सुरेश चिपलूनकर जी और वो सब भारतीये संस्कृति के उपसाक जो हर बात में नयी पीढ़ी की मोरल मोलिसिंग करते हैं ख़ास कर महिला की बिलकुल इग्नोर कर गए एक खबर को क्यूँ ??
ठाकरे परिवार के जलसे में मुन्नी बदनाम , जलेबी बाई और शीला की जवानी पर ठुमके लगते रहे और बाबा साहिब ठाकरे की पोते श्री मज़े लेते रहे ।
बाद में उद्धव ठाकरे जी ने कहा भाई नयी पीढ़ी हैं और पार्टी के पी आर ओ कहने लगे मीडिया वो सब देखे जो पार्टी महाराष्ट्र के उत्थान के लिये करती हैं ये प्रोग्राम तो छोटा सा था ।
पोते श्री ने कुछ जवान होने जैसा जुमला दिया ।
कहा हैं वो भारतीये संस्कार जिनकी दुहाई दे कर अमिताभ और सचिन को हडकाया जाता रहा ??
कहां हैं वो भारतीये संस्कार जो महिला के साड़ी ना पहनने पर उसको रंडी तक का तमगा दिया जाता रहा ?
कहा सो गया सारा जमीर ठाकरे परिवार का , अरे और कुछ नहीं तो कम से कम अपने पोते के खिलाफ ही मीडिया में ब्यान देते ।
दूसरो के माँ बाप क्या संस्कार देते हैं ये तो हमेशा सुना दिया जाता हैं पर ये कट्टर हिन्दू परिवार अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या संस्कार दिये हैं ।
और वो सब हिन्दू वादी ब्लॉगर क्यूँ मौन धारण किये हैं इस मुद्दे पर , क्यूँ निस्पक्ष होकर इस समय किसी ने कुछ नहीं लिखा ?
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
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एक सही प्रश्न!
ReplyDeleteखबर देखी थी, ये वही लोग है जो वेलनटाइन दे को लड़कियों को भी मारने से नहीं चुकते है , पबो में जा कर लड़कियों को गिरा गिरा कर मारने वालो का समर्थन करते है संस्कृति को बचाने के नाम पर , अब शायद संस्कृति की रक्षा करने वाले इन महानुभावों को अपनो की करनी नहीं दिख रही है या उसे नदेखा करने का प्रयास कर रहे है |
ReplyDeleteसब जगह ऐसा ही हो रहा है... पर आईना दूसरों को दिखाने के संस्कार सबसे पहले सीखे हैं हमारे समाज ने... बाकी संस्कारों के लिए समय ही नहीं मिला शायद
ReplyDeleteहिन्दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्ट
"Niyam hamesha dusron ke liye hotey hain".... Aur har jagah yahi niyam apnaya jaa raha hai...
ReplyDeleteजल में रह कर मगर से बैर कौन करे
ReplyDeleteइसीलिए वो हैं अन्ना संग मौन धरे
निष्पक्ष को सही लिखिए ..आप उस परिवार से हैं जो हिन्दी का ऋणी है बाकी तो राम ही राखें !
ReplyDeleteमौन रहने में और उसे सही ठहराने/जस्टिफाई करने की कोशिश में बहुत फर्क होता है
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता आपसे बेहतर कोई इस बात समझेगा
आप से ही इस खबर का पता चला , दुखद है
@रचना जी
ReplyDeleteनिष्पक्षता की बात चली है तो अब मुझे पूरी उम्मीद है की स्त्री सशक्तिकरण के नाम पर आये दिन होने वाले अत्याचार [अमानवीय] के बारे में अपने ब्लॉग पर अवश्य बतायेंगी
अब बात उन लोगों की जो महिलाओं की मोरल पोलिसिंग करते हैं :
सीधी सी बात है महिलाओं को सिर्फ प्रयोग किया जा रहा है अपनी विचारधारा के प्रचार के लिए अब चाहे रूढ़िवादी करें या आधुनिकतावादी , सब एक जैसे हैं
@अंशुमाला जी
मैंने कईं जगहों पर राम लीला मैदान में महिलाओं के साथ हुए दुरव्यवहार को इग्नोर करते हुए , उस कार्यवाही को जस्टिफाई करते हुए भी देखा है [मैं आपकी बात का विरोध नहीं कर रहा हूँ ]
रचना जी आपने तो अब किसी को बोलने के काबिल ही नही छोड़ा इसलिए सुरेश जी का मौन रहना ही उचित है
ReplyDeleteरचना जी आपने तो अब किसी को बोलने के काबिल ही नही छोड़ा इसलिए सुरेश जी का मौन रहना ही उचित है
ReplyDeleteइनका भी सीजन होता है.अभी संस्कृति बचाओ अभियान शुरू करने में टाईम है,तब तक मौका भी है और दस्तूर भी तो कोई क्यों पीछे रहे जश्न मनाने में.
ReplyDeleteye tuchhi harkaten hain.......tritiye shreni ki ochhi harkat........unke liye jo bhartiya sanskriti ke rakshak
ReplyDeletepristposhak kahe jate hain....
itti bat ki safai to bhau ke snusaran-karta....prashanshak bhi de
sakte hain lekin denge nahi......kyonke unhone, unhe(thakre & sons) ko pahele hi apnke kai poston
me kharij kar chuke hain.....
pranam.