किसी भी धर्म मे क्या होता हैं इसके लिये बहुत से "फैक्टर " जिम्मेदार होते हैं । किसी भी धर्मं के ऊपर लिख कर और उसकी कमियाँ बता कर हम कुछ सार्थक नहीं कर सकते जब तक अपनी निज कि पसंद ना पसंद को भी सही दिशा ना दे । अगर जीव हत्या "पाप " हैं तो पहले "पाप" को परिभाषित करे । हिन्दू धर्म मे पाप कि परिभाषा और मुस्लिम धर्म मे पाप कि परिभाषा इतनी भिन्न हैं कि दोनों धर्मो को हम तराजू पर रख कर नहीं तौल सकते । हां अपनी समझ से अवश्य हम दोनों धर्मो कि उन बातो को मान सकते हैं जो हमारी नज़र मे "पुण्य" हैं ।
बलि का बकरा काटना अगर पाप हैं तो निज के शौक और खान पान के लिये मासाहार लेना भी पाप ही हैं । बकरा केवल मुसलमान ही नहीं काटते हैं बल्कि हिन्दू भी काटते हैं नेपाल मे तो ये मदिर मे भी चढ़ाया जाता हैं ।
लखनऊ मे बहुत से घरो मे जहां हिन्दू धर्म का पालन होता हैं वहाँ बकरीद पर कटा बकरा के गोश्त को खाया जाता हैं ।
अगर अमन का ही पैगाम देना, रूढ़िवादिता हटाना और जागरूकता लाना मकसद हैं तो
हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतियों पर लिखे ना कि दूसरे धर्म की। हां बलि का बकराऔर scapegoat दो अलग अलग धर्मो के प्रतीक हैं scape goat का कांसेप्ट इस्राएल और ईसाई धर्म से जुडा हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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अच्छी सोच, पर आज कल बहुत से धर्म गुरुओं की दूकान ही दुसरे धर्म की बुराई कर के चल रही है
ReplyDeleteकमाल की पोस्ट लिखी है रचना ! एक साफ़ सुथरी पोस्ट के लिए बधाई !
ReplyDeleteबहुत सटीक विचार ... विचारणीय बिंदु है ... आभार
ReplyDeleteकितने हिन्दू हैं जो बलि देते हैं या इसमें विश्वास करते हैं.. जहां परम्परा थी वहां भी बन्द हो रही है..
ReplyDeleteलेकिन कितने मुस्लिम ऐसे हैं जो बकरीद पर जानवर नहीं कटवाते..
मांसाहार हिन्दुओं के एक हिस्से ने अपनाया अवश्य लेकिन इसे एक कट्टर धार्मिक प्रक्रिया के बतौर नहीं..
आप का लेख मुस्लिमों की समझ में आये तो बेहतर हो,,,
आप दोनों पक्षों को एक तराजू पर नहीं तोल सकतीं जिनके नाप के बाट अलग अलग हो,,,
@हिन्दू धर्म मे पाप कि परिभाषा और मुस्लिम धर्म मे पाप कि परिभाषा इतनी भिन्न हैं कि दोनों धर्मो को हम तराजू पर रख कर नहीं तौल सकते ।
ReplyDeleteसही कहा, तुल्ना ही बेकार है। इतनी भिन्नता है कि अगर अपनी अपनी कुरितियों पर भी लिखें तो सीधी दूसरे धर्म पर आक्षेप बन उभर जाती है। आखिर कोई क्या करे?
एक पैमाने से नापिए सारे झगड़े खत्म हो जाएँगे 2
ReplyDelete@ Great sister रचना जी ! आपके विचार सुंदर और स्पष्ट हैं । आपने सही लिखा है कि हिंदू कल्चर और इस्लाम धर्म में दोनों में पाप पुण्य की परिभाषा में अंतर है । पहले परिभाषा तय कर ली जाए और फिर तर्क वितर्क किया जाए ।
वह दिन आना मुश्किल है क्योंकि अभी तक तो हिंदू शब्द की ही परिभाषा तय नहीं हो पाई है, पाप पुण्य की कैसे तय कर लेंगे ?
2- चलिए फिर भी आपकी नज़र में जो पाप है जिस पर आप इस्लाम और मुसलमानों को नाप रहे हैं उसी पैमाने से अपने पूर्वजों को भी नापिए । हमें कोई ऐतराज न होगा ।
3- रामचंद्र जी भरत जी और हनुमान जी का भोजन क्या था ?
