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October 21, 2010

आस्था - पाखण्ड

मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार ---- आस्था
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार यानी ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया पैसा -- पाखण्ड

ईश्वर कि शक्ति पर विश्वास --- आस्था
होनी - अनहोनी को टालने के लिये ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया इत्यादि , हवन --- पाखण्ड

आत्मा का होना --- आस्था
आत्मा के होने के प्रमाण के लिये पास्ट लाइफ मे जाना -- पाखण्ड

पुनर्जनम मे विश्वास --- आस्था
अपने निकटतम का पुनर्जनम सुन कर दौड़ना -- पाखण्ड

पूजा , पाठ मे विश्वास - आस्था
पूजा पाठ के लिये हर मंदिर मे चढावा चढ़ाना ---- पाखण्ड

साधू संतो कि सेवा -- आस्था
होनी अनहोनी को जानने के लिये साधू संतो को दान -- पाखण्ड

व्रत उपवास --- आस्था
व्रत उपवास से पति का जीवन, पुत्र का जीवन बढ़ता हैं -- पाखण्ड






सूची और विस्तार मांगती हैं कम शब्दों मे ज्यादा परिभाषित करे

8 comments:

  1. एकदम सटीक विवेचन, रचना जी।

    आपने आस्था और पाखण्ड को परिभाषित कर सभी को निरूत्तर कर दिया।

    पाखण्डिनो विकर्मस्थान्, वैडालवृतिकान् शठः न्।
    हैतुकान् बकवृत्तिश्च, वाङ्मात्रेणापि नाचंयेत्॥
    -मनुस्मृति, अ 4 श्लो 30
    http://bharatbhartivaibhavam.blogspot.com/2010/10/blog-post_19.html

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  2. दुख-सुख कर्माधीन- आस्था
    टोने-टोटके से सुखी बनने के उपाय- पाखण्ड

    आत्मा स्वयं कर्म का कर्ता व भोक्ता- आस्था
    दुखों के लिये किसी देव देवी पर आरोप- पाखण्ड

    स्वयं के आत्म में रमण ध्यान - आस्था
    तंत्र-मन्त्र जाप ध्यान - पाखण्ड

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  3. पेड हमारे आश्रय है, उनका सम्मान - आस्था।
    पेडो में दुध बहाना,धागे बांधना - पाखण्ड

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  4. .
    .
    .
    यह मानना कि एक परोपकारी,न्यायपूर्ण व ईमानदार जीवन जीकर मैं या कोई अनय भी वह सब कुछ पा सकता है, जो दुनिया का कोई अन्य पायेगा : आस्था

    केवल मेरे उपास्य व मेरी उपासना पद्धति वाले ही मुक्ति पायेंगे : पाखंड


    ...

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  5. बिना किसी धर्म-लेबल के गुणानुकरण से लक्ष्य(मोक्ष)साध्य है- आस्था
    मैं तो कैसे भी मुक्ति पा लूंगा,मिथ्यामत अभिमान- पाखण्ड

    ॰॰॰

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  6. रचना जी

    आप के बातो से सहमत हु | बस समस्या ये है की मनुष्य को अपनी आस्था पर ही पूरा भरोसा नहीं है | आस्था पर तो मै भी सवाल नहीं उठाती हु वो तर्क से नहीं बनते है | पर ज्यादातर तो आस्था के नाम पर आडम्बर ही करते है उस पर तो सवाल उठाने ही चाहिए |

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  7. आस्‍था और पाखंड को मिलाने के लिए धर्म के ठेकेदार कितने बेचैन रहते हैं, उनको कोशिशों का क्‍या? आपने तो उनके इरादों पर ही पानी फेर दिया। बहुत खूब- आस्‍था क्‍या है, पाखंड क्‍या है, अच्‍छे अंदाज में समझाया आपने।

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