क्या आप दूसरे के घर कि सफाई करते हैं ??
जब आप केवल अपने घर कि सफाई करते हैं तो आप को ये अधिकार कैसे हैं कि आप दूसरे के धर्म की बुराईयाँ बता सके । आप अपने को जितना चाहे सही साबित कर ले लेकिन आप को अधिकार नहीं हैं कि ब्लॉग के सार्वजनिक मंच पर आप अपने धर्म को ऊँचा बताने के "पाखण्ड" मे दूसरे के धर्म को नीचा बताये ।
जो बाते कभी "समकालीन" होती हैं वो कभी "रुदिवादी " हो जाती हैं और इस लिये जरुरी हैं कि अगर आप को प्रोग्रेस करनी हैं तो रुढ़िवादी बातो का विरोध करे लेकिन विरोध अपने अपने धर्म को रुढ़िवादी बातो का करे ताकि आपस मे रंजिश का माहोल ना पैदा हो ।
आप कितने भी ज्ञानी हो कितनी भी किताबे आपने पढ़ी हो लेकिन आप अपनी आस्था से ऊपर नहीं उठ सकते । जो उठ जाते हैं वो "महान " होते हैं । और हाँ आस्था से बे पढ़ा भी जुडा होता हैं ।
कम्युनिटी लिविंग के नियम हैं उनको माने । भारत मे सब रह सकते हैं लेकिन रहेगा वो हिन्दू राष्ट्र ही और इस लिये अमन और शांति कि बात तभी हो सकती हैं जब हिन्दू धर्म को आप गाली ना दे और अपने धर्म को अपने धर्म ग्रंथो मे दिये हुए तर्कों से हिन्दू धर्म को सुधारने कि बात ना करे अगर आप मुसलमान हैं तो । आप कि ये बाते हिन्दू धर्म मे आस्था रखने वालो को नहीं भाती हैं ।
उसी तरह अगर मुस्लिम धर्म कि खामियां कोई ब्लॉगर जो हिन्दू धर्म मे आस्था रखता हैं वो लिखता हैं तो बवाल होना निश्चित ही हैं ।
पिछली पोस्ट और इस पोस्ट दोनों का मंतव्य ये नहीं हैं कि आप धर्म मे सुधार कि बात ना करे बस दूसरे के नहीं अपने धर्म मे सुधार कि बात करे । दूसरे धर्म कि कौनसी कमी आप को ख़राब लगती हैं से बेहतर हैं कि आप बताये कि दूसरे धर्म कि कौन सी बात आप को अच्छी लगती हैं । आप का ज्ञान केवल और केवल दूसरे धर्म कि कमियाँ और अपने धर्म कि खूबियों पर ही क्यूँ केंद्रित होता हैं ????? आप को क्यूँ केवल वहीँ पुस्तके अच्छी लगती हैं जो दूसरे धर्म कि आस्था पर चोट करती हैं ।?? कितना तथ्य सही हैं जो आपने किताबो मे पढ़ा हैं । किताबी ज्ञान मानसिक उत्थान देता हैं लेकिन अगर जो आप ने पढ़ा हैं उसके तथ्य सही नहीं हैं और आप उसको ब्लॉग पर देते हैं तो आप खुद को हंसी का पात्र बना रहे हैं ।
आप का अधिकार हैं कि ब्लॉग के जरिये आप अपने धर्म का प्रचार करे पर आप को ये अधिकार बिलकुल नहीं हैं कि आप अपने धर्म के प्रचार मे दूसरे धर्म को नीचा दिखाये ।
राम रहीम कृष्ण करीम सबकी हैं एक ही तालीम आपसी सद्भाव
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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सत्य वचन…
ReplyDeleteअसल में सामाजिक कुरीतियाँ हर धर्म में मौजूद हैं… दिक्कत तब शुरु होती है जब किसी दूसरे धर्म का व्यक्ति किसी तीसरे धर्म की कुरीतियों पर लेक्चर झाड़ने लगता है… या मेरी "ही" किताब श्रेष्ठ, मेरा "ही" पैगम्बर श्रेष्ठ जैसी बातें करने लगता है…। फ़लाँ किताब पढ़ो, फ़लाँ ने अलाँ धर्म स्वीकार कर लिया जैसी गर्वोक्ति करने लगते हैं… तब "दूसरी" तरफ़ "जवाबी" कार्रवाईयाँ भी होना लाजिमी है…
विषय से हटकर एक बात और :- हिन्दुओं की कुरीतियों, हिन्दू धर्मगुरुओं पर, मन्दिरों की सम्पत्ति, जाति-प्रथा, दहेज इत्यादि पर ढेर सारे हिन्दू ब्लॉगरों ने ही अपनी तीखी आलोचनात्मक कलम चलाई हैं, आगे भी चलाते रहेंगे…।
मुझे पाँच-दस (सिर्फ़ 5 ही) ऐसे मुस्लिम ब्लॉगरों के नाम बताईये, जिन्होंने इस्लाम की कुरीतियों पर अपनी जोरदार कलम चलाई हो, कठमुल्लाओं से लोहा लिया हो, ऊटपटांग फ़तवों की जमकर खिलाफ़त की हो…, कुरान-आयत-हदीस की विकृतियों की अच्छी तरह से खबर ली हो…।
सुरेश जी ने बिल्कुल सही कहा है...
