हिंदी ब्लॉग जगत में दो खेमे बनते साफ़ दिख रहे हैं
खेमा नंबर 1 वो लोग जो ब्लॉग पर हिन्दी / शुद्ध हिंदी / किलिष्ट हिंदी लिखते हैं
खेमा नंबर 2 वो लोग जो हिंदी में ब्लॉग लिखते हैं .
परिकल्पना पुरूस्कार रविन्द्र प्रभात के आयोजन को मै पारदर्शी नहीं मानती और अब तक हमेशा मैने जब भी इनकी घोषणा हुई हैं हमेशा इनका विरोध किया हैं क्युकी मुझे हमेशा लगा ये ब्लॉग जगत का प्रतिनिधि नहीं हैं बल्कि अपनी पसंद हैं .
मेरे साथ साथ और भी कई ब्लोग्गर ने यही बात कही .
आज मैने देखा एक आलसी का चिटठा नामक ब्लॉग पर समान्तर वोट प्रक्रिया से पसंद ना पसंद का खेल शुरू होगया हैं और वहाँ उन लोग का बोल बाला हैं जो खेमा नंबर 1 मे आते हैं .
उन मे से कुछ रविन्द्र प्रभात के पुरूस्कार के चयन का विरोध पहले करते रहे हैं और गिरिजेश राव तो मजाक भी बना चुके हैं .
सबसे अच्छे वो हैं जो पिछली परिकल्पना मे पुरूस्कार ले चुके हैं और अब आलसी जी के साथ उसी परिकल्पना को गली देने में ज़रा भी आलस नहीं दिखा रहे हैं
कभी कभी लगता हैं समाज कितना विभाजित हैं और हम कितने खुद जिम्मेदार हैं इस विभाजन के लिये .
अपनी लिखी एक कविता आज खुद को याद आगयी
खेमा नंबर 1 वो लोग जो ब्लॉग पर हिन्दी / शुद्ध हिंदी / किलिष्ट हिंदी लिखते हैं
खेमा नंबर 2 वो लोग जो हिंदी में ब्लॉग लिखते हैं .
परिकल्पना पुरूस्कार रविन्द्र प्रभात के आयोजन को मै पारदर्शी नहीं मानती और अब तक हमेशा मैने जब भी इनकी घोषणा हुई हैं हमेशा इनका विरोध किया हैं क्युकी मुझे हमेशा लगा ये ब्लॉग जगत का प्रतिनिधि नहीं हैं बल्कि अपनी पसंद हैं .
मेरे साथ साथ और भी कई ब्लोग्गर ने यही बात कही .
आज मैने देखा एक आलसी का चिटठा नामक ब्लॉग पर समान्तर वोट प्रक्रिया से पसंद ना पसंद का खेल शुरू होगया हैं और वहाँ उन लोग का बोल बाला हैं जो खेमा नंबर 1 मे आते हैं .
उन मे से कुछ रविन्द्र प्रभात के पुरूस्कार के चयन का विरोध पहले करते रहे हैं और गिरिजेश राव तो मजाक भी बना चुके हैं .
सबसे अच्छे वो हैं जो पिछली परिकल्पना मे पुरूस्कार ले चुके हैं और अब आलसी जी के साथ उसी परिकल्पना को गली देने में ज़रा भी आलस नहीं दिखा रहे हैं
कभी कभी लगता हैं समाज कितना विभाजित हैं और हम कितने खुद जिम्मेदार हैं इस विभाजन के लिये .
अपनी लिखी एक कविता आज खुद को याद आगयी
शतरंज
आज की भागम भाग जिन्दगी मे
सब की बिसात बिछी है
किसी का घोडा ढाई घर चलता है
किसी का ऊंट तिरछी चाल से मारता है
किसी का हाथी सीधा ही भिड़ता है
सब को चिन्ता है अपने अपने वजीर की
और सब बचाना चाहते है अपने राजा को
शह और मात के खेल मे
कब बाजी पलट जाये क्या पता
६४ खानों मे ६४ कलाये सबको दिखानी हैं
अपने को सफ़ेद और दूसरो को काला
बता कर बाज़ी जीतनी हैं
सब की बिसात बिछी है
किसी का घोडा ढाई घर चलता है
किसी का ऊंट तिरछी चाल से मारता है
किसी का हाथी सीधा ही भिड़ता है
सब को चिन्ता है अपने अपने वजीर की
और सब बचाना चाहते है अपने राजा को
शह और मात के खेल मे
कब बाजी पलट जाये क्या पता
६४ खानों मे ६४ कलाये सबको दिखानी हैं
अपने को सफ़ेद और दूसरो को काला
बता कर बाज़ी जीतनी हैं
जब इस कविता को 2007 मे पोस्ट किया तो कमेन्ट कुछ थे
फिर 2008 मे कमेन्ट कुछ दूसरी लय लिये हुए थे
2009 में कमेन्ट की बानगी फिर बदली
बस अब आज के लिये इतना ही
हाहााहहााहाह
ReplyDeleteमैं तो आज तक नहीं समझ पाया कि ये सम्मान है कि पुरष्कार। सच बताऊं तो जो विद्वान दे रहे हैं, उन्हें शायद इसका अंतर नहीं मालूम है।
खैर इन पर अधिक चर्चा करना अपना समय खराब करना है।
:)
ReplyDeleteमोहरे नहीं जानते कि खेल खत्म होने के बाद ठूंस दिये जायेंगे एक डिब्बे में।
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