हर देश के अपने कानून हैं और उनको मानना चाहिये
हमारी क़ोई भी कंपनी या व्यक्ति किसी भी देश में जाता हैं तो उसको मजबूर किया जाता हैं कानून मानने के लिये और सजा भी दी जाती हैं
लेकिन हमारे यहाँ उलटा हैं
ये कंपनियां अपने देश के कानून के हिसाब से चलती हैं और हमारे यहाँ का कानून मानने से इंकार करती हैं
६० साल की आज़ादी के बाद भी ऐसा लगता हैं जैसे वो हमारे यहाँ ऑफिस खोल कर क़ोई अहसान कर रहे हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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