ReplyDelete@रचना जी,
ReplyDeleteआपकी बातें पूरी तरह से सही है, तथा आपने एक धर्म निरपेक्ष पोस्ट लिखी है, आपकी पहली पोस्ट भी ठीक वैसी ही थी, पर जैसा कि आपने और हम सभी ने देखा कि कुछ लोगो ने वहां भी दूसरे धर्म की बुराई प्रारंभ कर दी. एक पागल ने तो यह भी कह दिया कि श्री राम जी मांस तथा मदिरा का सेवन करते थे तथा हिन्दी धर्म का कोई आधार ही नहीं है.
मै एक युवा हूँ जब एक युवा होकर भी मै हिंदुस्तान पर हुए कई हमलों में (कारगिल, संसद भवन, तथा ताज होटल) मुस्लिम हाथ होने से इनकार कर के असामाजिक तत्वों को इसके लिए दोषी ठहरता हूँ, जब में किसी भी धर्म के खिलाफ बोलने से बचता हूँ तो मै अपने धर्म के प्रति सुन कैसे सकता हूँ |
तो फिर यह तो बिल्कुल भी बर्दास्त नहीं कर सकता कि कोई हमारे आदर्श श्री राम के प्रति कुछ कहे, वो भी ये सब ये असामाजिक तत्त्व तब बोल रहा है जब कि यह लेख किसी भी धर्म की तरफ इशारा कर रहा है |
तो आपसे एक विनती है कि आप इस तरह के लेख ही ना लिखें, क्यूंकि इस पर आये हुए कमेन्ट मेरी और मेरे जैसे कई लोगों की मानसिकता विकृत करने का कार्य कर सकते हैं, जो आगे चल कर व्यर्थ के तनाव का कारण बन सकते हैं, और कोई भी सामाजिक व्यक्ति यह नहीं चाहेगा कि इस देश मै दुबारा बाबरी मस्जिद जैसी दुर्घटना हो.
मेरे जैसे कई लोगों की मानसिकता विकृत करने का कार्य कर सकते हैं, जो आगे चल कर व्यर्थ के तनाव का कारण बन सकते
ReplyDeletejiskae paas itni samjh haen wo kabhie galat nahin likh saktaa aap apni baat rakhey jahaan bhi apnae dharm kaa apmnaan daekhae kyuki hamari aastha hi hamari shakti haen
इसे कहते हैं भैंस के आगे बीन बजाना रचना जी।
ReplyDeleteये लोग नहीं सुधरने वाले, आप भी कहाँ इनके झमेले में पड़ गयी हैं।
इन दिनों धर्म विषयक आलेखों पर कमेंट्स की एक नई विधा सामने आई है जो इस प्रकार है-
ReplyDelete1. जो मेरे धार्मिक विचारों से सहमत नहीं वह बेवकूफ है
2. जो मेरे धार्मिक विचारों से सहमत है वह नालायक है
3. जो मेरे धार्मिक विचारों के प्रति तटस्थ है वह धूर्त है
ऐसे वातावरण में धार्मिक विषयों पर टिप्पणी करने से बचना बेहतर समझता हूँ.
आपके द्वारा व्यक्त विचारों से सहमति है.
आपसे सहमती.. पहले अपना घर ठीक करो फिर मोहल्ले को सुधारने की बात करो...
ReplyDeleteरचना जी आपकी पोस्ट में जो संदेश दे रही है उससे मैं सहमत हूँ।लेकिन ये हिन्दू राष्ट्र ? ऐसा कैसे ?
ReplyDeleteराजन
ReplyDeleteआप पाकिस्तान को क्या कहते हैं और क्यूँ , उसी तरह जिस देश मे हिन्दू धर्म मे आस्था रखने वाले सबसे ज्यादा हैं उसको हिन्दू राष्ट्र कहने मे उज्र क्यूँ होता हैं । अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता से जुड़ना हैं तो उसको समझना भी जरुरी हैं और उसमे जो खामियां लगती हैं क्युकिन समय बदल गया और पुराणी बाते रुढ़िवादी होगई हैं उनको बदलना आवश्यक हैं
बेहतर हैं कि आप बताये कि दूसरे धर्म कि कौन सी बात आप को अच्छी लगती हैं ।
ReplyDeleteपुर्ण सहमत हूँ।
प्रणाम
यह लेख़ एक बेहतरीन लेख़ है. सभी को चाहिए इस बात को समझें.
ReplyDeleteगहरे रंग के बैकग्राऊंड के कारण पढने में आँखों को असुविधा हो रही है। अगर कुछ बदलाव कर दें तो आभार होगा।
ReplyDeleteप्रणाम