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January 21, 2009

अश्वेत राष्ट्रपति यानी बदलाव !!!!! सो भारत मे श्वेत प्रधानमंत्री तभी बदलाव !!!!!

एक साधारण सा प्रश्न था की जब हम ओबामा के आने पर बिना वजह ताली बजा रहे हैं और सोच रहे हैं बदलाव हो गया तो हम सोनिया को प्रधानमंत्री क्यूँ नहीं बना देते ?? और देखिये लोगो ने कितने विविध कमेन्ट दिये हैं । मै ने अपनी पोस्ट मे कही भी सोनिया को प्रधानमंत्री बनने की बात नहीं कही हैंऔर ना ही मे महिला के प्रधानमंत्री बनाये जाने से किसी बदलाव की बात कर रही हूँ . मेरा मुद्दा तो बस इतना हैं की किसी और देश मे एक राष्ट्रपति बनता हैं और हम खुश हो जाते हैं की क्युकी एक अश्वेत राष्ट्रपति बन गया हैं तो बदलाव आ गया हैं । क्यूँ हम सब को ये नहीं महसूस हुआ की इस मे भारतीयों और भारत के लिये कोई भी खुशी की बात नहीं हैं । जैसे सोनिया के प्रधानमंत्री बनने से हमारे राष्ट्र हित मे शायद ही कोई बदलाव आए ।

पिछली बार मुझे याद हैं CNN ने सोनिया के PM IN WAITING होने पर तुंरत न्यूज़ दीखाई थी । बाकी समय वो केवल और केवल ये बता देते हैं इंडिया मे इलेक्शन हुआ और ये प्रधान मंत्री बना । और हमारा मीडिया और हम सब अमेरिकी प्रेजिडेंट के होने पर २४ घंटे direct टेलेकास्ट दीखा रहे हैं । ब्लॉग पर भी चित्र डाले जा रहे हैं ।

पिछली पोस्ट ओबामा से सोनिया तक यात्रा बदलाव की के कमेन्ट देखे , क्या विवधता हैं हिंदू मुस्लिम , नर नारी , से लेकर सब बात हुई पर हम किसी दूसरे देश के राष्ट्रपति बनने से इतना मुग्ध क्यूँ हुए ?? किसी ने नहीं कहा । और अगर हम सब इतना हर्षित हैं तो फिर सोनिया ही बदलाव ला सकती हैं हाथ मे बाइबल लेकर शपथ लेकर !!!!!!!!!!!!!!!!!



comments:

संजय बेंगाणी said...

क्षमा करें, क्या भारत का प्रधानमंत्री गीता पर हाथ रख कर शपथ लेता है? फिर बाइबल क्यों?
उदाहरण अगर अमेरिका का लेते हैं तो ध्यान दें वहाँ ओबामा को बार बार कहना पड़ा कि वे ईसाई है, मुस्लिम नहीं. क्या हमारे देश में ऐसा होता है कि प्रधानमंत्री को मैं हिन्दु हूँ मैं हिन्दू हूँ... फिर अमेरिका में बाहर पैदा हुआ व्यक्ति राष्ट्रपति नहीं बन सकता. भारत में यह छूट क्यों? अगर परिवर्तन महिला के आने से होता है तो वह इन्दिरा के साथ आ गया था.

kuhasa said...

बेगाणी जी आपकी जानकारी के लिए प्रधानमन्त्री हो या कोई भी सार्वजनिक पद ग्रहण करने वाला वह किसी की भी सौगंध ले सकता है शपथ के प्रारूप में यह उसको आजादी है.
रचना जी ने बाइबिल इस लिए कहा है क्योंकि आम धारणा के अनुसार सोनिया गाँधी रोमन कैथोलिक हैं (उनकी धार्मिक आस्था हमें जाने की कोशिश नही की कभी क्योंकि हमारे लिए वह महत्वपूर्ण नही है ),
और कब तक अमरीका के पिछलग्गू बने रहेंगे कि जैसा वहां होता है वैसा ही करेंगे :-) आगे निकल जाइए उससे
इंदिरा गाँधी को सत्ता बनी बनाई मिल गई थी ताकतवर तो वो बाद में हुईं हैं इस लिहाज से सोनिया ने अधिक श्रम किया है
फिलहाल जो लोकसभा में 272 सांसदों का समर्थन रखता है वह प्रधानमन्त्री बनता है तो हमें इसमे कुछ भी ग़लत नही दिखाई देता चाहे वो सोनिया हों या मोदी
हमारी व्यक्तिगत पसंद नापसंद से कोई फर्क नही पड़ता
जो कोई भी प्रधानमत्री होता है वह हमारे उस सम्मान का अधिकारी होता है
मारी व्यक्तिगत आकांक्षा थी कि कोई उत्तर पूर्व का प्रधानमन्त्री के पद तक पहुँचता
रचना जी यह परिवर्तन कैसा होगा?

