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February 28, 2013

ईश्वर - हिन्दू धर्म

 हम लोग ईश्वर भक्त और ईश्वर से डरने वाले माने जाते है . लेकिन फिर भी हममे से बहुत से ईश्वर के इंसानी रूप में किये हुए व्यवहार को कसौटी पर भी कसते हैं . कहीं राम को महज पुरुष मान कर उनके व्यवहार पर चिंतन होता हैं , तो कहीं कृष्ण प्रेम  { पत्नी से इतर प्रेम } पर बात होती हैं .


अन्य धर्म अपने आराध्यो पर कभी कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाते इस लिये ऐसी बहुत सी बातो को जब हम लोग लिखते हैं उन पर बहस करते हैं तो कभी कभी लगता हैं ये हम क्या गलत कर रहे हैं . क्या ईश्वर को जिसकी हम पूजा करते हैं उसको हम आम इंसान मान सकते हैं , उसके गुण दोष पर भी चर्चा कर सकते हैं

कुछ दिन से मन में ये चल रहा था सो आज लिख दिया

मुझे लगता हैं ईश्वर ने जब इंसान का रूप लिया होगा तो जान कर वो सब काम भी किये होंगे जो आलोचना की परिधि में आते हैं ताकि आगे आने वाली नस्ले ये समझे की गलत हमेशा गलत ही रहेगा , चाहे उसे कोई भी करे . ईश्वर ने अपनी जीवन शैली में गलत काम करके ये ही बताया हैं किया अगर " मै भी कुछ गलत करूँगा तो भी मेरी आलोचना ही होंगी , सदियों तक " . ईश्वर ने एक प्राकर से एक वार्निंग सिस्टम बनाया था जिसके तहत वो अपने सही / गलत कामो के जरिये इंसानों को चेता रहा था .

अगर ईश्वर जिसके हर काम के पीछे कुछ निहित था , को हम आज भी डिस्कस कर सकते हैं तो कहीं ना कहीं उस आलोचना से हम को ये समझना होगा की कम से कम हम ऐसा कोई काम ना ही करे वरना आजीवन "सुनना " हमारी नियति होंगी .

हिन्दू धर्म की यही खासियत हैं की हम अपने आराध्यो के गलत काम पर भी चर्चा कर सकते हैं और फिर भी हमारे मन में उनके प्रति वही "पूजा " का भाव रहता हैं . हमारे लिये उनके गुण और दोष एक पैमाना हैं जिसमे वस्तुत हम अपने को ही तोलते हैं .


7 comments:

  1. 1.अन्य धर्म अपने आराध्यो पर कभी कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाते....

    2.
    हिन्दू धर्म की यही खासियत हैं की हम अपने आराध्यो के गलत काम पर भी चर्चा कर सकते हैं....

    jai baba banaras....

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  3. रचना जी जब किसी धर्म को मान ही लिया तो उसके अवतारों के जीवन शैली पे प्रश्न चिन्ह क्या लगाना | सही या गलत, अच्छे या बुरे का विश्लेषण किसी को आराध्य माने से पहले किया जाता है |हमरा या तुम्हारा धर्म जैसा कोई विषय मौजूद नहीं इसलिए इस्पे बहस भी गलत है |

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  4. पर हो रहा है उसका उलटा , उनकी गलतियों से सिख लेने के बजाये उनकी गलतियों को नजीर बना कर पेश किया जाता है और उसे भी सही ठहराया जाता है और वैसा की करने को कहा जाता है या ये कहे की अपनी गलतियों को उनकी की गलतियों से मेल कर खुद को सही ठहराने का प्रयास किया जाता है ।

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  5. rachna ji - i went to comment on this post - and the comment got so long that it became a full post

    i have published it on myu blog with reference to this post - the link is here

    http://shilpamehta1.blogspot.in/2013/03/hinduism-criticism-parmatma-avtaar-rama.html

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  6. हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता ही है उसका बहुत उदार होना -इसकी गरिमा इसी में है कि इसे इसी रूप में स्वीकार किया जाए!
    जो हिन्दू धर्म की आलोचनाओं से डरते हैं उन्होंने भी इसके मूलस्थ भाव को नहीं समझा है क्योकि उनका भी अध्ययन व्यापक नहीं है!

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  7. धर्मों की ठीक से न समझी गयी बातों से कट्टरता उपजती,फैलती है - हिन्दू धर्म में कट्टरता कहीं नहीं है -विश्व में भारत ही वह भाव भूमि है जहाँ अनीश्वरवादी चिंतन तक का पुष्पन पल्लवन हुआ -सनातन धर्म चिंतन/दर्शन से जैन, बुद्ध दर्शन और कालांतर में इस्लाम के भी विचार पनपे -कहीं पृथक से नहीं आये -वेदान्त के कर्मकांडों को उपनिषदीय चिंतन ने तिरोहित किया -आज हिन्दू वह भी है जो किसी ईश्वर के वजूद को नहीं मानता और वह भी जो चौबीसों घंटे पूजापाठ में रत रहता है . हिन्दू होना विनम्र होना है किसी की भी पूजा पद्धति की खिल्ली न उड़ाना एक श्रेष्ठ हिन्दू का गुण है -शराब पियें या न पियें आप हिन्दू हैं ,मंदिर जाएँ या न जाएँ आप हिन्दू हैं ,मांस खायें न खायें आप हिन्दू हैं ,भगवान् को गाली दें या स्तुति करें आप हिन्दू हैं -इतना सृजनशील और संभावनाओं से भरा और कोई धर्म विश्व में दूसरा नहीं है -आप सभी से अनुरोध है इसे कट्टरता का जामा न पहनाएं -कोई मेरा सम्मान करे या न करे मैं हिन्दू ही रहूँगा ! मुझे हिन्दू होने का फख्र है क्योंकि इस महान धर्म ने मुझे कई बंधनों से आजाद किया है ...मुझे दुःख होता अगर मैं हिन्दू न हुआ होता और तब मुझे ईश्वर को मानने पर विवश होना पड़ता :-)

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