मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

November 29, 2008

हर मरने वाला शहीद हैं , मौत को उसकी हादसा मत बनाओ

जब भी एक आम आदमी मरता हैं
मौत उसकी हादसा होती हैं
क्यूँ शहादत कर दर्जा हम
कुछ को देते हैं
और
कुछ की मौत को
बस हादसा कहते हैं
हर मरने वाला
किसी न किसी कर
कुछ न कुछ जरुर था
इस देश कर था या उस देश का था
पर आम इंसान था
शीश उसके लिये भी झुकाओ
याद उसको भी करो
हादसा और घटना
मत उसकी मौत को बनाओ

"मुंबई आंतक वाद के शिकार हर व्यक्ति को मै नमन करती हूँ और उनकी मौत को एक शहादत मानती हूँ । उनके परिवार वालो को इश्वर इस आपदा से लड़ने की ताकत दे "

मुंबई आतंकवादी हमले मे लापता हुए है । बहुत खोजा नहीं मिले । किसी के पास कोई समाचार हो इनके बारे मे तो सूचित करे ।

मुंबई आतंकवादी हमले मे लापता हुए है । बहुत खोजा नहीं मिले । किसी के पास कोई समाचार हो इनके बारे मे तो सूचित करे ।

सूचना इस पते पर भेजे

चूहा chuha@mns.com

ये जब तक थे मुंबई को कुतर रहे थे आज जब कमांडो और सेना की कार्यवाही पूरी होगई हैं ये लाशो मे महाराष्ट्र और उत्तर भारतीयों की लाशो को अलग अलग कर रहे होंगे ।

आप भी किसी ऐसे को जानते हो जो लापता हो जाता हैं जब आग लगती हैं देश मे और शांत होते ही ख़ुद आग लगाता हैं तो ब्लॉग पर उसका चित्र डाले ताकि हम अपने बीच से उनको निकाल सके । डर छोडे

November 25, 2008

ब्लोगिंग विस्तार हैं स्वः का

करते हैं चर्चा ब्लॉग कि
बुलाते हैं ब्लॉगर को भाई और भाभी
नवाते हैं शीश
अब ब्लॉगर का ना हैं लिंग
और ब्लॉगर बसे इन्टरनेट मे
इन्टरनेट जिसकी ना हैं कोई सीमा
ना भाषा , ना देश , ना काल ,
ना पुरूष ना स्त्री
रिश्ते ब्लॉग्गिंग मे अगर बनाओगे
ख़ुद भी सीमा मे बंधोगे और को भी
सीमा मे बांधोगे
ब्लॉगर केवल और केवल एक अभिव्यक्ति हैं
देश काल और रिश्तो से ऊपर उठ कर
अभिव्यक्ति का माध्यम हैं ब्लोगिंग
विस्तार हैं स्वः का

November 08, 2008

ठग्गू के लड्डू , नहीं रह गयी हैं अब कविता , ग्लोबल हो गयी हैं

ठग्गू के लड्डू
नहीं रह गयी हैं अब कविता
कि फुर्सत मे गप से खा जाओ
ग्लोबल हो चली हैं कविता
सो गले मे भी अटकती हैं
हल्के शब्दों से भारी कविता
उफ़ इतनी अभद्रता !!
आंसू भरी होती तो पोछते !!!
आह भरी होती तो समझाते !!!!
लब नयन नक्श होते तो निहारते !!!!!!!!
अब तार्किक को सिणिमान
कहते हैं चिडिमार और
फुर्सत मे चिंतन से कविता और कवि
पर चिरकुटाई मंथन करते हैं

November 04, 2008

हिन्दी कठपुतली बन कर रह गयी हैं , हिन्दी ब्लोगिंग मे

अपने हम उम्र को जो बुजुर्ग कहते हैं
सारी उम्र बच्चे ही बने रहना चाहते हैं
अपने अंदर के बच्चे को जीवित रखना
आसन नहीं होता पर
हर समय बच्चा बने रहना
भी क्या सही होता ??
ऐसा लगता हैं
जैसे कि आप चाहते हो
सब बस आप पर ही ध्यान दे
आप को ही सहेजे समेटे
और आप इठलाते रहें
तुतलाते रहे
मुहं मे अंगूठा डाल कर
चूसते रहे और
दूसरो को ठेंगा दिखाते रहे
मन मे भ्रम आप ने है पाला
कि आपका ही शायद जन्म सिद्ध अधिकार हैं
दूसरो कि समय असमय खिल्ली उड़ाने का
और जो प्रतिवाद करे
उस पर तोहमत लगाने का
कि उसको हास्य समझ नहीं आता
या उसको तो हँसना ही नहीं आता
किसी कि व्यक्तिगत जीवन शैली को
प्रश्न चिन्ह करने का अधिकार शायद
हिन्दी ब्लॉगर होते ही आप को
मिल जाता हैं
और शायद इसीलिये
हिन्दी कठपुतली बन कर रहगयी हैं
हिन्दी ब्लोगिंग मे
कुछ साहित्यकार हैं कुछ पत्रकार हैं
कुछ पुराने हैं कुछ पुरानो के ताबेदार हैं
डोर से जिन्होने बाँधा हैं हिन्दी कि ब्लोगिंग को
जब मन करेगा वो हिलाएगे
आप ताली ना बजाओ तो चमेली का तैल लगायेगे
अच्छा लिखो तो पैरोडी बनाते हैं
उनको पसंद ना आए तो अपरिपक्व लेखन बताते हैं
कविता विधा नहीं हैं ब्लोगिंग की बार बार वो समझाते हैं
ब्लॉग को चिट्ठा बता कर मेड इन इंडिया का लेबल जो लगाते हैं

कहां जाए वो बेचारे जो केवल और केवल ब्लॉगर हैं
कभी ये क्यूँ नहीं बताते हैं

Blog Archive