हिन्दी लेखक / हिन्दी ब्लॉगर , मेरी नज़र मे ये दोनों , अलग अलग हैं । ज्यादातर हिन्दी ब्लॉगर , हिन्दी मे लिखते हैं पर हिन्दी उनका विषय नहीं हैं । वो हिन्दी को प्यार करते हैं इसलिये हिन्दी मे लिखते हैं । उन मे से बहुत से डॉक्टर , इंजीनियर , सॉफ्टवेर देव्लोपेर , सरकारी संस्थानों मे बडे और ऊँचे पदों पर आसीन , दिल्ली और अन्य विश्व विद्यालयो मे हिन्दी तथा अन्य विषयों के प्रवक्ता , वकील , सेल्फ एम्प्लोयेड हैं ।
अगर चिटठा जगत का सक्रियता क्रम देखे तो पहले ४० चिट्ठो के मालिक सब इतने समर्थ जरुर हैं की १०० रुपए प्रतिमाह दे सके एक अग्रीगेटर की सुविधा उठाने के लिये ।
हिन्दी मे ब्लॉग लिखना महज एक शौक हैं उन लोगो के लिये जो अपने अपने कार्य क्षेत्र मे जीविका के लिये कमा रहे हैं । ब्लॉग लिखना एक व्यसन भी हैं क्युकी इस मे आप के पास इन्टरनेट का खर्चा उठाने की सामर्थ्य भी होनी चाहिये । बहुत से घरो मे आज भी इन्टरनेट नहीं हैं क्युकी उसकी कोई जरुरत नहीं हैं और उसके लिये १००० रुपए माह खर्च नहीं किया जा सकता हैं । आज भी मध्यवर्गी परिवार मे रोटी कपड़ा और मकान ही बेसिक जरुरत हैं ।
जितनी चादर हो पैर उतने ही पसारने चाहिये । अगर आय कम हैं तो या तो कम आय मे रहना आना चाहिये या आय बढ़नी चाहिये ।
हिन्दी ब्लॉगर और हिन्दी लेखक मे फरक हैं मेरी नज़र मे , मेरी नज़र और मेरी सोच ही हैं इस ब्लॉग पर । लोग डायरी को सार्वजनिक करने से डरते हैं क्युकी उसमे व्यक्तिगत एह्साह होते हैं जो हम बाटना चाहते हैं ताकि और क्या सोचते हैं उस विषय मे वो पता चले । और कमेन्ट डिलीट भी करती हूँ जो नहीं पसदं होते क्युकी अपनी डायरी हैं सो पन्ने फाड़े भी जासकते हैं ।
आशा हैं सागर नाहर अब नाराज नहीं रहेगे ।
आज कल बहुत से लोग दुसरो की डायरी सार्वजनिक कर रहे हैं हम तो अपनी ही कर रहे हैं । और भईया हम १०० रुपए प्रति माह ही दे सकते हैं अग्रीगेटर पर ब्लॉग दिखाना के लिये इस से ज्यादा होगा तो केवल ब्लॉग लिखेगे , अग्रीगेटर पर सदस्यता नहीं लेगे । हम हिन्दी मे अपने लेखन को प्रमोट करने के लिये इतना खर्चा जरुर करेगे । दो ब्लॉग २०० रुपए । पर किसी को डोनेशन नहीं देना पसंद करेगे ।
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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जेब काटने का है पूरा इंतजाम
ReplyDeleteब्लॉगिंग का होगा काम तमाम।
आपको अवश्य ही किसी कंपनी में
विक्रय प्रबंधक होंगी उकसा उकसा कर ...
भले ही सब इस सदस्यता का खर्चा उठा सकते हैं परंतु हम इसके विरोध में हैं, और हम इसका मुखर विरोध करते हैं।
ReplyDeleteहमारा विरोध दर्ज किया जाये।
हमारा विरोध दर्ज किया जाये।
ReplyDeletebina karan bataaye kyun darj karu aap ka virodh !!!!!!!!!!
रचना जी आपकी बात सही है लेकिन मेरे हिसाब से अगर ब्लॉग अग्रीगारेटर से ब्लॉग प्रचार करवाना ही है तो अपने आप से सबके ब्लॉग पर जाकर पढ़ना और वहा कमेन्ट देकर ब्लॉग प्रचार किया जा सकता है . और अगर सुविधा की बात है तो १०0 रुपये देने के बाद ब्ब्लाग अग्रीगारेटर कौन सी सुविधा मुहैया कराएगा ?
