मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

June 08, 2012

हर बात को सबके सामने रखना और प्रकाश में लाना भी सकारात्मकता ही

हर बात को सबके सामने रखना और प्रकाश में लाना भी सकारात्मकता ही है 


दिव्या ने कितनी बड़ी बात कितने साधारण और स्पष्ट शब्दों में कह दी हैं .

ब्लॉग जगत मे पुरुस्कारों में एक सकारात्मक लेखन का पुरूस्कार हैं . अब किसी का भी लेखन नकारात्मक कैसे हो सकता हैं ???
 निर्णायक  मंडल कैसे किसी को  नामांकित कर सकता हैं पुरूस्कार के लिये और वो भी सकारात्मक लेखन के पुरूस्कार के लिये मेरी समझ  से बाहर हैं .

आज कल जब भी कहीं कोई पुरूस्कार दिया जाता हैं  तो दो क्षेणी होती हैं , जूरी और पोपुलर , यहाँ तक की नेशनल पुरूस्कार भी इसी प्रकार से दिये जाते हैं .

राज कपूर का सिनेमा हमेशा पोपुलर रहा पर कभी पुरूस्कार नहीं मिला नेशनल लेवल का , फिर एक दिन सरकार जगी और उनको ये पुरूस्कार दिया गया.

दशक के चिट्ठे में नारी ब्लॉग देखा कर आश्चर्य हुआ क्युकी नारी ब्लॉग को हमेशा "नकारात्मक " लेखन का प्रतीक , पुरुष ब्लोग्गर को नीचा दिखाने का प्रतीक माना गया . पिछले साल जब ब्लोगिंग का इतिहास नामक पुस्तक निकली गयी तो मेरे ब्लॉग लेखन पर बी अस पाबला के कहने अपर प्रशन चिह्न लगा दिया गया की मै  अपनी लेखन की तिथि गलत बताती हूँ और पता नहीं मे क्यूँ झूठ बोलती हूँ .

आज ब्लॉग इन मीडिया और नारी दोनों एक ही जगह खड़े हैं लेकिन दोनों के कंटेंट में कोई समानता नहीं हैं ब्लोग्स इन मीडिया महज पेपर की कटिंग मात्र हैं और उसकी क्षेणी कैसे दशक का ब्लोग हो सकती हैं मेरी समझ से फिर बाहर हैं . हिंदी ब्लोग्स प्रमोशन की क्षेणी होती तो भी समझ आता .

नारी ब्लॉग के आलेखों से राजस्थान रेडियो पर पूरी सिरीज बनी हैं और मेरे पास परमिशन के लिये ईमेल आयी थी . मैने पैसे की बात की तो ईमेल भेजने वाले व्यक्ति ने विनम्र भाव से कहा की पैसा मिलना संभव नहीं हैं क्युकी उनके विभाग में इस का कोई प्रावधान नहीं हैं . लेकिन इस नारी ब्लॉग को जन जागृति और नारी सश्क्तिकर्ण का प्रतीक माना गया हैं और उसमे दिये गए आलेखों को आम नारी से बांटने के उदेश्य से वो मुझ से संपर्क कर रहे हैं . मैने तुरंत हां कह दी और कह दिया की हर लेखिका का नाम जरुर बताये एपीसोड के साथ .

ना जाने कितने अपने अनुभव हिंदी ब्लॉग जगत के मैने इस ब्लॉग पर पहली पोस्ट से आज तक बांटे हैं . संतोष त्रिवेदी जैसे लोग जो अपने को साहित्यकार समझने का घमंड पाले हुए हैं जब सबसे पहले इस ब्लॉग पर कमेन्ट करने आये थे और कहने लगे की आप ने अपने ब्लॉग को ब्लोगर "रचना " का ब्लॉग क्यूँ कहा ये सही नहीं हैं . अब क्या सही हैं क्या गलत ये संतोष त्रिवेदी बतायेगे या कानून और संविधान . बस इतना पूछ लिया और उस दिन से हर जगह मेरे खिलाफ लिखना शुरू . मुद्दे पर लिखे मेरे खिलाफ मुझे ख़ुशी होती हैं , तर्क काटे तब और मज़ा आता हैं क्युकी मुझे वाद विवाद करना सुख देता हैं पर मेरी निजता , मेरे नारी होने और मेरे अधिकारों के प्रति जो लोग लिखते हैं और मुझे अशालीन कहते हैं .

कोई मुझे गाली देगा तो बदले में गाली ही दूंगी . ये मेरा सव्बाव नहीं हैं मैने इसको डवलप किया हैं क्युकी जो जिस भाषा को बोलता हैं उसको ही समझता हैं .

आज के लिये इतना ही .

1 comment:

  1. दशक का ब्लॉग और ब्लॉगर -- बढाई जी। हम सदी के पाठक ही दशक के ब्लॉगर बनाते हैं। वरना दशक के ब्लॉगर दस ब्लॉग पर न दिक्खे हैं।

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