4- क्या शिव जी शेर की खाल पर बैठ कर ध्यान नहीं लगाते थे ?
5- शिवा जी का फूड क्या था ?
6- हमारे सिक्ख गुरुओं आहार क्या था ?
7- हमारे सैनिकों और अधिकांश हिंदुओं का भोजन आज क्या है ?
8- उड़ीसा और दक्षिण के वेदपाठी ब्राह्मणों का भोजन आज भी क्या है ?
9- क्या ये सब अमन के दुश्मन और राक्षस हैं ?, अधम और पतित हैं ?
बलि विरोधी जवाब दें ।
एक पैमाने से नापेँगे तो झगड़े खुद ख़त्म हो जाएगे ।
विकृतियाँ सभी धर्मों में हैं, लेकिन हिन्दुओं में "सुधार" की प्रक्रिया काफ़ी तेज़ है… (पहले से रही है)
ReplyDeleteडॉ अनवर जमाल
ReplyDeleteसुरेश के साथ साथ ब्लॉग जगत मे मै भी हिन्दुतत्ववादी मानी जाती हूँ और मुझे फक्र हैं कि मै हिन्दू हूँ । आप ये कहना कि "हिंदू शब्द की ही परिभाषा तय नहीं हो पाई है" शालीनता कि परिधि के बाहर हैं । आगे से ध्यान रखे कि अगर मै आपके धर्म का अपमान नहीं करती तो आप को भी मेरे धर्म के प्रति अपमानजनक होने का कोई अधिकार नहीं हैं । भारतीये संविधान मे जो आस्था रखते हैं वोहर धर्म से ऊपर हैं क्युकी देश का धर्म संविधान ही होता हैं
भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ReplyDeleteआप ने जो कहा मे भी वही तो कह रही हूँ "आप दोनों पक्षों को एक तराजू पर नहीं तोल सकतीं जिनके नाप के बाट अलग अलग हो,,, " हम को अपने को आगे ले जाना हैं तो अपने को हम जितना सुधार सके उतनी जल्दी ही हम तरक्की कर सकेगे ।
। इतनी भिन्नता है कि अगर अपनी अपनी कुरितियों पर भी लिखें तो सीधी दूसरे धर्म पर आक्षेप बन उभर जाती है। आखिर कोई क्या करे?
ReplyDeleteसमस्या का निदान हैं कि हम हिन्दू धर्मं मे जितनी कुरीतियाँ हैं उन पर लिखे , उन पर बात करे लोगो के विचार जाने और उनको दूर करने का प्रयतन करे ताकि हम अपनी आस्था के साथ तरक्की करे ।
बेहतरीन और सटीक पोस्ट, धन्यवाद
ReplyDeleteसच में पाप और पुण्य की परिभाषा कैसे होगी।
दूसरा धर्म यानि की पहले धर्म से कुछ विपरीत
एक में जो जरुरी हो दूसरे में वही वर्जना हो सकती है।
प्रणाम
@ सीनियर ब्लागर बहन रचना जी ! 'हिंदू शब्द की परिभाषा में भारी अनिश्चितता है' यह कहने से अगर हिंदू धर्म का अपमान होता है तो इसका जिम्मेदार मैं नहीं हूँ । इसके जिम्मेदार हैं मेरे भाई अमित जी , क्योंकि आपने ब्लाग पर हिंदू शब्द की विवेचना करते हुए उन्होंने यही बात कही है । आप वहाँ देख लें और उन्हें अपनी शिकायत दर्ज करा दें और साथ ही हिंदू शब्द की सर्वसम्मत और सुनिश्चित परिभाषा बताकर उनकी गलतफहमी भी दूर कर दें और कृप्या मुझे भी बता दें ताकि मेरी नॉलिज में भी इज़ाफ़ा हो जाए ।
ReplyDeleteधन्यवाद !
