पहली बार आप के आलेख पर आपत्ति दर्ज करा रही हूँ ।
आप का निष्कर्ष "विदेश में रहने वालों के लिए यह मंजर बहुत आम है- यहाँ वो आयें तो अतिथि और हम वहाँ जायें तो डॉलर कमाने वाले!! दोनों तरफ से लूजर और यूँ भी अपनी जमीन से तो लूजर हैं ही!!!" निहायत छोटी सोच का परिचायक लगा
क़ोई भी भारत से आप के यहाँ अगर आता हैं तो आप से पूछ कर ही आता होगा और क्युकी आप आप ने कहा ये आम बात हैं की भारतीये विदेशो में बसे भारतीयों के यहाँ जा कर अतिथि बन जाते हैं तो ये पहला प्रकरण नहीं होसकता । यानी आप स्वयं भी कहीं ना कहीं इसके लिये जिम्मेदार हैं । आप को जब पता हैं भारत से आने वाले गरीब टुट पुन्जिये हैं तो आप को उन्हे न्योता देने की जगह उन से सम्बन्ध ही तोड़ लेना चाहिये ।
हम कितना भी गरीब सही पर जमीर अभी जिन्दा हैं समीर भाई , आशा हैं नाराज नहीं होगे और हो तो क्षमा कर दे पर ये कमेन्ट देना जरुरी था ।
मै अपनी बात भी बता दूँ की मै तो भारत में भी किसी रिश्ते दार के घर नहीं रुकती , होटल में ही रहना पसंद करती हूँ
कनाडा आती तब भी वहीँ करती ।
मेरा कमेन्ट यहाँ
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete.
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रचना जी,
बिना लाग लपेट के जो कहा जाये वही सच है !
साथ हूँ आपके...
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manoj aur praveen
ReplyDeleteaap dono ne sahi samjhaa thanks
रचना जी , आप की बात सही है मगर व्यंग्य को अगर हम एक व्यंग ही मानकर चले तो सायद बुरा न लगे .
ReplyDeleteलेकिन अगर उसको सही समझलें तो बुरा लग्न लाज़मी है . व्यंग तो हम अपने आप पर भी कर लेते हैं |
हाँ, अविनाश वाचस्पति जी की भाषा थोड़ी अटपटी लगी जेंडर बेस कमेन्ट करने से गलत मेसज जाता है.
समीर जी का उदेश्य भी भारतीयों को चोट पहुचाने का नहीं था लेकिन अगर हम उस लेख को दुसरे तरीके से
लें तो बुरा लगना लाजमी है.
तब आप ने व्यंग माना था ??जब कुछ दिन पहले
ReplyDeletehttp://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-12-31/uk/30576083_1_indian-culture-bbc-jeremy-clarkson
तब आप ने व्यंग माना था ??जब कुछ दिन पहले ये देखा था , हर चीज की एक सीमा हैं और मैने उनके दिये हुए निष्कर्ष पर आपत्ति की हैं और ये भी कहा हैं क्युकी न्योता उन्होने दिया था इस लिये वो भी गलत हैं
और रही बात अविनाश वाचस्पति की तो उनको gender sensitive lessons की अति आवश्यकता हैं । वो अपने को एक महान ब्लॉगर साहित्याकार समझते हैं समझते रहे ।