Dr. Smt. ajit gupta said...

आपको ओबामा का भाषण दिखाई नहीं दिया क्‍या? वे किसी कागज को पढ़ नहीं रहे थे। कोई भी राजनेता यदि कई सालों तक राजनीति में रहने के बाद भी अपनी बात स्‍वयं नहीं कह सकता, उसे आप देश का नेतृत्‍व करने को कह रहे हैं। राजनीति अभिनय नहीं है जिसे स्क्रिप्‍ट देखकर अभिनय कर लिया जाता है। इसमें टेबल पर निर्णय लेने पड़ते हैं तभी तो हमारे सैनिक युद्ध जीत जाते हैं और हम ऐसे भाषण पढ़ने वाले नेताओं के कारण टेबल पर हार जाते हैं।

Suresh Chiplunkar said...

"कुहासा" जी आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी, और सिर्फ़ उत्तर-पूर्व का ही क्यों बल्कि कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया भी भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है, जैसे एक कांग्रेसी सांसद सुब्बा जो कि नेपाली नागरिक हैं और उधर हत्या, लूट और धोखाधड़ी के कई केस हैं उन पर…। ये हिन्दुओं(?) का महान सेकुलर भारत है, यहाँ कोई भी, कहीं भी, कभी भी, कुछ भी बन सकता है… सिवाय कश्मीर में एक हिन्दू मुख्यमंत्री बनने के अलावा…

विवेक सिंह said...

पब्लिक स्वयं समझदार है !

sareetha said...

आज़ाद देश की आज़ाद नारी को अपना नेता चुनने कापूरा अधिकार है । कुहासा जी के दिमाग पर छाया कुहासा तो हटने से रहा । इन जैसे उदारवादियों के कारण जल्दी ही देश में अंग्रेज़ों और मुगलों का राज होगा । अबकी बार तो आज़ादी की लडाई लडने वाले युवा भी ढूंढे से नहीं मिलेंगे ।

Mired Mirage said...

सोनिया यदि अपने बलबूते पर आईं होतीं तो अलग बात थी। नेता को भारत यदि पुश्तैनी जागीर में मिल रहा हो तो मैं उसे नेता कभी नहीं मानूँगी।
उत्तर पूर्व भारत ही है और जितनी जल्दी हम यह बात समझ लें उतना ही अच्छा होगा। बांग्लादेशी को शासन तो क्या नागरिकता भी सरलता से नहीं मिलनी चाहिए। जिस दिन कोई नेता उत्तर पूर्व से आएगा और भारत का प्रधानमंत्री चुना जाएगा वह दिन देश के लिए स्वर्णिम होगा। जब हम नेहरू गाँधी परिवार के अलावा भी काँग्रेस में नेता खोजने लगेंगे तो काँग्रेस भी शायद अपने पुराने स्वरूप को पा ले। नेता नीचे से ऊपर आता है न कि परिवार से उठाकर बनाया जाता है।
घुघूती बासूती

3 comments:

  1. याद करें भारत में श्वेत शासकों वाला दौर कुछ दशक पहले ही बीता है .
    अब फिर चाहिए ?

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  2. vivek ji

    aap jo keh rahey haen mae bhi wahii keh rahee hun .

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  3. अब जब आपके कहने का वह मतलब नहीं था जो हमने समझा तो क्या कहें. हमारी समझ की ही भूल रही होगी.
    ओबामा मेनिया सारे विश्व पर छाया था, मैने हट कर सलाम लोकतंत्र नाम से पोस्ट लिखी, उसमें भी यही लिखा कि ओबामा मेनिया ग्रस्त दुनिया में मैने बुश को जाते देखा.

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