अनवर जमाल जी
ReplyDeleteअमित एक हिन्दू हैं और वो अपने धर्म को बुरा केही भला कहे कोई फरक नहीं पड़ेगा क्युकी वो अपने धर्म को कह रहे हैं लेकिन अगर आप वही बात कहेगे तो पडेगा क्युकी आप दूसरे धर्मं मे आस्था रखते हैं । यही बात मैने पोस्ट मे भी कही हैं । क्यूँ एक दूसरे के धर्म कि बुराई करे । मेरा धर्मं कैसा हैं सवाल ये होना चाहिये ना कि ये कि आप का धर्म कितना बुरा हैं ।
एक बार गौर कर के देखे कि अगर एक मुसलमान हिन्दू धर्म के ऊपर बात करना बंद कर दे और एक हिन्दू मुसलमान धर्म के ऊपर बात करना बंद करदे तो कितना फरक पड़ेगा ।
अब आते हैं परिभाषा पर तो अगर आप किताबी और पढ़ी हुई बातो से ऊपर सोचते हैं तो एक परिभाषा यहाँ दी हैं इस पर भी नज़र डाले http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2008/10/blog-post_4047.हटमल
आप ने बहिन कह कर जो सम्मान दिया हैं उसकी तहे दिल से आभारी हूँ ।
पहली बार किसीको दिमाग से पोस्ट डालते हुए देख रहा हूँ ... पर कुछ टिप्पणियों से साफ़ ज़ाहिर है कि आप भैंस के आगे बिन बजा रहे हैं ...
ReplyDeleteहर किसी को अपने मत को अच्छा समझने का हक है, बल्कि केवल अच्छा ही नहीं सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए, लेकिन असल लड़ाई शुरू होती जब हम अपने को अच्छा बताने, उसकी अच्छाई दुनिया के सामने लाने की जगह दूसरों को बुरा कहना शुरू कर देते हैं.
ReplyDeleteशाहनवाज जी से सहमत
ReplyDeleteआपके विचारों से पूर्णत: सहमत....लेकिन ये भी उतना ही सत्य है कि "अन्धे आगे रोये, अपने नैन खोए"
ReplyDeleteप्रारम्भ स्वयं से हो, यह सीख सबके लिये है।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
रचना जी,
"हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतियों पर लिखे ना कि दूसरे धर्म की।"
सहमत,
परंतु यदि कोई सज्जन अपने धर्म के बखान में कोई ऐसी बात लिखते हैं जो उपलब्ध सामग्री के प्रकाश में सही नहीं है... तो क्या केवल उन सज्जन के धर्म को मानने वाला ही उसका विरोध करे... अन्य धर्मों के मतावलंबी चुप ही रहें... यदि यह अपेक्षा है तो सही नहीं है ।
ब्लॉगवुड में आजकल कुछ ऐसा ही चल रहा है मैं अपनी एक टिप्पणी का लिंक दे रहा हूँ, देखिये यहाँ ऐसा ही हुआ है... गलत है यह... :(
...
हमारा देश भारतवर्ष अनेकता में एकता, सर्वधर्म समभाव तथा सांप्रदायिक एकता व सद्भाव के लिए अपनी पहचान रखने वाले दुनिया के कुछ प्रमुख देशों में अपना सर्वोच्च स्थान रखता है, परंतु दुर्भाग्यवश इसी देश में वैमनस्य फैलाने वाली तथा विभाजक प्रवृति की तमाम शक्तियां ऐसी भी सक्रिय हैं जिन्हें हमारे देश का यह धर्मनिरपेक्ष एवं उदारवादी स्वरूप नहीं भाता. .अवश्य पढ़ें धर्म के नाम पे झगडे क्यों हुआ करते हैं ? हिंदी ब्लॉगजगत मैं मेरी पहली ईद ,इंसानियत शहीद हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है
ReplyDeleteसमाज को आज़ाद इंसान बनाया करते हैं
ब्लोगेर की आवाज़ बड़ी दूर तक जाती है, इसका सही इस्तेमाल करें और समाज को कुछ ऐसा दे जाएं, जिस से इंसानियत आप पे गर्व करे.
Great post and to the point! I wish others could think the same way. Thanks so much for this post!
ReplyDeleteकुछ भी बोल लीजिये पर लोगों ने कसम खा रखी है कि "हम नहीं सुधरेंगे", और... चलिये छोड़िये अब क्या बोलें..
ReplyDelete.
ReplyDeleteभारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। भारतीय होने के नाते प्रत्येक नागरिक का ये दायित्व है कि समाज में यदि कुछ गलत हो रहा है तो उसके खिलाफ आवाज़ उठाएं। ये मेरा धर्म नहीं है ये सोचकर चुप नहीं बैठ जाना चाहिए। सभी धर्मों में कुछ न कुछ अंधविश्वास है। जिसके खिलाफ लोगों में जागरूकता लाने कि लिखना प्रत्येक व्यक्ति को हक है कि वो उस विषय पर लिखे , चाहे वो किसी भी धर्म का हो ।
क्या अब ये भी धर्म से जोड़ा जाएगा कि लेख का विषय किस धर्म का है ?
