आज एक हिंदी ब्लॉग पढ़ कर पता चला की अगर हम कहीं ये लिखते हैं की " अभिन्न मित्र ने कहा " तो उसका अर्थ होता हैं की जिसके बारे में लिखा गया हैं वो जिसने लिखा हैं उसकी अभिन्न मित्र नहीं हैं ।
कमाल हैं लोग कितनी आसानी से अपनी मित्रताओ को नकार देते हैं ।
जब मन हुआ मित्र बन गए । जब मन हुआ कह दिया ऐसी तो क़ोई मित्रता थी ही नहीं ।
जब मै लिखती थी की ब्लॉग पर मित्र इत्यादि नहीं लिखना चाहिये तब जो लोग परिवार की दुहाई देते थे और आज वही लोग किसी का मित्र कहे जाने पर मित्रता को ही नकार रहे हैं ।
कमेन्ट बंद हैं क्यूँ पता नहीं म्यूजिक जो बजाया सुनाया जा रहा हैं । बेचारे मित्र जो सम्मान देते नहीं थकते आज मित्र ही नहीं हैं । हाँ नहीं तो ।
डिस्क्लेमर
आज कल नया धारावाहिक चल रहा हैं सोनी टी वी पर मोनिया ये हाँ नहीं तो वही से सीखा हैं जी कहीं क़ोई भ्रम ना हो इस लिये डिसक्लेम करदिये
अभिन्न
अ + भिन्न
भिन्न का अर्थ अलग यानी भिन्नता लिये हुए
अ यानी जुड़ा हुआ
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं