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October 22, 2011

क्या क़ोई ये भ्रम दूर कर सकता हैं ?? सेवा - कर्त्तव्य

क़ोई भी जो अपने बुजुर्ग माँ -पिता के साथ रहता हैं और उनके काम करता हैं उसको सेवा क्यूँ कहा जाता हैं ?? कर्त्तव्य क्यूँ नहीं ?

सेवा करना तो तब होता अगर आप किसी अनजान व्यक्ति जिसने आप के लिये कभी कुछ ना किया हो करते , माँ - पिता के लिये तो कर्त्तव्य या ड्यूटी मात्र हैं ।

माँ - पिता जब बच्चो को बड़ा करते हैं तो अगर वो कर्त्तव्य हैं तो बच्चे जब माँ - पिता के लिये कुछ करते हैं तो वो सेवा क्यूँ

क्या क़ोई ये भ्रम दूर कर सकता हैं ??

14 comments:

  1. प्रश्न तो वाजिब है…………कर्तव्य और सेवा मे काफ़ी अन्तर होता है।

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  2. सेवा करना भी एक कर्तव्य है।
    पर सेवा कर कर्तव्यों की इतिश्री न समझ लेना/मान लेना चाहिए।

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  3. यह एक सेवा है जो कर्तव्य भी है।
    जी विश्वनाथ

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  4. सोचन पड़ेगा रचना जी देखते है बाकि लोग क्या जवाब देते है |

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  5. रचना जी ,

    मुझे ऐसा लगता है की जब बच्चो को बड़ा किया जाता है तो उनके पालन पोषण को एक कर्त्तव्य इसलिए कहा जाता है , क्योंकि उन बच्चो को हमने ही जन्म दिया होता है ... जबकि , माता और पिता की देखभाल करना सेवा ही कहलाई जाती है , ये कर्त्तव्य ही होता है , लेकिन इसे सेवा शब्द का जामा पहनाया जाता है... ऐसा मेरा मानना है ....!!
    धन्यवाद.
    विजय

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  6. कर्तव्य ही कहा जायेगा बड़ों की सेवा करना।

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  7. सही है .. सेवा दूसरों की की जाती है .. अपनो के प्रति कर्तब्‍य निभाया जाता है .. वैसे अन्‍य लोगों के विचारों का इंतजार रहेगा !!

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  8. रचना जी, कर्तव्य का अर्थ होता है 'करने योग्य कार्य' वो करने योग्य कार्य सभी के लिए अलग-अलग होता है. जहाँ माँ-बाप के लिए बच्चों का पालन-पोषण कर्तव्य होता है वहीं बच्चों के लिए माँ-बाप की सेवा करना कर्तव्य होता है. इसलिए 'सेवा' और 'कर्तव्य' में विरोध नहीं है.
    मनोज जी की बात सही है. 'सेवा करना भी एक कर्तव्य है.'

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  9. बहुत विचारने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि सेवा और कर्तव्य मे बहुत अन्तर है। सेवा मन से की जाती है फिर चाहे आप अपने की करें या परायेकी…………लेकिन यदि कोई कार्य सिर्फ़ कर्तव्य पूर्ति के लिये किया जाये तो वो सेवा नही कहलायेगी और बच्चों के द्वारा माँ बाप की देखभाल किया जाना ना केवल उनका कर्तव्य है बल्कि यहाँ मन से किया जाने वाला कृत्य भी होना चाहिये नही तो कर्तव्य की इतिश्री आज बच्चे चंद पैसे देकर भी पूरी कर लेते हैं।या फिर नौकर रख देते हैं तो कैसा कर्तव्य है ये और कैसी सेवा? माँ बाप बच्चो को बडा सिर्फ़ कर्तव्य समझ कर ही नही करते उनका लालन पालन केवल कर्तव्य नही होता बल्कि वहाँ उनकी ममता भी होती है। हम सिर्फ़ इतना कहकर अपनी बात को साबित नही कर सकते कि ये उनका कर्तव्य था नही तो कल यदि बच्चे भी यही करते है तो उन्हे कैसे दोष दे सकते हैं क्यकि वो भी कह सकते है कि उन्होने अपना कर्तव्य पूरा किया और अब हम अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं फिर चाहे खुद से करे या किसी से करवायें। इसका अर्थ बेहद वृहद है।
    जिस प्रकार देश और समाज को एक अच्छा नागरिक प्रदान करना हर माता पिता का कर्तव्य होता है उसी प्रकार उनका लालन पालन कर्त्तव्य तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि वहाँ ममता का भी समावेश होता है और इसी सन्दर्भ में जब बच्चे अपने माता पिता के लिए कुछ करते हैं तो सिर्फ कर्तव्य नहीं होता बल्कि वहाँ यदि कार्य मन से किया गया है बिना किसी जोर - जबरदस्ती के तब वो सेवा बनता है . और हर माता पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे उनके लिए यदि कुछ करें तो मन से करें बस वो ही मन से किया कृत्य सेवा बन जाता है. जिस प्रकार निस्वार्थ भाव से माता पिता बच्चों का लालन पालन करते हैं उसी प्रकार उनके प्रति मन से किया गया कोई भी कार्य सेवा में सम्मिलित हो जाता है.

    मुझे तो इसका यही अर्थ समझ आया बाकी सबका अपना दृष्टिकोण है. कल सिर्फ एक लाइन इसीलिए लिखकर चली गयी थी ताकि इस बात का गहन विश्लेषण कर सकूँ और फिर निष्कर्ष दे सकूँ.

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  10. "Kartavya" Adhikaar ke sapeksh ek aupcharik shabd hai aur prayah,zimmedar hone ka bodh karane ke liye prayukt hota hai.Maslan,Rashtra ke prati kartavya.Kintu,Sewa shabd karoonamoolak hai.Vah kai arthon men hamari maanviyata aur samvedana hi nahin sanskriti se bhi juda hua hai.Maslan,beemar ya jeerna-sheerna avastha men pahunche vyakti ki sewa.

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  11. मात पिता की सेवा करना हमारा कर्तव्य है । सेवा किसी की भी की जा सकती है । इसी तरह कर्तव्य परायणता के भी कई उदाहरण हो सकते हैं ।
    सेवा और कर्तव्य में मूल रूप से भावनाओं का फर्क है । बिना भावना के कर्तव्य तो निभाया जा सकता है लेकिन सेवा करना मुमकिन नहीं ।
    मात पिता भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए बच्चों की सेवा ही करते हैं ।

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  12. वंदना
    मन में एक दुविधा चल रही हैं कई दिन से आप ने कमेन्ट में काफी विस्तृत लिखा लेकिन इस से दो बाते उभरी
    १. क्या हम अपने कर्त्तव्य मन से नहीं करते ?
    २. क्या माँ पिता के लिये सुविधा से परिपूर्ण वातावरण देना और उनके आराम का ख्याल रखने के लिये वो लोग जो १२ घंटे काम करते हैं कैसे बिना किसी पैड सहायता के ये काम कर सकते हैं . अगर क़ोई नौकरी पेशा हैं तो उसको तो किसी ना किसी को पैसा दे कर ही काम करवाना होगा . हा ये देखना की वो काम हो रहा हैं या नहीं कर्त्तव्य हुआ और जो पैसा ले कर ये काम करता हैं वो सेवा कर रहा हैं

    अपने कर्तव्यो की इती में ममता और सही संचालन जरुरी हैं पर पता नहीं क्यूँ क़ोई खुद करे या करवाये इस में मुझे क़ोई अंतर नहीं लगता और करना / करवाना दोनों यहाँ कर्तव्य हुए क्युकी वो अपने माँ पिता हैं , हाँ अगर क़ोई किसी दूसरे के माँ - पिता का करता हैं तो सेवा हुई जैसे बेटी / बेटा करे / करवाए तो कर्त्तव्य , बहू / दामाद करे / करवाए तो सेवा

    और जो क़ोई भी पैसा लेकर करता हैं वो अपना कर्तव्य निभाता हैं क्युकी उसको पैसा मिला हैं इस बात का लेकिन वो कर सेवा रहा हैं क्युकी उसके माँ - पिता नहीं वो लोग

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  13. .

    सनातन धर्म जीव के साथ शाश्वत रूप से रहता है ! गीता में कहा गया है जीव न तो कभी जन्मता है , न ही कभी मरता है ! धर्म की धारणा यदि संस्कृत के मूल शब्द से समझी जाए तो धर्म वह है जो पदार्थ विशेष में शाश्वत रूप से रहता है! जीव का शाश्वत धर्म 'सेवा' है ! पृथ्वी पर उपस्थित जीव किसी न किसी रूप में , किसी की सेवा ही कर रहा है ! निम्न पशु मनुष्य की सेवा , सेवक स्वामी की, एक मित्र दुसरे मित्र की , माता अपनी संतान की , पति-पत्नी एक दुसरे की , दुकानदार ग्राहक की तथा चिकित्सक अपने रोगियों की सेवा में सतत संलग्न रहता है ! कोई भी जीव अन्य जीवों की सेवा करने से मुक्त नहीं है! अतः सेवा करना ही जीव का सनातन धर्म है !

    सेवा करना और कर्तव्य मूलतः एक ही हैं। कोई भेद नहीं है। माता-पिता की सेवा ही संतान का परम कर्तव्य है। माता-पिता की इच्छाओं को समझना , उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना, उनके साथ साथ समय व्यतीत करना, उनके आदर और सम्मान को बनाये रखना, घर के प्रत्येक निर्णय में उनकी सहमती लेना और घर का बड़ा होने के नाते उनको पूरा सम्मान देना आदि ही सच्ची सेवा है और यही कर्तव्य भी है।

    .

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  14. @सनातन धर्म जीव के साथ...

    poorntah: sahmat......


    pranam.

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