लेखक या का उद्देश्य क्या है ये जानना जरूरी नहीं है ? यही समाज के हित में कोई लेख लिखा जाये तो लेखक का धर्म देखा जायेगा ? बड़ी अजीब सी बात है।
हम सामाजिक प्राणी हैं, और समाज में क्या गलत हो रहा है , किस बात से हिंसा बढती है और मानवता शर्मसार होती है , उसके खिलाफ लिखना एक जिम्मेदार मनुष्य का कर्तव्य है।
लेख के विषयों को धर्म के आधार पर बांटना उचित नहीं लगता।
यदि कोई मुस्लिम हिन्दुओं के अंधविश्वासों पर लिखता है या फिर कोई हिन्दू अन्य धर्मों में प्रचलित अंधविश्वासों पर लिखता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
समाज में सुधार हो , और विकास हो, यही लेखक का उद्देश्य होना चाहिए।
आभार।
.
प्रवीन शाह
ReplyDeleteआप जानते हैं कि सलीम खान ने हिन्दू धर्म के खिलाफ लिखना एक वर्ष से ज्यादा समय पहले शुरू किया था और अमित और कई और ब्लॉगर {जिस मे मै भी हूँ } इस प्रचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं । तथ्य सही या गलत से ज्यादा अहिमियत हो जाती हैं कि हम अपने धर्म कि बुराई नहीं सुनेगे और जैसे भी होगा उसको बड़ा साबित कर के रहेगे । इसी प्रकार से जाकिर के ब्लॉग पर निरंतर हिन्दू धर्म के ढकोसलो पर लिखा जाता हैं । मैने टीप दी कि मुस्लिम धर्म के ढकोसलो पर भी लिखे पर वो मिटा दी गयी ये कह कर कि मै विष फेला रही हूँ ।
मेरी ये पोस्ट इस मे जो लिंक दिया हैं zeal कि पोस्ट का उस पर दिया हुआ कमेन्ट हैं । zeal कि पोस्ट मे भी तथ्य गलत हैं और scape goat का कोई लेना देना बलि के बकरे से नहीं हैं .
कल तक मेरे अंदेशे अनुरूप कमेन्ट पुब्लिश नहीं हुआ , ये zeal का अधिकार हैं पर अपने कमेन्ट को पुब्लिश करें का अधिकार अपने ब्लॉग पर मेरा भी हैं
धर्म हमे भावनात्मक बनाता हैं और भावना हमे कमजोर बनाती हैं
जिनको मेरी बात सही लगी उनका शुक्रिया , जिनको सही नहीं लगी वो अपनी कोशिश अपने तरीके से जारी रखे । मकसद अगर सद्भावना होगी तो आकर रहेगी
ReplyDeletehttp://mypoeticresponse.blogspot.com/2010/11/blog-post_21.html
ReplyDeleteमैं आपके आलेख को सही अप्रोच मानता हूँ. इसके अतिरिक्त दूसरे धर्म की अच्छी बातों की प्रशंसा करना और अपने धर्म को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश न करना भी सद्भावना का एक सशक्त रास्ता है.
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट ...
ReplyDeleteबधाई व आभार !
धर्म अब धर्म रहा ही नहीं एक अतिसंवेदनशील विषय हो गया है. धर्म एक हथियार बन गया है..कैसे दूसरों को चोट पहुंचाएं ...कैसे दूसरों को बरगला कर धर्मांतरण करलें ताकि एक स्थापित संस्कृति को नष्ट कर उसका दूरगामी परिणाम मिल सके......
ReplyDeleteकल सद्भावना मंच पर मोदी ने गोल टोपी नहीं लगाई तो धर्म विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँच गयी. धर्म जहाँ इतना दुर्बल हो गया हो कि वह अभिनय की अपेक्षा करने लगे तो यह अभिनय हर किसी को अपने घर के अन्दर करना चाहिए. अर्चना जी से पूरी तरह सहमत हूँ कि हमें केवल अपने -अपने घर की सफाई करनी चाहिए. दूसरों के घरों को साफ़ करने की मुहिम छेड़ने वाले स्वयंभू ठेकेदार धर्म को विकृत कर रहे हैं और इस राष्ट्र को दुर्बल.