ReplyDeleteऐसा हो सकता है कि आप जिन कारणों से ये कह रही हैं ...वे ठीक हों...किंतु अभी स्थिति उतने बुरे दौर में नहीं पहुंची है कि ...उसे आर्थिक प्रतिबंधों में बांधा जाये....मुझे नहीं लगता कि ये कोई कारगर उपाय साबित हो सकता है...हां किंतु कल को यदि ये अनिवार्य शर्त के रूप में..एक नियम की तरह सामने आता है...तो चुंकि इस वजह से तो ब्लोग्गंग नहीं छोडना चाहूंगा....वाजिब शुल्क भी अदा करने को तैयार हूं...वैसे इन जेनरल मैं भी इस प्रसतावित नियम के विरोध में ही हूं......हां बहस के लिये मुद्दा सार्थक है...
ReplyDeleteउचित प्रस्ताव और वाजिब फीस !
ReplyDeleteहम तो शौकिया लेखन में हैं और अपने मन में जो आता है या दुनिया से बांटने की इच्छा होती है, लिख देते हैं, पर हाँ इसके लिये पैसे खर्च करने की तनिक भी तमन्ना नहीं रखते हैं ये तो पैसे वालों की शोशेबाजी हो जायेगी कि जिसके पास पैसा केवल वही ब्लॉगिंग कर हिन्दी एग्रीगेटर पर छपे और आम जनता तक पहुँच पाये। शायद आपके प्रस्ताव को उचित मानने वाले या फ़िर आप लोगों ने यह कभी सोचा ही नहीं होगा कि फ़िर ये एग्रीगेटर कुछ हाथों की कठपुतली बन कर रह जायेगी।
ReplyDeleteइस लिये हमारा विरोध दर्ज किया जाये। और भी कोई संशय हो तो बतायें।
ठीक है, रचना जी का सुझाव मुझे मान्य है, और मैं घोषणा करता हूं कि जिस दिन से एग्रीगेटर फ़ीस लेकर ही ब्लाग दिखायेंगे, उस दिन से ब्लागिंग बन्द…
ReplyDeleteऔर कौन-कौन है मेरे साथ, अपना हाथ ऊंचा करें…
सुरेश मुद्दा ब्लॉग्गिंग बंद करने का नहीं हैं ब्लॉग को अग्रीगेटर पर फीस दे कर दिखने का हैं आप ब्लॉग बंद करने की बात कह कर लोगो को क्यूँ भड़का रहे हैं , ये ना इंसाफी हैं मेरा विरोध दर्ज किया जाए !!!!
ReplyDeleteआपने कहा - "जितनी चादर हो पैर उतने ही पसारने चाहिये, अगर आय कम हैं तो या तो कम आय मे रहना आना चाहिये…" मैं सिर्फ़ आपके शब्दों पर अमल करने की कोशिश करूंगा…। मेरे पास पैसा नहीं है, इसलिये एग्रीगेटर मेरा ब्लाग दिखायेगा नहीं, जब ब्लाग नहीं दिखेगा तो पढ़ेगा कौन, और जब पढ़ेगा नहीं तो लिखकर फ़ायदा क्या? इसमें भड़काने वाली कोई बात नहीं है… अधिकतर ब्लागर यही करेंगे…।
ReplyDeleteशायद आपको याद हो, ई-मेल की सुविधा को Paid बनाने की पहल एक बार किसी वेबसाईट ने की थी, तत्काल उसके सारे ग्राहक दूसरे मेल प्रोवाइडर पर शिफ़्ट हो गये थे।
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विषयान्तर - सलीम की "प्रचार लिंक" का हमला आप पर भी हो चुका है, झेलिये…
अब इस सात्विक व्यसन के लिए १०० रूपये भी नहीं है? -बनारस में तो इतने का पान पांच दिन में खा कर लोग थूक देते हैं !
ReplyDeleteतब हम किस बल पर एग्रेगेटर संचालकों को पानी पी पी कर कोस रहे हैं ?
रचना जी,
ReplyDeleteदेखिये कितनी महत्वपूर्ण बातें सामने आ रही हैं-
1) ब्लागिंग एक व्यसन है।
2) ब्लागिंग करना और पान चबाना एक ही कृत्य है।
3) पान खाकर थूकने और एग्रीगेटर को 100 रुपये मासिक देना एक समान है।
4) पानी पी-पीकर कोसने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है।
अरविन्द भैया की जय
(मेरे पास सच में 1200 रुपये नहीं हैं… शेष शुभ हो… :)
yar ye kaviyon lekhkon ko isse mukt rkho ye bechree bramrakshas hain khan se layenge appke liye dan dakshina ho sakee to inki mehnat ka kuchh muavaja inhe dia karo
ReplyDeleteहम ना तो ब्लॉग अग्रीगाटर को कोस सकते हैं ...ना ही ब्लॉग के लिए पैसा खर्च कर सकते हैं ...ब्लॉग लिखना हमारे लिए तो डायरी लिखने जैसा ही है ...और लिखने के लिए डायरी की भी जरुरत नहीं है ...हम तो बच्चों की फटी कौपियों में ...राशन की पर्चियों के पीछे ..कही भी लिख लेते हैं ...तो लिखने के लिए फीस देने का तो सवाल ही नहीं है ...!!
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