ऐसे बहुत से प्रकाशक हैं जो पैसा लेकर किताब छपते हैं और आज की तारीख मे २०००० रूपए मे एक किताब छप भी जाती हैं और लेखक को ५०० प्रतियां भी मिलती हैं बेचने के लिये .
मैने हमेशा हिंदी ब्लोगिंग को संगठन मे बांधने का विरोध ही किया हैं . तक़रीबन शायद २ साल पहले जब परिकल्पना पर पहली पोस्ट आयी थी की हिंदी ब्लॉग कौन से बेस्ट हैं या ऐसा ही कुछ मैने वहाँ यही कहा था ये आप की पसंद की लिस्ट हैं
कुछ दिन पहले रविन्द्र प्रभात जी के ब्लॉग पर जब ५१ ब्लोगर को पुरुस्कृत किये जाने की पोस्ट थी तो मैने चुनाव का कारण और प्रक्रिया के विषये मे जानना चाहा था और उन्होने कहा था ये परिकल्पना समूह के पुरूस्कार हैं । उनके लिये हैं जो उस समूह से जुड़े हैं ।
ब्लॉग का माध्यम अभिव्यक्ति का माध्यम हैं और यहाँ बहुत से लोग हैं जो हिंदी से नहीं हैं और जो साहित्यकार भी नहीं हैं और ना ही बनना चाहते हैं . लेकिन कुछ लोगो ने ब्लॉग के माध्यम से अपने को साहित्यकार घोषित करने का बीड़ा उठा ही लिया हैं .
परिकल्पना पुरूस्कार
एक प्राइवेट फुन्क्शन था यानी एक निजी पार्टी जहां आप पैसा देकर अपना नाम ब्लोगिंग में दर्ज करवा सकते हैं जो करवाना चाहते थे उन्होने किया .
अब अगर सहारा श्री अपने नाम का टिकेट छपवा कर वो भी इन्टरनेट से रोयल मेल की वेब साईट से ये कह सकते हैं उनको सम्मान दिया गया तो फिर ये तो मामूली बात हैं
हिंदी लेखको को सम्मान खरीदना आगया हैं ये एक फक्र की बात होनी चाहिये , पहले ये प्रथा केवल विदेशो तक सिमित थी . हाँ हिंदी साहित्य में भी सम्मान की खरीद फरोक्त होती ही रहती हैं .
लेकिन एक निजी पार्टी के लिये ऊँगली उठाना ,कोई अच्छी बात नहीं हैं . ये उनका अधिकार हैं वो कितना खिलाना पिलाना चाहे , बांटना चाहे , उसके जरिये आपने अपने कार्य क्षत्रो में आगे बढ़ कर अपने विभाग से इसके जरिये तरक्की लेना चाहे इत्यादि उनका अपना नज़रिया हैं .
ब्लॉग पर चर्चा करने के लिये वो लोग क्यूँ बुलाये जाते हैं जिनको ब्लॉग लिखना ही नहीं आता ?? क्युकी उनके जरिये वहाँ तक पहुचा जा सकता हैं जहां किताबे छपने के लिये ग्रांट मिलती हैं
वर्धा में भी लोग अपनी किताबे ले जाते हैं वहाँ के वी सी को दिखाते हैं , ये सब चलता हैं और चलता रहेगा .
ब्लॉग से इस सब का कोई लेना देना नहीं नहीं हैं उनकी निज की पार्टी थी , जिस की जितनी हसियत थी उसने उतना खर्च किया इसमे गलत कुछ नहीं हैं ।
जब वर्धा मे प्रायोजित कार्यक्रम हुआ तो वहाँ भी जो लोग गए थे उनको भी किराया और रहने की सुविधा दी गयी थी । अब वो ज्यादा काबिल थे या ये ५१ या जिनको दोनों जगह मिली वो ??
अब फायदा लोग कह रहे हैं ब्लोगिंग का हुआ हैं , लोग जान गए ब्लोगिंग को
लोग ब्लोगिंग को जान गए ये फायदा तब माना जाएगा जब किसी को केवल ब्लॉग लिखने की वजह से कहीं ऐसी जगह बुलाया जाए जो प्रायोजित ना हो यानी
जो स्थान आप किसी मुख्यमंत्री , वी सी , या मीडिया कर्मी को देकर और उसके हाथ से पुरूस्कार ले कर अभिभूत हो रहे वो स्थान किसी ब्लोग्गर का हो और अभिभूत दूसरे हो रहे हो जो ब्लॉग ना लिखते हो ।
ऐसा दिन जल्दी आये यही कामना हैं जब ब्लोगर मंच पर खडा हो और लोग उसके हाथ से पुरूस्कार ले । लेकिन होगा तब जब लोग अंधी दौड़ मे नहीं भागेगे
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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तथास्तु.
ReplyDeleteवो सुबह कभी तो आएगी!शाम भी चलेगी.
हमें तो वे सब जगहें ठीक लगती हैं जहाँ हमे बुलाया जाता है.सोच रही हूँ अपनी आई डी यहाँ वहाँ चस्पा दूँ ताकि न्यौता देने में किसी को कष्ट न हो.
घुघूती बासूती
..बिलकुल ही बिना लाग लपेट के लिखा है आपने रचनाजी!...चलिए..ब्लोगिंग के उज्वल भविष्य की आप के साथ मिल कर हम भी शुभ कामना करते है!
ReplyDeleteyeh din aayega...
ReplyDeletejai baba banaras.........
आमीन !
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है. इस विषय पर हमारी खोजबीन जारी हैं बहुत जल्द एक पोस्ट हमारे ब्लॉग पर पोस्ट होगी.
ReplyDeletebilkul bina laag lapet ke!! I agree..
ReplyDeleteसर्वे भवन्तु सुखिनः।
ReplyDeleteहर इन्सान को खुद से पूछना चाहिए और ईमानदारी से खुद को जवाब देना चाहिए की क्या वास्तव में वो खुद इतना ईमानदार है दुसरे बेईमान का बहिष्कार कर सके या उसके हाथो पुरुस्कार लेने से परहेज कर सके मुझे लगता है की यदि कोई इस दर्जे का ईमानदार है तो सबसे पहले वो एक काम करेगा की कोई भी पुरुस्कार लेने से ही इंकार कर देगा | क्योकि की ये बात सभी जानते है की दुनिया में कोई भी पुरुस्कार पूरी ईमानदारी से नहीं बाटे जा सकते है चयन करने वाले की निजी पसंद ना पसंद और रिश्ते उसे प्रभावित जरुर करते है | असली ईमानदारी तो यही है की चाहे सरकारी पुरुस्कार हो या निजी उसे लेने से ही इंकार कीजिये यदि ईमानदार बने रहना है तो निष्पक्ष बने रहना है तो |
ReplyDeleteउम्मीद पे दुनिया को कायम रखिये..ऐसा दिन ज़रूर आएगा :-)
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