मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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December 22, 2010

टीप कुछ लम्बी होगयी पर कहना जरुरी हैं सो आगे

जब मैने ये कहा कि @ बेहूदा प्रेम प्रसंगों की विफलता से अपनी उर्जा और समय तो नहीं व्यर्थ करती । तो मै मान कर चली की प्रेम प्रसंग मे दो लोग होते ही हैं । मैने कब आक्षेप किया किसी एक पर । क्युकी मै किसी से भी ईमेल / फ़ोन इत्यादि पर ब्लॉग संबंधी बातो को ना तो पूछती हूँ ना जानना चाहती हूँ सो जो लिखा जाता हैं मै उस को पढ़ कर अपनी बात कहती हूँ । हां बेहूदा इस लिये कहा क्युकी प्रेम की इस रूप से निरंतर अनजान हूँ जिस मै प्रेम करने के बाद एक दूसरे को साप , बिच्छू , विष कन्या, कुतिया इत्यादि संबोधनों से अलंकृत किया जाता हैं । हो सकता हैं प्रेम का २ हज़ारिकरण हो ये ।
जब मैने ये कहा की @ क्युकी आप की नज़र मे महिला को आवाज उठानी ही नहीं चाहिये उसके खिलाफ जो जो चाहे लिखे ।तो मेरा तात्पर्य था आप की उस पोस्ट से जो एक प्रकरण से जुड़ी थी और आप ने शायद अनूप के कहने से मिटा दी । उस प्रकरण से जुड़े तीन पोस्ट मिटा दिये गये और बात ख़तम होगई लेकिन विषाक्त मन मै हैं और रहेगी तो पोस्ट भी रहने देते । और अगर आप को या किसी को भी पूरी पोस्ट मिटने का अधिकार गूगल ने दिया हैं हैं तो रविन्द्र को टीप मिटा कर आगे बढ़ना का अधिकार क्यूँ नहीं हैं ??? {मै रविंद्रे की आलोचक हूँ पर कोई अपने ब्लॉग पर क्या करे ये उसका अधिकार मानती हूँ ।}

एक प्रकरण से जुड़े लोग एक दूसरे पर लिख रहे हैं उसमे एक महिला हैं तो महिला कि तरफ हूँ ये आप का आक्षेप सही नहीं हैं ये आप कि सोच का धोखा हैं हां मै ये जरुर मानती हूँ कि अगर आप गाली दे कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं क्युकी आप पुरुष हैं तो ये अपराध नहीं हैं तो एक महिला को भी वही अधिकार हैं ।

"क्या यह नहीं देखा जाना चाहिए उस पुरुष के अन्य उदाहरण हैं ऐसे अन्य महिलाओं के प्रति ?

मै ऊपर कह चुकी हूँ कि मै किसी के भी संबंधो का आकलन करने ब्लॉग मै नहीं आयी हूँ जो लिखा जाता हैं पढ़ लेती हूँ । ब्लॉग को मै सोशल नेट्वोर्किंग के लिये नहीं मानती हूँ और ना ही आप को मै किसी सोशल नेट्वोर्किंग साईट पर मिलूंगी

क्या यह प्रकरण 'जेनुइन' के समर्थन की मांग नहीं करता , स्त्री या पुरुष की वर्ग-दृष्टि से अलग निरपेक्ष होकर ..क्योंकि -
महज किसी स्त्री का समर्थन करना स्त्रीवाद का समर्थन करना नहीं है !

मेरी सोच मै नारीवाद का एक ही मतलब हैं समानता हर चीज़ मै । उस से ऊपर कुछ नहीं हां अगर चौराहे पर खड़े होकर किसी स्त्री के कपड़े नोचे जाए तो मै एक स्त्री होने के नाते सबसे पहले उसके साथ खड़ी होयुंगी क्युकी आज भी समाज स्त्री को ही डराता हैं और नंगा करता हैं । पुरुष को जिस दिन नंगे होने का भय होने लगेगा उस दिन प्रिय अमेरंद्र समानता आ जायेगी ।


टीप कुछ लम्बी होगयी पर कहना जरुरी हैं सो आगे

आप ने जितने भी लिंक दिये हैं उनकी याद हैं मुझ सो चलिये शुक्रिया कहना बनता हैं सो कह रही हूँ । आग्रह करती हूँ कि अपना साथ देते रहियेगा । और अंत मे कभी कभी हम गलत नहीं होते पर हम सही भी नहीं होते हैं । आपआकलन कीजिये

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