मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार ---- आस्था
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार यानी ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया पैसा -- पाखण्ड
ईश्वर कि शक्ति पर विश्वास --- आस्था
होनी - अनहोनी को टालने के लिये ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया इत्यादि , हवन --- पाखण्ड
आत्मा का होना --- आस्था
आत्मा के होने के प्रमाण के लिये पास्ट लाइफ मे जाना -- पाखण्ड
पुनर्जनम मे विश्वास --- आस्था
अपने निकटतम का पुनर्जनम सुन कर दौड़ना -- पाखण्ड
पूजा , पाठ मे विश्वास - आस्था
पूजा पाठ के लिये हर मंदिर मे चढावा चढ़ाना ---- पाखण्ड
साधू संतो कि सेवा -- आस्था
होनी अनहोनी को जानने के लिये साधू संतो को दान -- पाखण्ड
व्रत उपवास --- आस्था
व्रत उपवास से पति का जीवन, पुत्र का जीवन बढ़ता हैं -- पाखण्ड
सूची और विस्तार मांगती हैं कम शब्दों मे ज्यादा परिभाषित करे
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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एकदम सटीक विवेचन, रचना जी।
ReplyDeleteआपने आस्था और पाखण्ड को परिभाषित कर सभी को निरूत्तर कर दिया।
पाखण्डिनो विकर्मस्थान्, वैडालवृतिकान् शठः न्।
हैतुकान् बकवृत्तिश्च, वाङ्मात्रेणापि नाचंयेत्॥
-मनुस्मृति, अ 4 श्लो 30
http://bharatbhartivaibhavam.blogspot.com/2010/10/blog-post_19.html
दुख-सुख कर्माधीन- आस्था
ReplyDeleteटोने-टोटके से सुखी बनने के उपाय- पाखण्ड
आत्मा स्वयं कर्म का कर्ता व भोक्ता- आस्था
दुखों के लिये किसी देव देवी पर आरोप- पाखण्ड
स्वयं के आत्म में रमण ध्यान - आस्था
तंत्र-मन्त्र जाप ध्यान - पाखण्ड
पेड हमारे आश्रय है, उनका सम्मान - आस्था।
ReplyDeleteपेडो में दुध बहाना,धागे बांधना - पाखण्ड
.
ReplyDelete.
.
यह मानना कि एक परोपकारी,न्यायपूर्ण व ईमानदार जीवन जीकर मैं या कोई अनय भी वह सब कुछ पा सकता है, जो दुनिया का कोई अन्य पायेगा : आस्था
केवल मेरे उपास्य व मेरी उपासना पद्धति वाले ही मुक्ति पायेंगे : पाखंड
...
Right...
ReplyDeleteTrue...
॰
ReplyDelete॰
॰
बिना किसी धर्म-लेबल के गुणानुकरण से लक्ष्य(मोक्ष)साध्य है- आस्था
मैं तो कैसे भी मुक्ति पा लूंगा,मिथ्यामत अभिमान- पाखण्ड
॰॰॰
रचना जी
ReplyDeleteआप के बातो से सहमत हु | बस समस्या ये है की मनुष्य को अपनी आस्था पर ही पूरा भरोसा नहीं है | आस्था पर तो मै भी सवाल नहीं उठाती हु वो तर्क से नहीं बनते है | पर ज्यादातर तो आस्था के नाम पर आडम्बर ही करते है उस पर तो सवाल उठाने ही चाहिए |
आस्था और पाखंड को मिलाने के लिए धर्म के ठेकेदार कितने बेचैन रहते हैं, उनको कोशिशों का क्या? आपने तो उनके इरादों पर ही पानी फेर दिया। बहुत खूब- आस्था क्या है, पाखंड क्या है, अच्छे अंदाज में समझाया आपने।
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