ठग्गू के लड्डू
नहीं रह गयी हैं अब कविता
कि फुर्सत मे गप से खा जाओ
ग्लोबल हो चली हैं कविता
सो गले मे भी अटकती हैं
हल्के शब्दों से भारी कविता
उफ़ इतनी अभद्रता !!
आंसू भरी होती तो पोछते !!!
आह भरी होती तो समझाते !!!!
लब नयन नक्श होते तो निहारते !!!!!!!!
अब तार्किक को सिणिमान
कहते हैं चिडिमार और
फुर्सत मे चिंतन से कविता और कवि
पर चिरकुटाई मंथन करते हैं
नहीं रह गयी हैं अब कविता
कि फुर्सत मे गप से खा जाओ
ग्लोबल हो चली हैं कविता
सो गले मे भी अटकती हैं
हल्के शब्दों से भारी कविता
उफ़ इतनी अभद्रता !!
आंसू भरी होती तो पोछते !!!
आह भरी होती तो समझाते !!!!
लब नयन नक्श होते तो निहारते !!!!!!!!
अब तार्किक को सिणिमान
कहते हैं चिडिमार और
फुर्सत मे चिंतन से कविता और कवि
पर चिरकुटाई मंथन करते हैं
good one
ReplyDeletekeep it up