जब भी किसी पर निरंतर / कम समय के अन्तराल मे कोई विपत्ति आती हैं तो लोग कहते हैं ,
जरुर किसी का बुरा किया होगा ,
किसी कि बद्दुआ लग गयी इत्यादि ।
क्या आप को भी लगता हैं कि विपत्तियों का निरंतर आना , जैसे परिवार जनों का एक्सिडेंट , मृत्यु इत्यादि एक के बाद के होना किसी कि बद्दुआ का नतीजा भी हो सकता हैं ।
क्या सच मे कोई ऐसा चक्र हैं जो घूमता हैं और कहीं ना कही अगर आप किसी का मन दुखाते हैं , बुरा करते हैं जान बुझ कर तो आप का बुरा अपने आप हो जाता हैं ।
इस से क्या ये भी सिद्ध होता हैं कि जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं आती वो किसी का भी बुरा नहीं करते हैं ।
और हां
ये बद्दुआ होती क्या हैं और नज़र लगने का अर्थ क्या होता हैं क्या ये दोनों एक ही बात हैं ।
जो पढ़ा है उसके अनुसार नज़र उनको लगती हैं जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं होती हैं ।
तो क्या जो नज़र लगता हैं उसको बद्दुआ लगती हैं और उसका बुरा होना स्वयं निश्चित हो जाता हैं
बड़ा कनफूजन हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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अब क्या कहूं.नज़र और बद्दुआ मन का वहम है. हमें चोट लगती है या कुछ बुरा होता है तो हमें स्व्यं की गलती देखनी चाहिए न कि किसी दूसरे को इसका जिम्मेदार समझना चाहिए.
ReplyDeleteयदि कोई व्यक्ति यही देखता रहे कि मेरा यह अकाज उस कारण से हुआ होगा तो इसका कोई अंत नहीं. हर बार वह अपने ही भीतर से एक नया कारण ढूँढ लेगा. अपनी बेहतरी के लिए प्रवृत्त नहीं होगा. बद्दुआ अगर लगती होती तो इस देश में गरीबों के दुखे हुए दिल कम नहीं थे.
ReplyDeleteभले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते।
ReplyDeleteबद दुआ कभी भी किसी को नहिं लगती। मानव मात्र बुरी मंशा से किसी का अहित करने में सक्षम नहिं।
ReplyDeleteकिन्तु किसी के प्रति बुरा चिंतन, हमारे व्यक्तित्व को बुरा बना देने में सक्षम है। अतः बद दुआ देने वाले का स्वयं का अहित हो जाता है…॥,
@ रचना मैडम ! जल्लाद न मिले तो जल्लाद मैं लाकर दूंगा पर होनी फँसी ही चाहिए ऐसे Rapist दरिंदों को .
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