सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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January
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आप ख़ुद जानना चाहती हैं या इस विषय पर चर्चा करना चाहती हैं ?
ReplyDeleteनैतिकता बहुसंख्यक समाज द्वारा अल्पसंख्यक समाज, अमीरॊं द्वारा गरीबों, विकसित द्वारा विकासशील पर थोपी गई नियम कानुनों की फ़ेहरिस्त है।
ReplyDelete@anil kant
ReplyDeletedono ho charcha hogii to samjh aayega
annam
sahii keh rahey haen