब ज्यादातर वेजिटेरियन हैं और उन में से बहुत से ऐसे हैं जो होटल में केवल इस लिये खाना नहीं खाते हैं क्युकी वहाँ नॉन वेजिटेरियन खाना भी बनता हैंअब बहुत से होटलों ने केवल वेजिटेरियन खाना बनाने और बेचने की सोची हैं ।कुछ होटल अपने यहाँ अलग से शाकाहारी खाने का काउंटर भी लगाने की सोच रहे हैं ।

क्या आप को लगता हैं अब शाकाहारी खाने के शौक़ीन ज्यादा बाहर जा कर खाना पसंद करेगे ?
शाकाहारी खाना सेहत के लिये फायदेमंद हैं ये सब जानते हैं । मेरा मानना हैं खाना अपनी पसंद का ही खाना चाहिये लेकिन नॉन वेज खाने के साथ जुड़ी जीव ह्त्या मुझे उस खाने को खाने से हमेशा रोकती हैं ।

लोग वेज नॉन वेज को हिन्दू मुस्लिम से जोड़ कर एक दूसरे पर तोहमत लगाते हैं , विज्ञान खाने के लिये जीव ह्त्या को कभी सही तो कभी गलत मानता हैं , गलत तब जब जिसको मारा जा रहा हैं वो प्रजाति विलुप्त हो रही हो ।

आज कल दिल्ली में गिलहरी का meat खाने के शौक़ीन भी पाए जा रहे हैं । सोच कर भी मन व्यथित होता हैं जब इस प्रकार से जीव ह्त्या होती हैं ।

जो लोग विदेशो में जा कर बर्गर , हॉट डॉग इत्यादि बड़े शौक से खाते हैं अगर कभी ध्यान दे तो पायेगे वो सब गाय के मॉस से ही बनते हैं । खाने से पहले एक बार काउंटर पर पूछ ले तो आप को भ्रम नहीं रहेगा ।

नॉन वेज खाने वाले मानते हैं नॉन वेज नॉन वेज होता हैं किसी भी जीव का हो क़ोई फरक नहीं पड़ता हैं ।
जापान में शायद ही क़ोई सलाद हो जिसमे मछली ना पड़ती हो , वहाँ मछली वेज मानी जाति हैं । बंगकोक में बीफ को वेज मानते हैं और वेज बर्गर मांगने पर मेक्डोनाल्ड ने मुझ बीफ बर्गर दिया था पर वहाँ की मेनेजर ने मुझे खाने से रोका था और कहा था की आप भारतीये हैं ये आप ना खाये ।


आज के लिये इतना ही

4 comments:

  1. @ रचना जी ! आप को नॉन वेज खाने से जो समस्या रोकती है। उसका निराकरण वैज्ञानिकों ने कर दिया है।
    अब मांस को भी घास की तरह ही उगाया जा सकेगा। इस तरह हरे-सफ़ेद जीवों के बीच चलने फिरने का जो अंतर था वह भी मिट जाएगा वर्ना जीव तो दोनों ही होते हैं। मांस को भी हैल्दी पाया है वैज्ञानिकों ने और इसीलिए उन्होंने संतुलित आहार के लिए इसे मेन्यू में शामिल किया है।
    देखें -
    http://aryabhojan.blogspot.com/2011/02/take-meat.html
    विदेशों की छोड़िये, हमारे आचार्य गजेंद्र कुमार पंडा उड़ीसा के रहने वाले हैं। हमने एक संस्कृत संभाषण वर्ग का आयोजन किया तो वे हमारे पास तशरीफ़ लाए। हमने उन्हें शुद्ध शाकाहारी भोज कराया तो दो दिन बाद बोले कि ‘मछली बनवाओ।‘
    उनके भोजन का इंतेज़ाम सैयद साहब के घर पर था। उन्होंने उनके लिए मछली बनवाई, उन्होंने उसे खाया।
    हम समझे कि वह मांसाहारी हैं। अगले दिन उनके लिए मुर्ग़ा बनवाया गया।
    उसे देखकर उन्होंने खाने से इंकार कर दिया।
    बोले हम मांस नहीं खाते।
    उन्हें याद दिलाया गया कि कल आपने मछली खाई थी न।
    बोले कि हां, लेकिन मछली को तो हम आलू की तरह मानते हैं।

    भारत में भी अलग अलग इलाक़े के शाकाहारियों के भोजन का मेन्यू अलग अलग है।

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  2. भारत में भोजन "निरामिष" और "सामिष" के रूप में वर्गीकृत है जिन्हें लोक भाषा में क्रमशः शाकाहार और मांसाहार के रूप में जाना/बोला जाता है .
    अर्थात भारतीय संस्कृति में भोजन की रेखा मांस रहित और मांस सहित , मांस को लक्षित किया गया है सारा व्यवहार इसे लेकर समझाया गया है की कहीं मांस ना हो .
    जबकि इतर संस्कृतियों विशेषकर आंग्ल संस्कृति में "वेजिटेरियन " और "नॉन-वेजिटेरियन " शब्द प्रयुक्त है . जो किसी वनस्पति/शाक से सम्बंधित आहार है वह "वेज" कहलाता है. इस भाषा नियम के हिसाब से हर वह वस्तु "नॉन-वेज" है जो वनस्पति/शाक नहीं है.
    इसी तरह हर संस्कृति के आहार सम्बन्धी क्रम/व्यतिक्रम कालक्रम से निर्धारित हुयें है.
    रही बात बंगाली ब्राह्मणों की तो कुछ अध्यनशील बनिए पहले कुछ कुछ फिर सबकुछ समझ में आजायेगा की यह "मच्छी-झोल" का झोल कैसे इतना विस्तार ले पाया.
    बंगाल विगत सैकड़ों वर्षों से वाममार्गी शक्ति उपासना का गढ़ है जिसमें वाम साधना के विकृत आचार-विचारों का सम्पादन हर ओर व्याप्त था क्योंकि हर वाशिंदा वाममार्गी शक्ति-उपासक बन चुका था. तब ऐसे घटाटोप में जब पुनः मूल संस्कारों का उदय होना प्रारंभ हुआ और वैष्णवता के विचार के रूप में संस्कृति पुनः पल्लवित होने लगी तो सारी विकृतियाँ धीरे धीरे दूर हो गई. कुछ अवशेष अभी भी वर्तमान है, जो की तत्सामयिक घोरतम अनाचार के सामने नगण्य प्रतीत होता है जो समय पाकर स्वमेव हट जाएगा.

    दक्षिण के वाशिंदों में भी यह अनाचार कुछ इन्ही कारणों और अधिकांशतया मलेच्छों के दीर्घ संपर्क के संक्रमण से फैले है.
    लेकिन फिर भी "सामिष" पर "निरामिष" की उत्कृष्टता से हर बुद्धिमान प्राणी सहमत है चाहे वह खुद सामिष भोजी हो या निरामिष भोजी.

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  3. bahut hi sundar prashtuti ...rachana ji achary rajneesh ne kaha tha ki tark to ak veshya hoti hai jo hamesha kisi bade tark shastri ki god me ja baithati hai .....pr hamesha antaratma ki aawaj yatharth tk pahuchati hai ....ath yatharth to yahi hai mansahar lena sadaiv bura hi hai

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