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उफ़ अभी और कितने भांगो मे बटेगा
बेचारा हिन्दी ब्लॉगर
बांटो बांटो ,
देश बांटा
समाज बांटा
यही कमी रह गयी थी
अब अभिव्यक्ति के माध्यम
को भी बांटो
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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March 16, 2009
March 15, 2009
क्या आप इश्वर को मानते हैं ?
क्या आप इश्वर को मानते हैं ?
March 14, 2009
IPL क्यों होना चाहिये ?? नहीं होना चाहिये .
मुझे लगता हैं IPL नहीं होना चाहिये . बहुत पैसा और समय लोगो का नष्ट होता हैं . सारा सारा दिन टीवी के आगे लोग समय व्यर्थ करते हैं और बिजली का खर्चा भी बहुत होता हैं एक तरफ़ हम बिजली संकट की बात करते हैं और दूसरी तरफ़ इस तरह का अप्वय करते हैं । और आश्चर्य हैं की क्रिकेट को इतना ज्यादा महत्व दिया जा रहा है और इस समय जब बाकी देश दुसरे देशो के लोगो को नौकरी से हटा कर अपने देश के लोगो को नौकरी पर रख रहे हैं । हमारे देश मे लाखो कड़ोड़ो रुपया दुसरे देश के खिलाड़ियों को दिया जा रहा हैं ।
March 09, 2009
जितना समागम होगा सभ्यताओं का उतना मनुष्यता बढेगी ।
कोई भी दिवस मनाया जाता हैं तो हर तरफ़ भारत मे विरोध होता हैं की भारतीये संस्कृति का पतन हो गया हैं । चाहे बालिका दिवस हो , वैलेंटाइन डे गप्पे , फ्रेंडशिप डे हो , वुमंस डे हो , या Fathers Day , Mothers day हो । बस किसी ने कोई दिन मनाया नहीं की हिंदू संस्कृत डूब जाती हैं । पहली बात तो यही नहीं समझ आती की क्या हमारी संस्कृति इतनी छेद वाली एक नाव हैं जो डूब जायेगी । लोग किसी भी दिन को मनाये जाने का विरोध करते हैं और कहते हैं की पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण हो रहा हैं ।
इन दिनों को मनाने का रिवाज पाश्चात्य सभयता मे क्यूँ हैं ?? क्युकी पाश्चात्य सभ्यता मे लोग रोज के कामो मे इतना व्यस्त होते हैं की उनको काम के अलावा कुछ याद नहीं रहता । हमारे देश की तरह वहाँ हर समय गप्पे मारने का समय नहीं होता हैं किसी के पास । सुबह से शाम तक लोग रोटी पानी के जुगाड़ मे व्यस्त होते हैं और फिर "दिवस " मना कर एक दिन उन लोगो को धन्यवाद कहते हैं जिनको वो प्यार करते हैं । चाहे वो माँ हो या पिता या बॉस या बेटी ।
अब भारत मे भी स्त्री पुरूष दोनों नौकरी पेशा हो रहे हैं सो समय का अभाव यहाँ भी बढ़ रहा हैं और उसकी के चलते इन दिवसों को मनाने की परम्परा पड़ रही हैं । और विदेशो मे होली , दिवाली मनाई जाने लगी हैं ।
जितना समागम होगा सभ्यताओं का उतना मनुष्यता बढेगी ।
इन दिनों को मनाने का रिवाज पाश्चात्य सभयता मे क्यूँ हैं ?? क्युकी पाश्चात्य सभ्यता मे लोग रोज के कामो मे इतना व्यस्त होते हैं की उनको काम के अलावा कुछ याद नहीं रहता । हमारे देश की तरह वहाँ हर समय गप्पे मारने का समय नहीं होता हैं किसी के पास । सुबह से शाम तक लोग रोटी पानी के जुगाड़ मे व्यस्त होते हैं और फिर "दिवस " मना कर एक दिन उन लोगो को धन्यवाद कहते हैं जिनको वो प्यार करते हैं । चाहे वो माँ हो या पिता या बॉस या बेटी ।
अब भारत मे भी स्त्री पुरूष दोनों नौकरी पेशा हो रहे हैं सो समय का अभाव यहाँ भी बढ़ रहा हैं और उसकी के चलते इन दिवसों को मनाने की परम्परा पड़ रही हैं । और विदेशो मे होली , दिवाली मनाई जाने लगी हैं ।
जितना समागम होगा सभ्यताओं का उतना मनुष्यता बढेगी ।
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