सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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January 21, 2009
ओबामा से सोनिया तक यात्रा बदलाव की
ओबामा जो एक मुसलमान भी हैं , चर्च जा सकते हैं , हाथ मे बाइबल लेकर शपथ ले सकते हैं और हम सब ताली बजा सकते हैं । उम्मीद करते हैं कि अब बदलाव दूर नहीं तो हम सब सोनिया गाँधी को प्रधान मंत्री क्यूँ नहीं बनाते । अपने देश मे भी तुंरत बदलाव आ जाएगा । चुनाव हमारे देश के भी नजदीक ही हैं । ध्यान रहे बदलाव लाना बहुत जरुरी हैं और बदलाव तभी सम्भव हैं जब कुर्सी पर सोनिया हो , हाथ मे बाइबल ले कर शपथ लेती ।
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क्षमा करें, क्या भारत का प्रधानमंत्री गीता पर हाथ रख कर शपथ लेता है? फिर बाइबल क्यों?
ReplyDeleteउदाहरण अगर अमेरिका का लेते हैं तो ध्यान दें वहाँ ओबामा को बार बार कहना पड़ा कि वे ईसाई है, मुस्लिम नहीं. क्या हमारे देश में ऐसा होता है कि प्रधानमंत्री को मैं हिन्दु हूँ मैं हिन्दू हूँ... फिर अमेरिका में बाहर पैदा हुआ व्यक्ति राष्ट्रपति नहीं बन सकता. भारत में यह छूट क्यों? अगर परिवर्तन महिला के आने से होता है तो वह इन्दिरा के साथ आ गया था.
बेगाणी जी आपकी जानकारी के लिए प्रधानमन्त्री हो या कोई भी सार्वजनिक पद ग्रहण करने वाला वह किसी की भी सौगंध ले सकता है शपथ के प्रारूप में यह उसको आजादी है.
ReplyDeleteरचना जी ने बाइबिल इस लिए कहा है क्योंकि आम धारणा के अनुसार सोनिया गाँधी रोमन कैथोलिक हैं (उनकी धार्मिक आस्था हमें जाने की कोशिश नही की कभी क्योंकि हमारे लिए वह महत्वपूर्ण नही है ),
और कब तक अमरीका के पिछलग्गू बने रहेंगे कि जैसा वहां होता है वैसा ही करेंगे :-) आगे निकल जाइए उससे
इंदिरा गाँधी को सत्ता बनी बनाई मिल गई थी ताकतवर तो वो बाद में हुईं हैं इस लिहाज से सोनिया ने अधिक श्रम किया है
फिलहाल जो लोकसभा में 272 सांसदों का समर्थन रखता है वह प्रधानमन्त्री बनता है तो हमें इसमे कुछ भी ग़लत नही दिखाई देता चाहे वो सोनिया हों या मोदी
हमारी व्यक्तिगत पसंद नापसंद से कोई फर्क नही पड़ता
जो कोई भी प्रधानमत्री होता है वह हमारे उस सम्मान का अधिकारी होता है
हमारी व्यक्तिगत आकांक्षा थी कि कोई उत्तर पूर्व का प्रधानमन्त्री के पद तक पहुँचता
रचना जी यह परिवर्तन कैसा होगा?
आपको ओबामा का भाषण दिखाई नहीं दिया क्या? वे किसी कागज को पढ़ नहीं रहे थे। कोई भी राजनेता यदि कई सालों तक राजनीति में रहने के बाद भी अपनी बात स्वयं नहीं कह सकता, उसे आप देश का नेतृत्व करने को कह रहे हैं। राजनीति अभिनय नहीं है जिसे स्क्रिप्ट देखकर अभिनय कर लिया जाता है। इसमें टेबल पर निर्णय लेने पड़ते हैं तभी तो हमारे सैनिक युद्ध जीत जाते हैं और हम ऐसे भाषण पढ़ने वाले नेताओं के कारण टेबल पर हार जाते हैं।
ReplyDelete"कुहासा" जी आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी, और सिर्फ़ उत्तर-पूर्व का ही क्यों बल्कि कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया भी भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है, जैसे एक कांग्रेसी सांसद सुब्बा जो कि नेपाली नागरिक हैं और उधर हत्या, लूट और धोखाधड़ी के कई केस हैं उन पर…। ये हिन्दुओं(?) का महान सेकुलर भारत है, यहाँ कोई भी, कहीं भी, कभी भी, कुछ भी बन सकता है… सिवाय कश्मीर में एक हिन्दू मुख्यमंत्री बनने के अलावा…
ReplyDeleteपब्लिक स्वयं समझदार है !
ReplyDeleteआज़ाद देश की आज़ाद नारी को अपना नेता चुनने कापूरा अधिकार है । कुहासा जी के दिमाग पर छाया कुहासा तो हटने से रहा । इन जैसे उदारवादियों के कारण जल्दी ही देश में अंग्रेज़ों और मुगलों का राज होगा । अबकी बार तो आज़ादी की लडाई लडने वाले युवा भी ढूंढे से नहीं मिलेंगे ।
ReplyDeleteसोनिया यदि अपने बलबूते पर आईं होतीं तो अलग बात थी। नेता को भारत यदि पुश्तैनी जागीर में मिल रहा हो तो मैं उसे नेता कभी नहीं मानूँगी।
ReplyDeleteउत्तर पूर्व भारत ही है और जितनी जल्दी हम यह बात समझ लें उतना ही अच्छा होगा। बांग्लादेशी को शासन तो क्या नागरिकता भी सरलता से नहीं मिलनी चाहिए। जिस दिन कोई नेता उत्तर पूर्व से आएगा और भारत का प्रधानमंत्री चुना जाएगा वह दिन देश के लिए स्वर्णिम होगा। जब हम नेहरू गाँधी परिवार के अलावा भी काँग्रेस में नेता खोजने लगेंगे तो काँग्रेस भी शायद अपने पुराने स्वरूप को पा ले। नेता नीचे से ऊपर आता है न कि परिवार से उठाकर बनाया जाता है।
घुघूती बासूती