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March 09, 2009

जितना समागम होगा सभ्यताओं का उतना मनुष्यता बढेगी ।

कोई भी दिवस मनाया जाता हैं तो हर तरफ़ भारत मे विरोध होता हैं की भारतीये संस्कृति का पतन हो गया हैंचाहे बालिका दिवस हो , वैलेंटाइन डे गप्पे , फ्रेंडशिप डे हो , वुमंस डे हो , या Fathers Day , Mothers day होबस किसी ने कोई दिन मनाया नहीं की हिंदू संस्कृत डूब जाती हैंपहली बात तो यही नहीं समझ आती की क्या हमारी संस्कृति इतनी छेद वाली एक नाव हैं जो डूब जायेगीलोग किसी भी दिन को मनाये जाने का विरोध करते हैं और कहते हैं की पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण हो रहा हैं


इन दिनों को मनाने का रिवाज पाश्चात्य सभयता मे क्यूँ हैं ?? क्युकी पाश्चात्य सभ्यता मे लोग रोज के कामो मे इतना व्यस्त होते हैं की उनको काम के अलावा कुछ याद नहीं रहता । हमारे देश की तरह वहाँ हर समय गप्पे मारने का समय नहीं होता हैं किसी के पास । सुबह से शाम तक लोग रोटी पानी के जुगाड़ मे व्यस्त होते हैं और फिर "दिवस " मना कर एक दिन उन लोगो को धन्यवाद कहते हैं जिनको वो प्यार करते हैं । चाहे वो माँ हो या पिता या बॉस या बेटी ।
अब भारत मे भी स्त्री पुरूष दोनों नौकरी पेशा हो रहे हैं सो समय का अभाव यहाँ भी बढ़ रहा हैं और उसकी के चलते इन दिवसों को मनाने की परम्परा पड़ रही हैं । और विदेशो मे होली , दिवाली मनाई जाने लगी हैं ।

जितना समागम होगा सभ्यताओं का उतना मनुष्यता बढेगी ।

7 comments:

  1. मुझे लगता है कि आप इन कथित दिवसों के पीछे काम कर रहे बाजार से परिचित नहीं हैं। दिवस अब बाजार में तब्दील हो चुके हैं।
    अभी कल हमने महिला दिवस मनाया। यानी सिर्फ एक दिन वो भी संभ्रांत महिलाओं के नाम। इन कथित दिवसों से महिलाओं की पीड़ादायक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता।

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  2. "सुबह से शाम तक लोग रोटी पानी के जुगाड़ मे व्यस्त होते हैं और फिर "दिवस " मना कर एक दिन उन लोगो को धन्यवाद कहते हैं जिनको वो प्यार करते हैं । चाहे वो माँ हो या पिता या बॉस या बेटी ।"

    इस पूरे वाक्य-समूह को ही पढ़कर क्या किसी औपचारिक कार्य-व्यापार का भाव नहीं जगता ? अब मुझे नहीं पता कि भारत की स्त्री के विभिन्न रूपों का सम्मान केवल किसी एक दिन की किसी सम्मोहक संज्ञा से हो सकता है !

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  3. हिमांशु हमारे याहाँ हर रिश्ता "taken for granted " होता हैं इस लिये हम कभी thank you नहीं कहते अपने माँ पिता भाई बहिन ko । जिंदगी की व्यस्तता मे अगर एक दिन याद करके थैंक्यू कह दे तो क्या हर्ज हैं । कभी कर के देखे अपने घर मे आप को ख़ुद फरक महसूस होगा

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  4. सहमत हूं आपसे ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।

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  5. आप का भाव बहुत अच्छा है. बाज़ार की ताकतें तो हर मौके का फायदा उठाती हैं - पर्व देसी हो या विदेशी. शुरू-शुरू में मैं भी इन डे-वे के कोई मायने नहीं समझती थी. हमारे यहाँ अपने त्यौहार क्या कम हैं? लेकिन फिर एक वर्ष, मैंने कुछ हंसी-मज़ाक में ही अपनी माँ को Mother's डे की बधाई दे दी. वे भी मुस्कुरा दी पर मैंने देखा की दरअसल उनकी आँखें नम हो गयी थी. उस दिन मुझे महसूस हुआ की अपनों से प्यार जताने के जितने डे बनाये जाएं उतने कम हैं.

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  6. मनाने में हम किसी से कम नही है । और मनाना भी चाहिये ।

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