क्या ज़माना आ गया हैं इतने इतने proficient लोग lotus की टहनी को डंडा समझ कर satisfy हो जाते हैं . रस्सी जल गयी बल नहीं गए . सांप सांपिन के अंडे गिनने में लग गए . अब बताओ सांप ने कहीं भी बिल बनाया हो , सांपिन ने कहीं में अंडे दिये हो आप को क्यूँ तकलीफ हैं . आप अपनी proficiency से सांप को रस्सी समझो या रस्सी को सांप क्या फरक पड़ता हैं . कम से सांप को तो नहीं पड़ता हाँ सांपिन ने देख लिया तो जन्म जन्म तक बदला लेती हैं . और भगवान् ना करे {वैसे proficient लोग भगवान् को मानते ही नहीं हैं} सांपिन ऐसा करे .
जितने भी proficient हैं और जो lotus के साथ satisfied हैं उनसब की जानकारी के लिये बता दूँ एक बड़ा ही popular tatoo बनाया जाता हैं जिसमे lotus के चारो तरफ एक सांप लिपटा होता हैं .
जिसका अर्थ हैं जो दिखता हैं वैसा होता नहीं हैं lotus की सुन्दरता के अन्दर भी danger हो सकता हैं .
किसी ने रस्सी को सांप समझ लिया पीट दिया उसकी मर्ज़ी लेकिन आप के घर में आकर पीट दिया और आप देखते रहे , अब हिम्मत की दाद देनी चाहिये किसी ? उसकी जो आप के घर में आ कर पीट पाट कर चलागया और आप रस्सी रस्सी चिल्लाते रहे . चिंदी चिन्दी करदी गयी बिचारी रस्सी जो आपके भरोसे थी और आप तमाशा देखते रहे और फिर भी satisfied हैं .
वैसे tug ऑफ़ war में वही जीतता हैं जिसका खिलाड़ी तगड़ा होता हैं और रस्सी के छोर पर बंधा होता हैं , सब के हाथ से रस्सी छुट भी जाए तब भी अंगद की तरह उसका पाँव नहीं हिलता .
अपनी अपनी रस्सी तो संभलती नहीं है आज कल के proficient लोगो से और दूसरो के घरो के बिम्ब और प्रतीक की चिंता खाए जाती हैं . इतनी लापरवाही सही नहीं हैं , जिनके हवाले देश की सीमाए हो वो अपना घर ना संभाल सके तो LOC पर क्या होगा . अब ceasefire नहीं होता हैं आज कल , वो ज़माने ख़तम हुए
बाकी कुछ विध्वंसक मानते मानते दिव्य-रचना कह कर satisfied होते हैं आखिर सच हमेशा सच ही होता हैं ,विध्वंसक रचना ही दिव्य होती हैं क्युकी विध्वंस के बाद ही सृजन होता हैं
अल्प ज्ञान हैं फिर भी satisfaction हैं अपना क्या . ??
डिस्क्लेमर
इस पोस्ट इस ब्लॉग जगत से ही लेना देना हैं
कमेन्ट मोडरेशन सक्षम हैं
जितने भी proficient हैं और जो lotus के साथ satisfied हैं उनसब की जानकारी के लिये बता दूँ एक बड़ा ही popular tatoo बनाया जाता हैं जिसमे lotus के चारो तरफ एक सांप लिपटा होता हैं .
जिसका अर्थ हैं जो दिखता हैं वैसा होता नहीं हैं lotus की सुन्दरता के अन्दर भी danger हो सकता हैं .
किसी ने रस्सी को सांप समझ लिया पीट दिया उसकी मर्ज़ी लेकिन आप के घर में आकर पीट दिया और आप देखते रहे , अब हिम्मत की दाद देनी चाहिये किसी ? उसकी जो आप के घर में आ कर पीट पाट कर चलागया और आप रस्सी रस्सी चिल्लाते रहे . चिंदी चिन्दी करदी गयी बिचारी रस्सी जो आपके भरोसे थी और आप तमाशा देखते रहे और फिर भी satisfied हैं .
वैसे tug ऑफ़ war में वही जीतता हैं जिसका खिलाड़ी तगड़ा होता हैं और रस्सी के छोर पर बंधा होता हैं , सब के हाथ से रस्सी छुट भी जाए तब भी अंगद की तरह उसका पाँव नहीं हिलता .
