आप हमेशा एक बात कहती हैं कि "कोई कितना भी कहे कि 'नारीगत' समस्या हर नारी समझ सकती है, तो वो बिलकुल ग़लत है।" औरआप गलत हैं क्युकी अगर आपके हिसाब से चला जाये तो
माता पिता बच्चो कि समस्या नहीं समझ सकते और बच्चे माता पिता कि
पति पत्नी कि समस्या नहीं समझ सकता , पत्नी पति कि
अमीर गरीब कि समस्या नहीं समझ सकता , गरीब अमीर कि
हम सब एक समाज का हिसा हैं । अपनी अपनी पीड़ा हम भोगते हैं और दुसरो कि पीड़ा को समझते हैं । भोगने और समझने के अंतर को केवलमनुष्य ही नहीं जानवर भी समझते हैं । नारी कि पीड़ा , यानी प्रसव इसको एक माँ भोगती हैं लेकिन उस माँ से जुदा हर व्यक्ति इस को समझता हैं। डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर कई बार अविवाहित भी होती हैं । क्या आप का मानना हैं कि हर गाइनोकोल्गिस्त को विवाहिता होना चाहिये ताकिवो प्रसव कि पीड़ा को समझ सके या किसी भी पुरुष को डिलीवरी कराने का अधिकार ही नहीं होना चाहिये ।
मिशनरी मे बहुत से तरह के लोग होते हैं और वो सब इंसान हैं । वो अपनी मर्जी से वहाँ नहीं होते । मे जिस स्कूल मे पढ़ती थी वहाँ कई "brother नौकरी के कार्यकाल के बाद brother hood छोड़ देते थे । जैसा कि आपने कहा हैं क्युकी आप उनकी जगह नहीं हैं आप उनकी पीड़ा और त्रासदीको नहीं समझ सकती
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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....सही कहा आपने रचनाजी!...आग की त्रासदी का अनुभव लेने के लिए, आग में कूदना जरुरी नहीं है!...आग के दर्शन की पर्याप्त है!..अर्थपूर्ण आलेख!
ReplyDeleteवाह रचना जी क्या खूब तर्क दिये हैं।मैं एक बात आपसे कहना चाहता हूँ मैंने स्त्रियों के विषय में बहुत सा साहित्य पढा सिमोन से लेकर प्रभा खेतान और राजेन्द्र यादव तक ।लेकिन कई बार आप इस तरह की बात कह जाती हैं कि लगता है हमें तो अभी बेसिक्स पर ही जाना पडेगा।वहीं सरिता मुक्ता हंस ओशौ साहित्य आदि पढकर नास्तिक अवधारणा में विश्वास बढने लगा परन्तु जब आस्था की बात आप अपने तरीके से करती हैं तो डर लगता है कि कहीं मै फिर से आस्तिक न बन जाऊँ हा हा हा...।ये शायद मेरी समझ की सीमाऐं हैं।आप इसे प्रकाशित करे न करे आपकी मरजी ।हमने तो जो कहना था कह दिया।
ReplyDeleteaur rajan maenae inmae sae kisi ko bhi nahin padhaa haen
ReplyDeletesarita ityadi mae bhi kewal kehani hi padhtee hun
शायद इसीलिए आपकी बातें यथार्थ के ज्यादा करीब हैं ।ये तो पिछले डेढ दो साल से देखता आया हूँ कि यहाँ आप अकेली है जिसने कभी परवाह नहीं की कौन आपसे खुश है और कौन नाराज ।जो अधिकतर लोग नहीं कर पाते जिनमें शायद मै भी शामिल हूँ परंतु आपने हमेशा सच कहा । कई बार तो आपसे असहमत होते हुए भी अपने विचार बदलने को मजबूर हुआ हूँ ।अरे अभी तो बहुत कुछ सीखना हैँ मुझ जैसो को आपसे ।बस आप यूँ ही लिखती रहें ।शुभकामनाऐं
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