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लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरक नहीं हैं , पूरक शब्द का प्रयोग केवल और केवल पति पत्नी के लिये होता हैं .
बच्चे दोनों बराबर होते हैं होने भी चाहिये . एक की तुलना कभी दूसरे से नहीं होनी चाहिये , मेरी बेटी बेटे जैसी हैं ये कह कर लोग बेटी को दोयम का दर्जा देते हैं और बेटे को उस से एक सीढ़ी ऊपर रखते हैं
बच्चो को लिंग ज्ञान उनके अभिभावक देते हैं , बच्चे नक़ल करते हैं और उनकी उम्र पर ये एक खिलवाड़ हैं
बड़े होने पर संविधान उनको अपनी पसंद का पहनावा पहनने का हक़ देता हैं , पहनावा अगर सुरुचि पूर्ण हैं तो किसी की पसंद पर आपत्ति नहीं की जा सकती हैं
जैसे लडकियां पेंट पहन सकते हैं लडके स्कर्ट पहन सकते हैं
अभी हॉवर्ड में ड्रेस कोड महज इस लिये ख़तम किया गया हैं क्युकी अब वहाँ ट्रांस जेंडर भी पढते हैं , अब हावर्ड में लिंग आधारित पहनावा पहनना जरुरी नहीं हैं
और आधुनिकता और आँख की शर्म इत्यादि हर नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी समझाती ही आयी हैं
हर नयी पीढ़ी एक दिन पुरानी होती हैं और उस दिन वो अपनी नयी पीढ़ी को वही सीखती हैं जो उनकी पुरानी पीढ़ी ने उनको सिखाया था
लिव इन , गे , लिस्बन , इत्यादि सब पहले भी था और अब भी हैं , तब चोरी छुपे था , अब कानून सही हैं
प्रकृति के नियम के विरुद्ध कुछ हो ही नहीं सकता हैं क्युकी प्रकृति स सक्षम हैं अपने को सही रखने के लिये
@आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना। आप सभी को क्या लगता है ???? पल्लवी जी आप खुद विदेश में रहती हैं , फिर भी आप कई पोस्ट पर यही लिख चुकी हैं , कई बार मन किया पूछने का मन किया हैं की आप वापस आकर भारत में रहकर , हम सब के साथ क्यूँ नहीं अपने देश को और बेहतर बनती हैं , क्यों नहीं अपने विदेशी परिवेश को तज कर अपनी भारतीय होने को भारत में रह कर एन्जॉय करती हैं
आप को हमेशा ऐसा क्यूँ लगता हैं की हम सब विदेशियों को कॉपी करके अपनी संस्कृति भूल रहे हैं और आप जो यहाँ रह भी नहीं रही वो हम सब से ज्यादा देशी हैं और हम सबको देशी बने रहने के लिये कह सकती हैं
आप अगर वहाँ खुश हैं तो हम भी यहाँ खुश हैं और भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं
लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरक नहीं हैं , पूरक शब्द का प्रयोग केवल और केवल पति पत्नी के लिये होता हैं .
बच्चे दोनों बराबर होते हैं होने भी चाहिये . एक की तुलना कभी दूसरे से नहीं होनी चाहिये , मेरी बेटी बेटे जैसी हैं ये कह कर लोग बेटी को दोयम का दर्जा देते हैं और बेटे को उस से एक सीढ़ी ऊपर रखते हैं
बच्चो को लिंग ज्ञान उनके अभिभावक देते हैं , बच्चे नक़ल करते हैं और उनकी उम्र पर ये एक खिलवाड़ हैं
बड़े होने पर संविधान उनको अपनी पसंद का पहनावा पहनने का हक़ देता हैं , पहनावा अगर सुरुचि पूर्ण हैं तो किसी की पसंद पर आपत्ति नहीं की जा सकती हैं
जैसे लडकियां पेंट पहन सकते हैं लडके स्कर्ट पहन सकते हैं
अभी हॉवर्ड में ड्रेस कोड महज इस लिये ख़तम किया गया हैं क्युकी अब वहाँ ट्रांस जेंडर भी पढते हैं , अब हावर्ड में लिंग आधारित पहनावा पहनना जरुरी नहीं हैं
और आधुनिकता और आँख की शर्म इत्यादि हर नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी समझाती ही आयी हैं
हर नयी पीढ़ी एक दिन पुरानी होती हैं और उस दिन वो अपनी नयी पीढ़ी को वही सीखती हैं जो उनकी पुरानी पीढ़ी ने उनको सिखाया था
लिव इन , गे , लिस्बन , इत्यादि सब पहले भी था और अब भी हैं , तब चोरी छुपे था , अब कानून सही हैं
प्रकृति के नियम के विरुद्ध कुछ हो ही नहीं सकता हैं क्युकी प्रकृति स सक्षम हैं अपने को सही रखने के लिये
@आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना। आप सभी को क्या लगता है ???? पल्लवी जी आप खुद विदेश में रहती हैं , फिर भी आप कई पोस्ट पर यही लिख चुकी हैं , कई बार मन किया पूछने का मन किया हैं की आप वापस आकर भारत में रहकर , हम सब के साथ क्यूँ नहीं अपने देश को और बेहतर बनती हैं , क्यों नहीं अपने विदेशी परिवेश को तज कर अपनी भारतीय होने को भारत में रह कर एन्जॉय करती हैं
आप को हमेशा ऐसा क्यूँ लगता हैं की हम सब विदेशियों को कॉपी करके अपनी संस्कृति भूल रहे हैं और आप जो यहाँ रह भी नहीं रही वो हम सब से ज्यादा देशी हैं और हम सबको देशी बने रहने के लिये कह सकती हैं
आप अगर वहाँ खुश हैं तो हम भी यहाँ खुश हैं और भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं