दिल्ली मे मीटिंग मे बालेन्दु जी ने कहा था कि पिछले एक साल में ब्लोगिंग नीचे आगई हैं आप कभी सोच कर देखियेगा कि पिछले एक साल से पहले कितनी ब्लॉगर मीट हुई हैं । कहीं ऐसा तो नहीं हैं इस मिलने मिलाने , पीने पिलाने मे ब्लोगिंग खत्म हो रही हैं ।
५००० - १०००० रूपए एक रात मे खर्च करने कि सामर्थ्य सब कि नहीं हो सकती । तो ऐसी पार्टी मे वही जायेगे जो रिटर्न मे इतना खर्च करने कि सामर्थ्य रखते होगे । और जो रिटर्न कि सामर्थ्य के बिना इन पार्टियों का मज़ा रखते हैं उनको क्या कहा जायेगा ये आप को कुछ दिन मे दिख जायेगा ।
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
November 28, 2010
November 24, 2010
जानकारी साझा करे
अगर किसी के पास चिन्नई के किसी होटल कि जो बजट होटल मे आता हो और चेन्नई एअरपोर्ट के पास हो कि जान करी हो तो साझा करे आभार होगा मुझे ८ दिन वहाँ रहना हैं व्यवसाय से सम्बंधित काम से
November 22, 2010
बद्दुआ से बचे
जब भी किसी पर निरंतर / कम समय के अन्तराल मे कोई विपत्ति आती हैं तो लोग कहते हैं ,
जरुर किसी का बुरा किया होगा ,
किसी कि बद्दुआ लग गयी इत्यादि ।
क्या आप को भी लगता हैं कि विपत्तियों का निरंतर आना , जैसे परिवार जनों का एक्सिडेंट , मृत्यु इत्यादि एक के बाद के होना किसी कि बद्दुआ का नतीजा भी हो सकता हैं ।
क्या सच मे कोई ऐसा चक्र हैं जो घूमता हैं और कहीं ना कही अगर आप किसी का मन दुखाते हैं , बुरा करते हैं जान बुझ कर तो आप का बुरा अपने आप हो जाता हैं ।
इस से क्या ये भी सिद्ध होता हैं कि जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं आती वो किसी का भी बुरा नहीं करते हैं ।
और हां
ये बद्दुआ होती क्या हैं और नज़र लगने का अर्थ क्या होता हैं क्या ये दोनों एक ही बात हैं ।
जो पढ़ा है उसके अनुसार नज़र उनको लगती हैं जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं होती हैं ।
तो क्या जो नज़र लगता हैं उसको बद्दुआ लगती हैं और उसका बुरा होना स्वयं निश्चित हो जाता हैं
बड़ा कनफूजन हैं
जरुर किसी का बुरा किया होगा ,
किसी कि बद्दुआ लग गयी इत्यादि ।
क्या आप को भी लगता हैं कि विपत्तियों का निरंतर आना , जैसे परिवार जनों का एक्सिडेंट , मृत्यु इत्यादि एक के बाद के होना किसी कि बद्दुआ का नतीजा भी हो सकता हैं ।
क्या सच मे कोई ऐसा चक्र हैं जो घूमता हैं और कहीं ना कही अगर आप किसी का मन दुखाते हैं , बुरा करते हैं जान बुझ कर तो आप का बुरा अपने आप हो जाता हैं ।
इस से क्या ये भी सिद्ध होता हैं कि जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं आती वो किसी का भी बुरा नहीं करते हैं ।
और हां
ये बद्दुआ होती क्या हैं और नज़र लगने का अर्थ क्या होता हैं क्या ये दोनों एक ही बात हैं ।
जो पढ़ा है उसके अनुसार नज़र उनको लगती हैं जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं होती हैं ।
तो क्या जो नज़र लगता हैं उसको बद्दुआ लगती हैं और उसका बुरा होना स्वयं निश्चित हो जाता हैं
बड़ा कनफूजन हैं
November 21, 2010
क्या आप दूसरे के घर कि सफाई करते हैं ??
क्या आप दूसरे के घर कि सफाई करते हैं ??
जब आप केवल अपने घर कि सफाई करते हैं तो आप को ये अधिकार कैसे हैं कि आप दूसरे के धर्म की बुराईयाँ बता सके । आप अपने को जितना चाहे सही साबित कर ले लेकिन आप को अधिकार नहीं हैं कि ब्लॉग के सार्वजनिक मंच पर आप अपने धर्म को ऊँचा बताने के "पाखण्ड" मे दूसरे के धर्म को नीचा बताये ।
जो बाते कभी "समकालीन" होती हैं वो कभी "रुदिवादी " हो जाती हैं और इस लिये जरुरी हैं कि अगर आप को प्रोग्रेस करनी हैं तो रुढ़िवादी बातो का विरोध करे लेकिन विरोध अपने अपने धर्म को रुढ़िवादी बातो का करे ताकि आपस मे रंजिश का माहोल ना पैदा हो ।
आप कितने भी ज्ञानी हो कितनी भी किताबे आपने पढ़ी हो लेकिन आप अपनी आस्था से ऊपर नहीं उठ सकते । जो उठ जाते हैं वो "महान " होते हैं । और हाँ आस्था से बे पढ़ा भी जुडा होता हैं ।
कम्युनिटी लिविंग के नियम हैं उनको माने । भारत मे सब रह सकते हैं लेकिन रहेगा वो हिन्दू राष्ट्र ही और इस लिये अमन और शांति कि बात तभी हो सकती हैं जब हिन्दू धर्म को आप गाली ना दे और अपने धर्म को अपने धर्म ग्रंथो मे दिये हुए तर्कों से हिन्दू धर्म को सुधारने कि बात ना करे अगर आप मुसलमान हैं तो । आप कि ये बाते हिन्दू धर्म मे आस्था रखने वालो को नहीं भाती हैं ।
उसी तरह अगर मुस्लिम धर्म कि खामियां कोई ब्लॉगर जो हिन्दू धर्म मे आस्था रखता हैं वो लिखता हैं तो बवाल होना निश्चित ही हैं ।
पिछली पोस्ट और इस पोस्ट दोनों का मंतव्य ये नहीं हैं कि आप धर्म मे सुधार कि बात ना करे बस दूसरे के नहीं अपने धर्म मे सुधार कि बात करे । दूसरे धर्म कि कौनसी कमी आप को ख़राब लगती हैं से बेहतर हैं कि आप बताये कि दूसरे धर्म कि कौन सी बात आप को अच्छी लगती हैं । आप का ज्ञान केवल और केवल दूसरे धर्म कि कमियाँ और अपने धर्म कि खूबियों पर ही क्यूँ केंद्रित होता हैं ????? आप को क्यूँ केवल वहीँ पुस्तके अच्छी लगती हैं जो दूसरे धर्म कि आस्था पर चोट करती हैं ।?? कितना तथ्य सही हैं जो आपने किताबो मे पढ़ा हैं । किताबी ज्ञान मानसिक उत्थान देता हैं लेकिन अगर जो आप ने पढ़ा हैं उसके तथ्य सही नहीं हैं और आप उसको ब्लॉग पर देते हैं तो आप खुद को हंसी का पात्र बना रहे हैं ।
आप का अधिकार हैं कि ब्लॉग के जरिये आप अपने धर्म का प्रचार करे पर आप को ये अधिकार बिलकुल नहीं हैं कि आप अपने धर्म के प्रचार मे दूसरे धर्म को नीचा दिखाये ।
राम रहीम कृष्ण करीम सबकी हैं एक ही तालीम आपसी सद्भाव
जब आप केवल अपने घर कि सफाई करते हैं तो आप को ये अधिकार कैसे हैं कि आप दूसरे के धर्म की बुराईयाँ बता सके । आप अपने को जितना चाहे सही साबित कर ले लेकिन आप को अधिकार नहीं हैं कि ब्लॉग के सार्वजनिक मंच पर आप अपने धर्म को ऊँचा बताने के "पाखण्ड" मे दूसरे के धर्म को नीचा बताये ।
जो बाते कभी "समकालीन" होती हैं वो कभी "रुदिवादी " हो जाती हैं और इस लिये जरुरी हैं कि अगर आप को प्रोग्रेस करनी हैं तो रुढ़िवादी बातो का विरोध करे लेकिन विरोध अपने अपने धर्म को रुढ़िवादी बातो का करे ताकि आपस मे रंजिश का माहोल ना पैदा हो ।
आप कितने भी ज्ञानी हो कितनी भी किताबे आपने पढ़ी हो लेकिन आप अपनी आस्था से ऊपर नहीं उठ सकते । जो उठ जाते हैं वो "महान " होते हैं । और हाँ आस्था से बे पढ़ा भी जुडा होता हैं ।
कम्युनिटी लिविंग के नियम हैं उनको माने । भारत मे सब रह सकते हैं लेकिन रहेगा वो हिन्दू राष्ट्र ही और इस लिये अमन और शांति कि बात तभी हो सकती हैं जब हिन्दू धर्म को आप गाली ना दे और अपने धर्म को अपने धर्म ग्रंथो मे दिये हुए तर्कों से हिन्दू धर्म को सुधारने कि बात ना करे अगर आप मुसलमान हैं तो । आप कि ये बाते हिन्दू धर्म मे आस्था रखने वालो को नहीं भाती हैं ।
उसी तरह अगर मुस्लिम धर्म कि खामियां कोई ब्लॉगर जो हिन्दू धर्म मे आस्था रखता हैं वो लिखता हैं तो बवाल होना निश्चित ही हैं ।
पिछली पोस्ट और इस पोस्ट दोनों का मंतव्य ये नहीं हैं कि आप धर्म मे सुधार कि बात ना करे बस दूसरे के नहीं अपने धर्म मे सुधार कि बात करे । दूसरे धर्म कि कौनसी कमी आप को ख़राब लगती हैं से बेहतर हैं कि आप बताये कि दूसरे धर्म कि कौन सी बात आप को अच्छी लगती हैं । आप का ज्ञान केवल और केवल दूसरे धर्म कि कमियाँ और अपने धर्म कि खूबियों पर ही क्यूँ केंद्रित होता हैं ????? आप को क्यूँ केवल वहीँ पुस्तके अच्छी लगती हैं जो दूसरे धर्म कि आस्था पर चोट करती हैं ।?? कितना तथ्य सही हैं जो आपने किताबो मे पढ़ा हैं । किताबी ज्ञान मानसिक उत्थान देता हैं लेकिन अगर जो आप ने पढ़ा हैं उसके तथ्य सही नहीं हैं और आप उसको ब्लॉग पर देते हैं तो आप खुद को हंसी का पात्र बना रहे हैं ।
आप का अधिकार हैं कि ब्लॉग के जरिये आप अपने धर्म का प्रचार करे पर आप को ये अधिकार बिलकुल नहीं हैं कि आप अपने धर्म के प्रचार मे दूसरे धर्म को नीचा दिखाये ।
राम रहीम कृष्ण करीम सबकी हैं एक ही तालीम आपसी सद्भाव
November 20, 2010
हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतियों पर लिखे ना कि दूसरे धर्म की।
किसी भी धर्म मे क्या होता हैं इसके लिये बहुत से "फैक्टर " जिम्मेदार होते हैं । किसी भी धर्मं के ऊपर लिख कर और उसकी कमियाँ बता कर हम कुछ सार्थक नहीं कर सकते जब तक अपनी निज कि पसंद ना पसंद को भी सही दिशा ना दे । अगर जीव हत्या "पाप " हैं तो पहले "पाप" को परिभाषित करे । हिन्दू धर्म मे पाप कि परिभाषा और मुस्लिम धर्म मे पाप कि परिभाषा इतनी भिन्न हैं कि दोनों धर्मो को हम तराजू पर रख कर नहीं तौल सकते । हां अपनी समझ से अवश्य हम दोनों धर्मो कि उन बातो को मान सकते हैं जो हमारी नज़र मे "पुण्य" हैं ।
बलि का बकरा काटना अगर पाप हैं तो निज के शौक और खान पान के लिये मासाहार लेना भी पाप ही हैं । बकरा केवल मुसलमान ही नहीं काटते हैं बल्कि हिन्दू भी काटते हैं नेपाल मे तो ये मदिर मे भी चढ़ाया जाता हैं ।
लखनऊ मे बहुत से घरो मे जहां हिन्दू धर्म का पालन होता हैं वहाँ बकरीद पर कटा बकरा के गोश्त को खाया जाता हैं ।
अगर अमन का ही पैगाम देना, रूढ़िवादिता हटाना और जागरूकता लाना मकसद हैं तो
हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतियों पर लिखे ना कि दूसरे धर्म की। हां बलि का बकराऔर scapegoat दो अलग अलग धर्मो के प्रतीक हैं scape goat का कांसेप्ट इस्राएल और ईसाई धर्म से जुडा हैं
बलि का बकरा काटना अगर पाप हैं तो निज के शौक और खान पान के लिये मासाहार लेना भी पाप ही हैं । बकरा केवल मुसलमान ही नहीं काटते हैं बल्कि हिन्दू भी काटते हैं नेपाल मे तो ये मदिर मे भी चढ़ाया जाता हैं ।
लखनऊ मे बहुत से घरो मे जहां हिन्दू धर्म का पालन होता हैं वहाँ बकरीद पर कटा बकरा के गोश्त को खाया जाता हैं ।
अगर अमन का ही पैगाम देना, रूढ़िवादिता हटाना और जागरूकता लाना मकसद हैं तो
हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतियों पर लिखे ना कि दूसरे धर्म की। हां बलि का बकराऔर scapegoat दो अलग अलग धर्मो के प्रतीक हैं scape goat का कांसेप्ट इस्राएल और ईसाई धर्म से जुडा हैं
November 18, 2010
बिग बॉस और राखी का इन्साफ किस समय प्रसारित हो ???
आज कल के समय मे जब चॅनल "टू पे " हैं किसी भी ऐसे चैनल के प्रोग्राम पर बैन लगाना क्या उपभोगता के अधिकारों का हनन नहीं होगा ।?आज दर्शक पैसा दे कर प्रोग्राम देखता हैं । जिस ने बिग बॉस देखने के लिये या राखी का इन्साफ देखने के लिये ही कलर्स और इमेजिन चैनल को लगवाया हो तो क्या ये उसके अधिकारों के प्रति अन्याय नहीं होगा । प्रसारण का समय तो प्राइम टाइम ९ बजे ही होता हैं सो क्यूँ चैनेल अपना व्यवसाईक नुक्सान करेगे ।
आज कोर्ट से स्टे मिल गया हैं और बिग बॉस अपने निर्धारित समय पर ही आएगा । आगे देखते हैं क्या होगा
आज कोर्ट से स्टे मिल गया हैं और बिग बॉस अपने निर्धारित समय पर ही आएगा । आगे देखते हैं क्या होगा
Labels:
bigg boss
November 16, 2010
आभासी दुनिया मे करे क्या ब्लॉग विमर्श ???
ब्लॉग विमर्श यानी आपसी सहमति से एक दूसरे के विचारों पर एक वार्तालाप .
मीटिंग शुरू होने के बाद ब्लोगर के परिचय कि बात हुई । परिचय के साथ साथ लोगो ने अपने विचार भी रखने शुरू कर दिये , यानी ब्लोगर तैयार थे विचार रखने के लिये । शुरू मे दो तीन लोगो ने ७ मिनट तक समय लिया तो आयोजको को टोकना पडा ।
विमर्श के लिये कई पॉइंट थे
१ वोटिंग के जरिये हिंदी ब्लॉग को आगे ले जाना यानी पोपुलर करना
२ ब्लॉग के जरिये हिंदी का उत्थान
३ ब्लॉग से कमाई के साधन
४ ब्लोग्वाणी का जाना और वापस ना आना
५ तकनीक कि जानकारी के लिये कार्यशाला
६ ब्लॉग का घटता आकडा
७ ब्लॉग पर साहित्य का सृजन
८ समीर और अनूप के गुट
९ ब्लॉग पर मुद्दे
१० ब्लॉग पर पाठक कैसे बढ़े
इतने सारे मुद्दे और कोई समय ही नहीं सवाल जवाब या सम्वाद या डिस्कशन के लिये । बोलने के लिये समय सिर्फ समीर , बालेन्दु और अविनाश को ही दिया गया था सो बाकी लोग केवल श्रोता ही थे । शायद ये मान लिया गया कि जो समीर और बालेन्दु ने कहा सहज सहमती से विमर्श हुआ ।
मेरा अपना मानना हैं कि जो पाठक इन मुद्दों पर विमर्श करना चाहे वो यहाँ या अपने ब्लॉग पर इन विषयों पर अपनी राय दे तो बात कुछ आगे जा सकती हैं ।
इन मुद्दों पर मेरा सोचना हैं :-
हम हिंदी मे ब्लोगिंग केवल इस लिये करते हैं क्युकी हिंदी भाषा मे हम अपनी बात बहुत आसानी से कह सकते हैं । ये हमारा हिंदी प्रेम तो हैं लेकिन उस से भी ज्यादा ये हमारे लिये सुविधा जनक हैं । ब्लॉग लिख कर मुझ नहीं लगता हम हिंदी के उत्थान मे सहयोगी हैं ।
ब्लॉग विमर्श के लिये मीटिंग हो और अगर उस मे कविता , कहानी और साहित्य कि ही बात होगी तो जो लोग अन्य विधाओ से जुड़े हैं और हिंदी साहित्य मे जिनकी रूचि नहीं हैं उनके लिये अरुचिकर होगा वहाँ बैठना । इन मीटिंग मे साहित्यकारों को बुला कर हम केवल और केवल बुद्धिजीवी बनने कि कोशिश करते हैं जो ब्लोगिंग का मात्र एक हिस्सा हैं
ब्लॉग का आकड़ा और पाठक इस लिये घट रहे हैं क्युकी पिछले एक साल मे बहुत से ब्लॉग पर जितनी भी पोस्ट आयी हैं उन पर केवल और केवल "चिट्ठाकार / ब्लोगर " प्रेम दिखा हैं । ब्लोगर नंबर १ ब्लॉगर नंबर २ के ऊपर तारीफ़ के पोस्ट लिखता हैं और पलट कर ब्लोगर नंबर २ ब्लोगर नंबर १ के ऊपर पोस्ट देता हैं । और ऐसे हर ब्लॉग पर कमेन्ट कि संख्या ५० से ऊपर होती हैं ।
इसके अलावा हर डिस्कशन को हम विवाद कहते हैं , उसको सकारातमक /नकारात्मक कि परिधि मे जोडते हैं । इस लिये लोगो का इंटरेस्ट ख़तम हो गया हैं क्युकी वो नयापन अब नहीं हैं ।
विमर्श के मुद्दों पर आप लोग अपनी राय दे , यहाँ दे , अपने ब्लॉग पर दे । कोई ना कोई नयी बात जरुर आयेगी । संभव हो तो कमेन्ट मे लिंक भी छोड़ दे । ब्लॉग आभासी दुनिया हैं और इस पर विमर्श भीआभासी दुनिया मे हो तो बहुत से लोग अपना इनपुट दे सकते हैं
मीटिंग शुरू होने के बाद ब्लोगर के परिचय कि बात हुई । परिचय के साथ साथ लोगो ने अपने विचार भी रखने शुरू कर दिये , यानी ब्लोगर तैयार थे विचार रखने के लिये । शुरू मे दो तीन लोगो ने ७ मिनट तक समय लिया तो आयोजको को टोकना पडा ।
विमर्श के लिये कई पॉइंट थे
१ वोटिंग के जरिये हिंदी ब्लॉग को आगे ले जाना यानी पोपुलर करना
२ ब्लॉग के जरिये हिंदी का उत्थान
३ ब्लॉग से कमाई के साधन
४ ब्लोग्वाणी का जाना और वापस ना आना
५ तकनीक कि जानकारी के लिये कार्यशाला
६ ब्लॉग का घटता आकडा
७ ब्लॉग पर साहित्य का सृजन
८ समीर और अनूप के गुट
९ ब्लॉग पर मुद्दे
१० ब्लॉग पर पाठक कैसे बढ़े
इतने सारे मुद्दे और कोई समय ही नहीं सवाल जवाब या सम्वाद या डिस्कशन के लिये । बोलने के लिये समय सिर्फ समीर , बालेन्दु और अविनाश को ही दिया गया था सो बाकी लोग केवल श्रोता ही थे । शायद ये मान लिया गया कि जो समीर और बालेन्दु ने कहा सहज सहमती से विमर्श हुआ ।
मेरा अपना मानना हैं कि जो पाठक इन मुद्दों पर विमर्श करना चाहे वो यहाँ या अपने ब्लॉग पर इन विषयों पर अपनी राय दे तो बात कुछ आगे जा सकती हैं ।
इन मुद्दों पर मेरा सोचना हैं :-
हम हिंदी मे ब्लोगिंग केवल इस लिये करते हैं क्युकी हिंदी भाषा मे हम अपनी बात बहुत आसानी से कह सकते हैं । ये हमारा हिंदी प्रेम तो हैं लेकिन उस से भी ज्यादा ये हमारे लिये सुविधा जनक हैं । ब्लॉग लिख कर मुझ नहीं लगता हम हिंदी के उत्थान मे सहयोगी हैं ।
ब्लॉग विमर्श के लिये मीटिंग हो और अगर उस मे कविता , कहानी और साहित्य कि ही बात होगी तो जो लोग अन्य विधाओ से जुड़े हैं और हिंदी साहित्य मे जिनकी रूचि नहीं हैं उनके लिये अरुचिकर होगा वहाँ बैठना । इन मीटिंग मे साहित्यकारों को बुला कर हम केवल और केवल बुद्धिजीवी बनने कि कोशिश करते हैं जो ब्लोगिंग का मात्र एक हिस्सा हैं
ब्लॉग का आकड़ा और पाठक इस लिये घट रहे हैं क्युकी पिछले एक साल मे बहुत से ब्लॉग पर जितनी भी पोस्ट आयी हैं उन पर केवल और केवल "चिट्ठाकार / ब्लोगर " प्रेम दिखा हैं । ब्लोगर नंबर १ ब्लॉगर नंबर २ के ऊपर तारीफ़ के पोस्ट लिखता हैं और पलट कर ब्लोगर नंबर २ ब्लोगर नंबर १ के ऊपर पोस्ट देता हैं । और ऐसे हर ब्लॉग पर कमेन्ट कि संख्या ५० से ऊपर होती हैं ।
इसके अलावा हर डिस्कशन को हम विवाद कहते हैं , उसको सकारातमक /नकारात्मक कि परिधि मे जोडते हैं । इस लिये लोगो का इंटरेस्ट ख़तम हो गया हैं क्युकी वो नयापन अब नहीं हैं ।
विमर्श के मुद्दों पर आप लोग अपनी राय दे , यहाँ दे , अपने ब्लॉग पर दे । कोई ना कोई नयी बात जरुर आयेगी । संभव हो तो कमेन्ट मे लिंक भी छोड़ दे । ब्लॉग आभासी दुनिया हैं और इस पर विमर्श भीआभासी दुनिया मे हो तो बहुत से लोग अपना इनपुट दे सकते हैं
हिंदी ब्लॉग विमर्श दिल्ली -- उपजे प्रश्न ??
हिंदी ब्लॉग विमर्श दिल्ली , १३ नवम्बर को दिल्ली मे संपन्न हुआ । एक रिपोर्ट यहाँ दी हैं और ये पोस्ट रिपोर्ट नहीं हैं हाँ मेरे मन मे उस विमर्श के बाद जो बाते आयी , ये पोस्ट उनका शाब्दिक स्वरुप हैं । इन पर विमर्श हो सकता हैं अगर कोई करना चाहे तो इस पोस्ट मे कमेन्ट से ।
संगोष्ठी का निर्धारित समय था ३ बजे दोपहर और काफी लोग उस समय तक आ ही गये थे लेकिन मुख्य अतिथि नहीं आये थे जो तक़रीबन ३.४०-३.५० के आस पास ही आये { या आ सके }
क्या मीटिंग तब तक शुरू नहीं की जा सकती थी ??? अगर कहीं विदेश मे ये मीट होती तो समय कि पाबन्दी सब पर होती हैं क्युकी समय से शुरू होगी तो ज्यादा बात हो सकती हैं । हम क्यूँ कोई भी काम समय सारणी से नहीं कर सकते हैं ।??जो लोग समय से आये वो समय से जाना भी चाहते थे और चले भी गए , मुख्य अतिथि को बिना सुने । सबके अपने अपने निरधारित काम हैं और उस पर वापस जाना भी जरुरी हैं
मीटिंग शुरू होने से पहले और मुख्या अतिथि के आने से पहले ही अल्पाहार का बंदोबस्त हो गया , समय बीतने के लिये करना था कुछ काम !!! अब प्रश्न ये हैं कि क्या २ घंटे की मीटिंग मे अल्पाहार कि जरूरत भी हैं ??? ये औपचारिकताये ना हो तो क्या अच्छा नहीं होगा ??? २ घंटे का समय अगर केवल विमर्श के लिये होता तो निश्चय ही कुछ विमर्श होता । केवल पानी कि व्यवस्था होती और वो भी छोटी वाली मिनिरल वाटर कि जिसके लिये हम पैसा दे सकते तो ज्यादा बेहतर होता । अल्पाहार एक प्रकार का अपव्य ही था जिसको रोका जाना चाहिये ।
अल्पाहार कि वजह से आयोजको को टिका टिपण्णी भी सुननी पड़ती हैं । मुझे आयोजक ने वो रजिस्टर भी दिखाया जहा किसी ब्लॉगर ने "सुझावों " के कोलम मे लिखा था "चाय गर्म नहीं थी " । उनको इस बात से बहुत चोट पहुची थी । कोई भी प्रथा ना बनाये और हर आडम्बर से ब्लॉग विमर्श कि मीट को दूर रखे तो एक नयी बात होगी अन्यथा ये सब मिलने और मिलाने कि चाय पार्टी से ऊपर कुछ नहीं नहीं होगा { इसके लिये स्नेह मिलन अलग से आयोजित किये जा सकते हैं जिनको नेट्वोर्किंग मे रूचि हो उनके लिये }
मुख्य अतिथि के आने के बाद मीटिंग शुरू हुई और उसमे फिर ओपचारिक आडम्बर हुआ । यानी मुख्य अतिथि का स्वागत किया गया दो बड़े बड़े बुके दे कर । कम से कम भी माने तो एक बुके १०० रूपए का होगा ही । एक तरफ हम भारतीये सभ्यता और संस्कृति कि बात करते हैं तो दूसरी तरफ हम अग्रेजो कि छोड़ी हुई प्रथाओ को निरंतर मान्यता देते हैं । इस पैसे मे कुछ और पैसे मिला कर मुख्य अतिथि को कुछ पुस्तके भेट दी जासकती थी जिनको वो अपने साथ ले जा सकते थे । पुस्तकों पर हर आने वाले ब्लॉगर के हस्ताक्षर ले कर उनको यादगार बनाया जा सकता हैं और हिंदी कि पुस्तके जो बिकती नहीं हैं उनको ख़रीदा जा सकता था । इस के लिये साहित्य से जुड़े ब्लॉगर से भी उनकी पुस्तके खरीदी जा सकती थी । बेकार के आडम्बरो पर पैसा नष्ट करने से बेहतर था हम उस पैसे किसी गरीब बच्चे को वही कुछ खिला दे ।
ब्लॉग विमर्श कि मीट को आडम्बर विहीन रखा जाये ऐसा मेरा मानना हैं । विमर्श हो और कुछ नहीं ।
और विमर्श आत्म मंथन ही हैं जिसको मे ब्लॉग पर पोस्ट के रूप मे दे रही हूँ । इस को सकारात्मक , नकारात्मक ईत्यादी कि परिधि में ना बंधे
ब्लॉग विमर्श मे हुआ क्या इस पर अगली पोस्ट अगर आप को उत्सुकता हो तो .
संगोष्ठी का निर्धारित समय था ३ बजे दोपहर और काफी लोग उस समय तक आ ही गये थे लेकिन मुख्य अतिथि नहीं आये थे जो तक़रीबन ३.४०-३.५० के आस पास ही आये { या आ सके }
क्या मीटिंग तब तक शुरू नहीं की जा सकती थी ??? अगर कहीं विदेश मे ये मीट होती तो समय कि पाबन्दी सब पर होती हैं क्युकी समय से शुरू होगी तो ज्यादा बात हो सकती हैं । हम क्यूँ कोई भी काम समय सारणी से नहीं कर सकते हैं ।??जो लोग समय से आये वो समय से जाना भी चाहते थे और चले भी गए , मुख्य अतिथि को बिना सुने । सबके अपने अपने निरधारित काम हैं और उस पर वापस जाना भी जरुरी हैं
मीटिंग शुरू होने से पहले और मुख्या अतिथि के आने से पहले ही अल्पाहार का बंदोबस्त हो गया , समय बीतने के लिये करना था कुछ काम !!! अब प्रश्न ये हैं कि क्या २ घंटे की मीटिंग मे अल्पाहार कि जरूरत भी हैं ??? ये औपचारिकताये ना हो तो क्या अच्छा नहीं होगा ??? २ घंटे का समय अगर केवल विमर्श के लिये होता तो निश्चय ही कुछ विमर्श होता । केवल पानी कि व्यवस्था होती और वो भी छोटी वाली मिनिरल वाटर कि जिसके लिये हम पैसा दे सकते तो ज्यादा बेहतर होता । अल्पाहार एक प्रकार का अपव्य ही था जिसको रोका जाना चाहिये ।
अल्पाहार कि वजह से आयोजको को टिका टिपण्णी भी सुननी पड़ती हैं । मुझे आयोजक ने वो रजिस्टर भी दिखाया जहा किसी ब्लॉगर ने "सुझावों " के कोलम मे लिखा था "चाय गर्म नहीं थी " । उनको इस बात से बहुत चोट पहुची थी । कोई भी प्रथा ना बनाये और हर आडम्बर से ब्लॉग विमर्श कि मीट को दूर रखे तो एक नयी बात होगी अन्यथा ये सब मिलने और मिलाने कि चाय पार्टी से ऊपर कुछ नहीं नहीं होगा { इसके लिये स्नेह मिलन अलग से आयोजित किये जा सकते हैं जिनको नेट्वोर्किंग मे रूचि हो उनके लिये }
मुख्य अतिथि के आने के बाद मीटिंग शुरू हुई और उसमे फिर ओपचारिक आडम्बर हुआ । यानी मुख्य अतिथि का स्वागत किया गया दो बड़े बड़े बुके दे कर । कम से कम भी माने तो एक बुके १०० रूपए का होगा ही । एक तरफ हम भारतीये सभ्यता और संस्कृति कि बात करते हैं तो दूसरी तरफ हम अग्रेजो कि छोड़ी हुई प्रथाओ को निरंतर मान्यता देते हैं । इस पैसे मे कुछ और पैसे मिला कर मुख्य अतिथि को कुछ पुस्तके भेट दी जासकती थी जिनको वो अपने साथ ले जा सकते थे । पुस्तकों पर हर आने वाले ब्लॉगर के हस्ताक्षर ले कर उनको यादगार बनाया जा सकता हैं और हिंदी कि पुस्तके जो बिकती नहीं हैं उनको ख़रीदा जा सकता था । इस के लिये साहित्य से जुड़े ब्लॉगर से भी उनकी पुस्तके खरीदी जा सकती थी । बेकार के आडम्बरो पर पैसा नष्ट करने से बेहतर था हम उस पैसे किसी गरीब बच्चे को वही कुछ खिला दे ।
ब्लॉग विमर्श कि मीट को आडम्बर विहीन रखा जाये ऐसा मेरा मानना हैं । विमर्श हो और कुछ नहीं ।
और विमर्श आत्म मंथन ही हैं जिसको मे ब्लॉग पर पोस्ट के रूप मे दे रही हूँ । इस को सकारात्मक , नकारात्मक ईत्यादी कि परिधि में ना बंधे
ब्लॉग विमर्श मे हुआ क्या इस पर अगली पोस्ट अगर आप को उत्सुकता हो तो .
November 03, 2010
सचिन , अमिताभ , आदर्श सोसाइटी और राम प्रस्थ
कल खबर थी कि सचिन तेंदुलकर ने एहमदाबाद मे मकान के लिये जमीन खरीदी हैं ।
पहले ही अमिताभ बच्चन गुजरात के ब्रांड एम्बस्सीडर बन चुके हैं ।
और ये दोनों ही वो हैं जिनके लिये समाना मे लिखा जा चुका हैं ।
इन दोनों का ये जवाब शायद आंखे खोल सके उनलोगों कि जिन्होने बम्बई को मुंबई बना दिया । वो लोग जो भारत रतन के सच्चे हक़दार हैं उनका जवाब शांत सही पर हैं टंकार वाला
आदर्श सोसाइटी का काण्ड चलता रहेगा क्युकी हमारे यहाँ नीति हैं कि पहले गैर क़ानूनी ढंग से कब्ज़ा करो और फिर उसको क़ानूनी जमा पहना दो ।
आदर्श सोसाइटी मे ये कुछ बड़े पैमाने पर हुआ हैं और संभव हैं किसी को फ्लैट ना मिला हो और उसने विसिल बजा दी हो !!!!!! इस बिल्डिंग को नष्ट कर देना चाहिये चाहे इस मे कितना भी आर्थिक नुक्सान क्यूँ ना हो क्यूँ कि ये पर्यावरण के हिसाब से भी गलत हैं । लेकिन कुछ नहीं होगा । बीस साल ३० साल निकल जायेगे आर टी आयी लागने वाले लडते रहेगे और जांच आयोगों पर बिल्डिंग बनाने से ज्यादा खर्चा आयेगा ।
ये हमारी संस्कृति बनती जा रही हैं कि जहां भी कोई गलत बात का प्रतिकार करता हैं उसको विद्रोह और विवाद का नाम दिया जाता हैं ।
ना जाने कितनी जगह इललीगल कंस्ट्रक्शन होते हैं और बाद मे सरकार कानून बना कर उनको लीगल कर देती हैं "आम आदमी कि दुहाई दे कर " लेकिन क्या वाकई आम आदमी का फायदा होता हैं ?? उनका क्या जो लीगल तरह से रह रहे है ?
राम प्रस्थ कालोनी दिल्ली से सटी यु पी कि एक फ्री होल्ड कालोनी हैं । १९७० मे ये बनी थी और यहाँ १५०० प्लाट थे २०० गज से ८०० गज के जिन पर कोठी और २.५ मंजिल मकान का प्रावधान था । ४० % एरिया खुला रखना था । बहुत से लोगो ने उस समय यहाँ प्लाट लिये थे जो सब ज्यादातर मिडिल क्लास के थे क्युकी उस समय जमीं का मूल्य मात्र २५ रूपए गज था । आज वो सब लोग सीनियर सिटिज़न हो गए हैं और सुबह से शाम तक उनको यहाँ लड़ना पड़ता हैं क्युकी अब यहाँ उनके मकानों के बगल मे १२ - १२ फ्लैट बनगए हैं और वो सब गैर कानूनी हैं । उनको 10% एरीया खाली रखना हैं . इलाहाबाद कोर्ट मे मुकदमा चल रहां है सन २००० से । ये फैसला भी आ चुका हैं कि ये सब गैर क़ानूनी ढंग से सरकारी अफसरों कि मिली भगत से हुआ हैं । जो फ्लैट मे रहते हैं उनको कोठी मे रहने वालो से प्रॉब्लम हैं क्युकी उनको लगता हैं इतनी जगह क्यूँ हैं ४-५ लोगो के परिवार के पास जबकि उसकी १/१२ जगह मे वो हैं । लेकिन जो कोठी मे हैं उनसे टैक्स भी ज्यादा लिया जाता हैं और उनकी बुनियादी सुविधाये जिन के लिये वो ज्यादा टैक्स दे रहे हैं वो उनको नहीं मिलती ।
कितनी बार ये फ्लैट गिराने कि बात उठती हैं पर हर बार पैसा ले दे कर रफा दफा हो जाती हैं । सीनियर सिटिज़न को दबया जाता हैं कि वो प्लाट बिल्डर को बेच दे ।
आम आदमी वो भी हैं जो फ्लैट मे हैं और वो भी जिसने कोठी बनायी हैं पर कौन कानूनी तरीके से हैं और कौन गर क़ानूनी देखने कि बात ये हैं । लेकिन कानून कि बात किसी कि समझ मे नहीं आती ।
ना जाने कितनी "आदर्श " सोसाइटी हमारे समाज मे पनप रही हैं क्युकी सजा का प्रावधान ही नहीं हैं ।
पहले ही अमिताभ बच्चन गुजरात के ब्रांड एम्बस्सीडर बन चुके हैं ।
और ये दोनों ही वो हैं जिनके लिये समाना मे लिखा जा चुका हैं ।
इन दोनों का ये जवाब शायद आंखे खोल सके उनलोगों कि जिन्होने बम्बई को मुंबई बना दिया । वो लोग जो भारत रतन के सच्चे हक़दार हैं उनका जवाब शांत सही पर हैं टंकार वाला
आदर्श सोसाइटी का काण्ड चलता रहेगा क्युकी हमारे यहाँ नीति हैं कि पहले गैर क़ानूनी ढंग से कब्ज़ा करो और फिर उसको क़ानूनी जमा पहना दो ।
आदर्श सोसाइटी मे ये कुछ बड़े पैमाने पर हुआ हैं और संभव हैं किसी को फ्लैट ना मिला हो और उसने विसिल बजा दी हो !!!!!! इस बिल्डिंग को नष्ट कर देना चाहिये चाहे इस मे कितना भी आर्थिक नुक्सान क्यूँ ना हो क्यूँ कि ये पर्यावरण के हिसाब से भी गलत हैं । लेकिन कुछ नहीं होगा । बीस साल ३० साल निकल जायेगे आर टी आयी लागने वाले लडते रहेगे और जांच आयोगों पर बिल्डिंग बनाने से ज्यादा खर्चा आयेगा ।
ये हमारी संस्कृति बनती जा रही हैं कि जहां भी कोई गलत बात का प्रतिकार करता हैं उसको विद्रोह और विवाद का नाम दिया जाता हैं ।
ना जाने कितनी जगह इललीगल कंस्ट्रक्शन होते हैं और बाद मे सरकार कानून बना कर उनको लीगल कर देती हैं "आम आदमी कि दुहाई दे कर " लेकिन क्या वाकई आम आदमी का फायदा होता हैं ?? उनका क्या जो लीगल तरह से रह रहे है ?
राम प्रस्थ कालोनी दिल्ली से सटी यु पी कि एक फ्री होल्ड कालोनी हैं । १९७० मे ये बनी थी और यहाँ १५०० प्लाट थे २०० गज से ८०० गज के जिन पर कोठी और २.५ मंजिल मकान का प्रावधान था । ४० % एरिया खुला रखना था । बहुत से लोगो ने उस समय यहाँ प्लाट लिये थे जो सब ज्यादातर मिडिल क्लास के थे क्युकी उस समय जमीं का मूल्य मात्र २५ रूपए गज था । आज वो सब लोग सीनियर सिटिज़न हो गए हैं और सुबह से शाम तक उनको यहाँ लड़ना पड़ता हैं क्युकी अब यहाँ उनके मकानों के बगल मे १२ - १२ फ्लैट बनगए हैं और वो सब गैर कानूनी हैं । उनको 10% एरीया खाली रखना हैं . इलाहाबाद कोर्ट मे मुकदमा चल रहां है सन २००० से । ये फैसला भी आ चुका हैं कि ये सब गैर क़ानूनी ढंग से सरकारी अफसरों कि मिली भगत से हुआ हैं । जो फ्लैट मे रहते हैं उनको कोठी मे रहने वालो से प्रॉब्लम हैं क्युकी उनको लगता हैं इतनी जगह क्यूँ हैं ४-५ लोगो के परिवार के पास जबकि उसकी १/१२ जगह मे वो हैं । लेकिन जो कोठी मे हैं उनसे टैक्स भी ज्यादा लिया जाता हैं और उनकी बुनियादी सुविधाये जिन के लिये वो ज्यादा टैक्स दे रहे हैं वो उनको नहीं मिलती ।
कितनी बार ये फ्लैट गिराने कि बात उठती हैं पर हर बार पैसा ले दे कर रफा दफा हो जाती हैं । सीनियर सिटिज़न को दबया जाता हैं कि वो प्लाट बिल्डर को बेच दे ।
आम आदमी वो भी हैं जो फ्लैट मे हैं और वो भी जिसने कोठी बनायी हैं पर कौन कानूनी तरीके से हैं और कौन गर क़ानूनी देखने कि बात ये हैं । लेकिन कानून कि बात किसी कि समझ मे नहीं आती ।
ना जाने कितनी "आदर्श " सोसाइटी हमारे समाज मे पनप रही हैं क्युकी सजा का प्रावधान ही नहीं हैं ।
Subscribe to:
Posts (Atom)
Blog Archive
-
▼
2010
(83)
-
▼
November
(9)
- सोच रही हूँ
- जानकारी साझा करे
- बद्दुआ से बचे
- क्या आप दूसरे के घर कि सफाई करते हैं ??
- हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतिय...
- बिग बॉस और राखी का इन्साफ किस समय प्रसारित हो ???
- आभासी दुनिया मे करे क्या ब्लॉग विमर्श ???
- हिंदी ब्लॉग विमर्श दिल्ली -- उपजे प्रश्न ??
- सचिन , अमिताभ , आदर्श सोसाइटी और राम प्रस्थ
-
▼
November
(9)