अपनी अपनी रस्सी तो संभलती नहीं है आज कल के proficient लोगो से और दूसरो के घरो के बिम्ब और प्रतीक की चिंता खाए जाती हैं . इतनी लापरवाही सही नहीं हैं , जिनके हवाले देश की सीमाए हो वो अपना घर ना संभाल सके तो LOC पर क्या होगा . अब ceasefire नहीं होता हैं आज कल , वो ज़माने ख़तम हुए
बाकी कुछ विध्वंसक मानते मानते दिव्य-रचना कह कर satisfied होते हैं आखिर सच हमेशा सच ही होता हैं ,विध्वंसक रचना ही दिव्य होती हैं क्युकी विध्वंस के बाद ही सृजन होता हैं
अल्प ज्ञान हैं फिर भी satisfaction हैं अपना क्या . ??
डिस्क्लेमर
इस पोस्ट इस ब्लॉग जगत से ही लेना देना हैं
कमेन्ट मोडरेशन सक्षम हैं
ReplyDeleteवैसे tug ऑफ़ वर(रस्सा कसी ) में वही जीतता हैं जिसका खिलाड़ी तगड़ा होता हैं और रस्सी के छोर पर बंधा होता हैं , सब के हाथ से रस्सी छुट(छूट)......छूट ...... भी जाए तब भी अंगद की तरह उसका पाँव नहीं हिलता .
अपनी अपनी रस्सी तो संभलती नहीं है आज कल के proficient लोगो(लोगों )....लोगों ..... से और दूसरो(दूसरों )....दूसरों .... के घरो(घरों )....घरों .... के बिम्ब और प्रतीक की चिंता खाए जाती हैं . इतनी लापरवाही सही नहीं हैं , जिनके हवाले देश की सीमाए(सीमाएं )...सीमाएं ....... हो वो अपना घर ना संभाल सके तो LOC पर क्या होगा . अब ceasefire नहीं होता हैं आज कल , वो ज़माने ख़तम हुए
बाकी कुछ विध्वंसक मानते मानते दिव्य-रचना कह कर satisfied होते हैं आखिर सच हमेशा सच ही होता हैं ,विध्वंसक रचना ही दिव्य होती हैं क्युकी(क्योंकि )....क्योंकि .... विध्वंस के बाद ही सृजन होता हैं
बढ़िया प्रस्तुति है .
ReplyDeleteवैसे tug ऑफ़ वर(रस्सा कसी ) में वही जीतता हैं जिसका खिलाड़ी तगड़ा होता हैं और रस्सी के छोर पर बंधा होता हैं , सब के हाथ से रस्सी छुट(छूट)......छूट ...... भी जाए तब भी अंगद की तरह उसका पाँव नहीं हिलता .
अपनी अपनी रस्सी तो संभलती नहीं है आज कल के proficient लोगो(लोगों )....लोगों ..... से और दूसरो(दूसरों )....दूसरों .... के घरो(घरों )....घरों .... के बिम्ब और प्रतीक की चिंता खाए जाती हैं . इतनी लापरवाही सही नहीं हैं , जिनके हवाले देश की सीमाए(सीमाएं )...सीमाएं ....... हो वो अपना घर ना संभाल सके तो LOC पर क्या होगा . अब ceasefire नहीं होता हैं आज कल , वो ज़माने ख़तम हुए
बाकी कुछ विध्वंसक मानते मानते दिव्य-रचना कह कर satisfied होते हैं आखिर सच हमेशा सच ही होता हैं ,विध्वंसक रचना ही दिव्य होती हैं क्युकी(क्योंकि )....क्योंकि .... विध्वंस के बाद ही सृजन होता हैं
बढ़िया प्रस्तुति है .
टंकण की गलतियों को खोजने ही अगर ब्लोगिंग हैं तो tug of war को tug ऑफ़ वर लिखना कितना सही हैं आप खुद सोचे
Deleteआप विद्वान हैं माना , दूसरे भी मूर्ख नहीं हैं
हाहाहहाहाहहाहाह
Deleteवीरेंद्र शर्मा जी आप अपनी आदतों से बाज आने वाले नहीं है। हर जगह आपको लोग यही समझाते हैं, फिर भी आपकी समझ में नहीं आता।
आप लेख को लेखों से जाने क्या नफरत है। विषय पर कुछ बोलते नहीं है, क्योंकि उसके लिए वाकई मेहनत करनी पड़ती है।
चलिए मेरी बात तो आज तक आपने मानी नहीं, रचना मेम की बात ही अगर आपके समझ मे आ जाए।
ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे, यही प्रार्थना है...
.
ReplyDelete.
.
. . . :))
...
काश....
ReplyDelete